गीता के प्रति गहरा षड्यंत्र
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रूस में कृष्णभक्ति के उभार से डरे चर्च का
भारत में संसद से लेकर सड़कों तक तीव्र आक्रोश
* अरुण कुमार सिंह
70 भाषाओं में गीता
श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद रचित “श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप” मई, 1971 में पहली बार प्रकाशित हुई थी। अब तक यह पुस्तक अरबी, चीनी, डच, फ्रेंच, जर्मन, अंग्रेजी, इतालवी, जापानी, रूसी, पुर्तगाली, स्पेनी, स्विडिश, बंगला, गुजराती, मराठी, तमिल, तेलुगू सहित 70 भाषाओं में अनूदित हो चुकी है। प्रतिवर्ष इसकी लाखों प्रतियां छपती हैं।
इन दिनों रूस में हिन्दुओं के पवित्र ग्रंथ श्रीमद्भगवद्गीता को प्रतिबंधित करने के प्रयासों को लेकर दुनियाभर के हिन्दुओं में आश्चर्य और आक्रोश है। भारत में तो यह आक्रोश चरम पर देखने को मिला। 19 दिसम्बर को भारत में संसद से लेकर सड़कों तक और मास्को से लेकर वाशिंगटन तक में आक्रोश दिखा। भारत में कई शहरों में कृष्ण-भक्तों ने प्रदर्शन किया, जबकि मास्को और वाशिंगटन में हिन्दू धार्मिक नेताओं ने कड़े बयान जारी कर गीता पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश की तीव्र निन्दा की। इस मुद्दे पर सबसे आश्चर्यजनक क्षण तो भारतीय संसद में देखने को मिले। आश्चर्यजनक इसलिए क्योंकि अपने आपको सेकुलर मानने वाले राजनीतिक दलों के नेताओं ने भी पहली बार हिन्दुत्व यानी राष्ट्रीय स्वाभिमान से जुड़े किसी मुद्दे पर एक सकारात्मक भूमिका दिखाई। विभिन्न दलों के नेताओं ने भारत सरकार से मांग की कि वह इस मुद्दे पर रूस सरकार से बात करे और गीता को प्रतिबंधित होने से बचाए। इतना ही नहीं मुलायम सिंह यादव ने तो यहां तक कहा कि गीता की पढ़ाई प्राथमिक विद्यालय से विश्वविद्यालय तक में हो। जबकि लालू यादव ने “बोलो कृष्ण भगवान की जय” कहकर सबको चकित कर दिया। वरिष्ठ भाजपा नेता डा. मुरली मनोहर जोशी भी इस प्रकरण पर काफी आक्रोशित दिखे। सांसदों के इस रुख से सोनिया निर्देशित वह मनमोहन सरकार जागी, जो राष्ट्रीय स्वाभिमान से जुड़े किसी भी मुद्दे पर चुप्पी साध लेती है। 21 दिसम्बर को विदेश मंत्री एस.एम. कृष्णा ने संसद में बयान दिया कि “गीता के बारे में की गई शिकायत निहित स्वार्थों से प्रेरित अज्ञानी और भटके हुए लोगों द्वारा किया गया कार्य लगता है।” लेकिन प्रश्न यह है कि इस मुद्दे को भारत सरकार पहले ही गंभीरता से लेती तो न संसद में यह औपचारिक बयान देने की नौबत आती और न ही प्रधानमंत्री पर अंगुली उठती। इस बयान में भी सरकार का कोई कड़ा रुख सामने नहीं आया।
प्रधानमंत्री की उदासीनता
विश्व हिन्दू परिषद् के अन्तरराष्ट्रीय कार्याध्यक्ष डा. प्रवीण भाई तोगड़िया के इस सवाल का क्या जवाब है प्रधानमंत्री के पास कि जब वे 16-17 दिसम्बर को रूस गए तो उन्होंने इस मुद्दे पर क्यों नहीं कुछ कहा और किया? जबकि नवम्बर, 2011 में ही रूस के श्रीकृष्ण भक्तों ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर बता दिया था कि गीता के विरुद्ध षड्यंत्र चल रहा है। दरअसल, यह सरकार राष्ट्रीय स्वाभिमान से जुड़े किसी भी विषय पर यूं आंख बन्द कर लेती है, मानो उसे राष्ट्रीय स्वाभिमान से कोई मतलब ही नहीं है। इसी का फायदा भारत-विरोधी तत्व भारत सहित दुनियाभर में उठा रहे हैं। ये तत्व कभी हिन्दू मन्दिरों को तोड़ते हैं, कभी हिन्दू देवी-देवताओं का अपमानजनक चित्र बनाते हैं, कभी हिन्दू ग्रंथों को “बकवास का पुलिंदा” बताते हैं, तो कभी उन्हें “चरमपंथी” और “हिंसा को उकसाने” वाला साहित्य बताकर उन पर प्रतिबंध लगाने की साजिश रचते हैं। ऐसी ही साजिश की “बू” रूस से आने के बाद भारत में कोहराम मचा। (इस साजिश की गहराई कितनी है इसकी जानकारी 28 दिसम्बर, 2011 को आने वाले अदालती फैसले से होगी) रूस के साइबेरिया प्रान्त के तोमस्क नगर की एक अदालत में इस साजिश को कानूनी जामा पहनाने का प्रयास शुरू हुआ। उल्लेखनीय है कि वहां के आर्थोडाक्स चर्च से जुड़े एक संगठन ने जून 2011 में अन्तरराष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ (इस्कॉन) के संस्थापक श्री ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद द्वारा रचित “श्रीमद्भगवद्गीता एज इट इज” के रूसी संस्करण पर प्रतिबंध लगाने और उसके वितरण को अवैध घोषित करने की मांग करते हुए न्यायालय में एक अर्जी दी थी। अर्जी में इस पुस्तक को सामाजिक कलह फैलाने वाला बताया गया है। इसके बाद न्यायालय ने वह ग्रंथ तोमस्क विश्वविद्यालय भेज दिया और इसके बारे में वहां के प्राध्यापकों और विशेषज्ञों की राय मांगी। कुछ ने याचिकाकर्ता के तर्क से सहमति जताई, तो कुछ ने कहा इस ग्रंथ में कुछ भी ऐसा नहीं है, जिस आधार पर इसे “उग्रवादी साहित्य” कहा जाए।
गीता से दुनियाभर के करोड़ों लोग जीवन जीने की कला सीखते हैं। गीता से देशी-विदेशी लाखों विद्यार्थी प्रबंधन की जटिलताओं को समझते हैं। गीता मानव को बताती है कि परिस्थिति से घबराकर भागो नहीं, बल्कि जागो और चिन्ता मत करो, बल्कि चिन्तन करो। गीता कहती है मनुष्य अधिकार का त्याग कर सकता है, किन्तु कर्म का नहीं। प्रसिद्ध कथावाचक श्री किरीट भाई ने 6 दिसम्बर को नई दिल्ली में आयोजित गीता जयन्ती महोत्सव में कहा, “गीता प्रासादिक ग्रंथ है, साम्प्रदायिक नहीं। जिसको मोक्ष पाना है उसे गीता की शरण में जाना ही पड़ेगा।” महात्मा गांधी ने कहा था, “जब मुझे कोई परेशानी घेर लेती है तब मैं भगवद्गीता के पन्नों को पलटता हूं। जल्द मुझे परेशानी का हल मिल जाता है। जो लोग रोज गीता को पढ़ते हैं वे हमेशा खुश रहते हैं।”
षड्यंत्र क्यों?
सवाल उठता है ऐसी गीता को कुछ कट्टरवादी क्यों प्रतिबंधित कराना चाहते हैं? इसका उत्तर है पूरी दुनिया में हिन्दुत्व की बढ़ती लोकप्रियता। 1966 में अमरीका में स्वामी प्रभुपाद द्वारा स्थापित इस्कॉन के भक्तों एवं समर्थकों की संख्या पूरे विश्व में तेजी से बढ़ रही है। स्वामी प्रभुपाद 1971 में पहली बार रूस गए थे और उन्होंने केवल तीन दिन में ऐसा जादू चलाया कि बहुत रूसी उनके साथ हो गए और कृष्ण-भक्ति में झूमने लगे। कुछ ही समय में पूरे रूस में इस्कॉन के भक्त फैल गए और जगह-जगह केन्द्र स्थापित करने लगे। अभी पूरे रूस में इस्कॉन के 86 केन्द्र हैं। इन सभी केन्द्रों में जो भी भक्त या समर्थक हैं, उनमें से अधिकांश स्थानीय हैं। पहले वे सभी गैर-हिन्दू थे। अब वे श्रीकृष्ण के भजन गाते हैं। रूस में चर्च को नजदीकी से देखने वालों का मानना है कि कृष्णभक्ति और हिन्दुत्व की बढ़ती लोकप्रियता से चर्च के लोग घबरा गए हैं। उन्हें लगता है कि रूसी भाषा में प्रकाशित “गीता” को बड़ी संख्या में लोग पढ़ते हैं और उससे प्रभावित होकर श्रीकृष्ण के भक्त हो रहे हैं। यही कारण है कि चर्च द्वारा प्रयोजित कुछ लोगों ने गीता पर प्रतिबंध लगाने का अभियान चला रखा है। इस्कॉन के राष्ट्रीय सम्पर्क निदेशक श्री व्रजेन्द्र नन्दन दास कहते हैं, “गीता जैसे दिव्य ग्रंथ पर प्रतिबंध लगाना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है। यह प्रकरण रूस के बहुसंख्यक समाज की असहिष्णुता का परिचय देता है। यह दुनियाभर के हिन्दुओं की आस्था का प्रश्न है। इसलिए भारत सरकार इस मामले पर उचित कार्रवाई करे।” श्री सनातन धर्म प्रतिनिधि सभा दिल्ली के महामंत्री श्री भूषणलाल पाराशर ने इस प्रकरण की घोर निन्दा करते हुए पाञ्चजन्य से कहा, “जिस गीता में समस्त मानव जाति के कल्याण की बात की गई है, वह वैमनस्य कैसे फैला सकती है?” उन्होंने यह भी बताया कि प्रतिनिधि सभा की एक आपात बैठक में इस पूरे प्रकरण पर विचार किया गया और एक प्रस्ताव पारित कर सरकार से मांग की गई कि गीता को राष्ट्रीय ग्रंथ घोषित किया जाए। यही मांग लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष श्रीमती सुषमा स्वराज ने सदन में इस मुद्दे पर उत्तेजित सांसदों के बीच अपने भाषण में की।
विश्व हिन्दू परिषद् के अन्तरराट्रीय कार्याध्यक्ष डा. प्रवीण तोगड़िया ने 20 दिसम्बर को एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा है कि श्रीमद्भगवद्गीता पर प्रतिबंध लगाना भारत के विरुद्ध युद्ध की घोषणा करने के बराबर है। गायत्री परिवार के प्रमुख डा. प्रणव पण्ड्या ने पाञ्चजन्य से कहा, “लियो टालस्टाय रूस के बहुत बड़े साहित्यकार थे। उन्होंने गीता के बारे में कहा है, यह अद्वितीय और अनुपम ग्रंथ है, जो मानव को जीवन जीने की कला सिखाता है। जिस देश का इतना बड़ा साहित्यकार गीता को अद्वितीय ग्रंथ बताता हो उस देश में गीता पर प्रतिबंध की बात करना कलियुग की पराकाष्ठा है। गीता हर व्यक्ति, हर वर्ग और हर समय के लिए उपयोगी है। इस्कॉन के प्रति विद्वेष की भावना के कारण गीता पर प्रतिबंध लगाने की बात की जा रही है।”
हालांकि रूस ने इस प्रकरण पर खेद जताया है और कहा है कि किसी भी पवित्र ग्रंथ को न्यायालय तक ले जाना ठीक नहीं है। किन्तु जानकारों का मानना है कि यह सब एक रणनीति है। इस साजिश में सरकार और चर्च साथ-साथ हैं। इसलिए जब तक भारत सरकार कूटनीतिक दबाव रूस पर नहीं डालेगी तब तक गीता पर आए “संकट” के बादल नहीं छटेंगे। रूस में घटित इस प्रकरण से लोगों को कुछ साल पहले ताजिकिस्तान (जो पहले रूस का ही एक भाग था) में घटी वह घटना याद आ गई है जब वहां के इस्कॉन मन्दिर को तोड़कर बाजार बनाया गया था। कृष्ण भक्तों को जबरन निकालकर मन्दिर ढहा दिया गया था। उस समय भी वहां के हिन्दुओं ने भारत सरकार से अपील की थी कि वह मन्दिर बचाए। किन्तु भारत सरकार ने उस समय भी कुछ नहीं किया था। हालांकि अभी भी यह सरकार “ईमानदारी” से कुछ भी नहीं कर रही है। संसद में हंगामा होने के कारण सरकार ने बयान भर दिया है और केवल उम्मीद जताई है कि रूसी सरकार मामले का समुचित हल निकालेगी। जब तक भारतीय संस्कृति के उपासक समाज की संगठित आवाज चुनौती बनकर नहीं हुंकारेगी, तब तक हिन्दुत्व विरोधी तत्व अपना फन उठाते रहेंगे। द
70 भाषाओं में गीता
श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद रचित “श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप” मई, 1971 में पहली बार प्रकाशित हुई थी। अब तक यह पुस्तक अरबी, चीनी, डच, फ्रेंच, जर्मन, अंग्रेजी, इतालवी, जापानी, रूसी, पुर्तगाली, स्पेनी, स्विडिश, बंगला, गुजराती, मराठी, तमिल, तेलुगू सहित 70 भाषाओं में अनूदित हो चुकी है। प्रतिवर्ष इसकी लाखों प्रतियां छपती हैं।
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