श्रीमद्भगवद्गीता
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परमाणु युद्ध की ओर बढ़ रहे
विश्व को महाविनाश से बचाएगी
*नरेन्द्र सहगल
सृष्टि के सर्वोच्च एवं सम्पूर्ण ज्ञान से परिपूर्ण वेदों, उपनिषदों, पुराणों और जैन, बौद्ध, सिख इत्यादि ग्रंथों का सारतत्व श्रीमद्भगवद्गीता मानवतावादी भारतीय चिंतन का आधार है। विश्व की प्राय: प्रत्येक भाषा में श्रीमद्भगवद्गीता का अनुवाद उपलब्ध है। आज तक किसी भी देश में इस ग्रंथ पर किसी ने उंगली नहीं उठाई। इस ग्रंथ के सारतत्व को ही न्यायालय में चुनौती देने जैसा दुस्साहस किसी ने संभवतया पहली बार ही किया है। स्वयं आतंकी मनोवृत्ति वाले जिन लोगों ने भारतीय चिंतन पर प्रहार करने की कोशिश की है वे धर्म, मानवता और आध्यात्मिकता जैसे गहरे चिंतन से कोसों दूर दिखाई देते हैं।
श्रीमद्भगवद्गीता को निशाने पर रखकर हिन्दुत्व अर्थात भारतीय चिंतन के मूल पर आघात करने के पीछे किसी गहरे अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र का आभास होता है। भारतीय संस्कृति के शाश्वत सिद्धांतों और वैश्विक विचार प्रहार को रोकने के लिए विधर्मी एवं विदेशी शक्तियां कोई न कोई बहाना खोजकर इस तरह के कुकर्म करती रहती हैं। आज सारा विश्व भारतीय चिंतन की ओर आकर्षित ही नहीं अपितु इसका अनुगामी भी बन रहा है। भारतीय चिंतन पर आधारित योग एवं आयुर्वेद विज्ञान का बढ़ रहा वर्चस्व ईसाई पादरियों, संसार द्वारा सिरे से ठुकरा दिए गए साम्यवादियों और जिहादी मुल्लाओं को किसी भी तरह बर्दाश्त नहीं हो रहा।
सारे विश्व में सर्वहारा क्रांति के माध्यम से मजदूरों/किसानों का आधिपत्य जमाने के उद्देश्य से सक्रिय हुए साम्यवादियों और उनकी बिन पैंदे की विचारधारा को प्राय: सभी देशों ने ठुकरा दिया है। सेवा की आड़ में समूचे विश्व को ईसाई रंग में रंगने के लिए लालायित ईसाई पादरियों की पोल पट्टी भी खुल चुकी है। ईसाई मिशनरियां धीरे-धीरे अपना दम तोड़ रही हैं। इसी तरह जिहादी आतंकवाद की प्रेरक शक्तियां तो आपस में ही टकरा रही हैं।
विश्वव्यापी हिन्दुत्व जागरण
वास्तव में इन तीनों विचारों अथवा शक्तियों ने ही विश्व को तीसरे महायुद्ध अर्थात महाविनाशक परमाणु युद्ध की ओर धकेलने का आधार एवं खाका तैयार किया है। यह तीनों विचारधाराएं मानव को न तो मानसिक दृष्टि से शांत कर सकीं और न ही भूखे पेट की अग्नि को शांत कर सकीं। इसी वजह से इन विचारों के झंडाबरदार तिलमिला गए हैं और वेद, रामायण, महाभारत और गीता जैसे मानवीय वाङमय पर चोट करने के रास्ते तलाश रहे हैं। इन शक्तियों को अपने विफल हो रहे सैद्धांतिक धरातल के टूटने का डर सता रहा है।
इधर भारत सहित पूरे विश्व में हिन्दुत्व के प्रचार/प्रसार केन्द्र न केवल मजबूत हो रहे हैं बल्कि उनकी संख्या में भी निरंतर वृद्धि हो रही है। भारत में जोर पकड़ रहे सांस्कृतिक राष्ट्रवाद अथवा भगवा जागरण का असर विदेशों में भी बढ़ता जा रहा है। प्रत्येक देश में श्रीराम मंदिरों, शिवालयों एवं योग संस्थानों की स्थापना की तेज हो रही गति से घबरा कर ईसाई मिशनरी इत्यादि संस्थान अब न्यायालयों का सहारा लेकर भारतीय चिंतन के सार तत्वों को ही समाप्त करने पर तुल गए हैं।
विदेशों में गीता का अध्ययन
सारे संसार को भारतीय संस्कृति के मानवीय सिद्धांतों का पाठ पढ़ाने के उद्देश्य से कार्यरत गायत्री परिवार, हरिद्वार के सूत्रों के अनुसार संसार के सौ से ज्यादा देशों में उनके केन्द्रों की स्थापना हो चुकी है जहां श्रीमद्भगवद्गीता के पाठ एवं गायत्री महामंत्र के जाप चलते हैं। विश्व के 13 विश्वविद्यालयों में गीता को पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। जर्मनी व जापान के विश्वविद्यालयों में स्थापित संस्कृत पीठ के पाठ्यक्रमों में गीता के अध्ययन को अनिवार्य बना दिया गया है। इस महान ग्रंथ की विश्वव्यापी स्वीकृति ही पादरियों, जिहादियों और माक्र्सवादियों को बर्दाश्त नहीं हो रही।
इस्कान की “गवरनिंग बॉडी” के कमिश्नर गोपाल कृष्ण गोस्वामी के अनुसार सारे विश्व में इस्कान के 450 केन्द्र हैं। इनमें से 86 केन्द्र मात्र रूस में ही हैं। इन सभी केन्द्रों पर इस संस्थान के सर्वेसर्वा स्वामी प्रभुपाद द्वारा लिखित गीता की शिक्षा कक्षाएं चलती हैं। रूस की ही भाषाओं में पढ़ाई जा रही गीता के उपदेशों से ईसाई युवक प्रभावित हो रहे हैं। हरे राम हरे कृष्ण के उद्घोषों पर आयोजित होने वाले धार्मिक अनुष्ठानों में रूसी युवक सबसे ज्यादा भाग ले रहे हैं। रूस सहित सारे विश्व में इस धार्मिक संस्थान के एक लाख से ज्यादा मंदिर हैं जहां नित्य गीता का शिक्षण एवं पाठ होता है।
सर्वसम्मत गीता ज्ञान की महिमा
विश्व मानव को शांति के साथ रहने के गुर सिखाने वाली श्रीमद्भगवद्गीता को “उग्रवादी साहित्य” कहने वाले तत्व भी एक दिन जरूर समझेंगे कि यह ग्रंथ भारतीय चिंतन की एक ऐसी अभिव्यक्ति है जिसका संबंध किसी मजहब, जाति अथवा क्षेत्र से न होकर मानवता से है। महाभारत ग्रंथ में एक अध्याय के रूप में महर्षि वेदव्यास द्वारा भगवान श्रीकृष्ण के उपदेशों (गीता) को जोड़ने का उद्देश्य पूरी मानवता का कल्याण था। इसलिए यह ग्रंथ केवल भारतीयों अथवा आज की भाषा में हिन्दुओं के लिए नहीं रचा गया, बल्कि संपूर्ण मानवता के लिए है।
इस ग्रंथ की रचना उस समय हुई थी जब मानव जाति, हिन्दू, मुसलमान, ईसाई, यहूदी, पारसी इत्यादि धार्मिक वर्गों में विभक्त नहीं थी। उस समय तो विश्व की भाषा भी एक थी संस्कृत, जिस भाषा में यह ग्रंथ रचा गया। गीता में कहीं भी यह नहीं कहा गया कि इसे केवल भारतीय ही पढ़ेंगे। विश्व में अन्य मत-पंथों, विचारों एवं सिद्धांतों के जन्म लेने से बहुत पहले धरती पर गीता का आविर्भाव हो चुका था। इस प्रकार के अन्य चिंतन प्रवाहों के आ जाने के बाद ही श्रीमद्भगवद्गीता को भारतीय चिंतन कहा जाने लगा क्योंकि इस चिंतन प्रवाह की उत्पत्ति भारत की धरती पर हुई थी।
सनातन आध्यात्मिक विज्ञान
श्रीकृष्ण ने अधर्म के विरुद्ध संघर्ष करने वाले के लिए धनुर्धारी अर्जुन के रूप में धर्मरक्षक तैयार करने का अभियान छेड़ा था। अधर्म के मार्ग पर चल पड़े दुष्ट कौरवों को सत्ता से हटाने के लिए पांडवों (अर्जुन) को युद्ध करने की प्रेरणा देने वाले श्रीकृष्ण द्वारा कही गई गीता में ज्ञान योग, भक्ति योग एवं कर्मयोग की संपूर्ण जीवनधारा का दिशा निर्देश है। किसी एक समुदाय को प्रताड़ित करके अपने समुदाय के वर्चस्व की कल्पना तक गीता में नहीं की गई।
गीता की शिक्षाओं का संबंध काल, भूमि अथवा व्यक्ति विशेष से कदाचि नहीं है। जीवन-विज्ञान केवल युद्ध के मैदान कुरुक्षेत्र में ही नहीं दिया गया। स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने गीता के अध्याय 4:1-2 में कहा है-मैंने अपने एक पूर्व अवतार में इस अविनाशी योग (गीता) की दीक्षा सर्वप्रथम सूर्य को दी थी। सूर्य ने यही योग शिक्षा अपने पुत्र मनु को दी। मनु ने यह महान शिक्षा सूर्यवंश के संस्थापक अपने पुत्र इक्ष्वाकु को दी। बहुत समय तक रहने के बाद यही यौगिक रहस्य श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समझाया।
सार्वदेशिक सहअस्तित्व का आधार
आज यही गीता ज्ञान सारे संसार को भारत के आधुनिक संतों/महात्माओं द्वारा प्रदान किया जा रहा है। गीता में वर्णित मानवीय तेजस्विता को इसलिए विश्वस्तर पर मान्यता मिल रही है क्योंकि इसमें अधर्म, साम्प्रदायिक वैमनस्य, क्षेत्रीय संकीर्णता, वर्ग विभेद और बाहुबल के अहं के साथ लड़ने की सिद्धता/क्षमता मौजूद है। यही वजह है गीता ज्ञान के तेज को वे शक्तियां निस्तेज करने की साजिशें रच रही हैं जिनका अपना मजहबी, अपना गुटीय अस्तित्व ही इस सूर्य के तेज में फीका पड़ रहा है। दरअसल श्रीमद्भागवद्गीता को “आतंकवादी साहित्य” सिद्ध करने के लिए न्यायालय की शरण में जाने वाले तत्वों को अपने अस्तित्व की ही चिंता सता रही होगी।
गीता ज्ञान की तुलना उन मजहबी ग्रंथों अथवा उपदेशों/नसीहतों से कदाचित् नहीं की जा सकती, जिन्हें पढ़कर मजहबी उन्माद सिर पर चढ़कर बोलने लगता है और परिणामस्वरूप हिंसक आतंकवाद और कट्टर साम्प्रदायिकता का जन्म होता है। सार्वभौम एवं सर्वस्पर्शी गीता ज्ञान संकीर्ण राष्ट्रवाद की सभी भौगोलिक सीमाओं को तोड़कर अंतरराष्ट्रीय भाईचारे अर्थात सार्वदेशिक सहअस्तित्व का आधार तैयार करने में पूर्णतया सक्षम है।
विफल होंगे सभी विदेशी षड्यंत्र
आज भारत सहित पूरा विश्व मजहबी उन्माद से उत्पन्न जिहादी आतंकवाद, विश्व पर सैनिक शिकंजा कसने की साम्राज्यवादी लिप्सा और संसार की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति बनने की पूंजीवाद व साम्यवाद प्रेरित होड़ के दंश झेल रहा है। श्रीमद्भगवद्गीता और इसके जन्मदाता भारत में वह शक्ति है जो विश्व को किसी भी संभावित विनाश से बचा सकती है। देश-विदेश में गीता ज्ञान के प्रचार/प्रसार में जुटे हजारों लाखों संत-महात्मा भगवान श्रीकृष्ण की उसी घोषणा के प्रतीक हैं जिसमें कहा गया है कि जब भी पृथ्वी पर अधर्म का वर्चस्व होने लगता है तो भगवद् शक्ति का जन्म होता है, धर्म की पुन:स्थापना होती है। गीता के ध्वजवाहक रूस सहित सभी देशों में इसी ईश्वरीय कार्य को सम्पन्न कर रहे हैं।
आत्मा की अमरता, समर्पण, त्याग की भावना पर आधारित कर्तव्यनिष्ठा और सत्कर्म पर अग्रसर होने की स्थाई प्रेरणा देने वाला गीता ज्ञान ही कौरवरूपी निरंकुश राजसत्ताओं को धूल चटाने वाली अर्जुनरूपी शक्तियों का सृजन करेगा। अत: भारत माता की संतानों को संगठित होकर अपना जन्मजात कर्तव्य निभाने के लिए तैयार हो जाना चाहिए। श्रीमद्भगवद्गीता को “आतंकी साहित्य” सिद्ध करने पर तुली ताकतें परास्त होंगी, भारतीय चिंतन पर प्रहार करने के विदेशी षड्यंत्र विफल होंगे और समूचा विश्व परमाणु युद्ध के महाविनाश से बचेगा। द
आज पूरा विश्व मजहबी उन्माद से उत्पन्न जिहादी आतंकवाद, विश्व पर सैनिक शिकंजा कसने की साम्राज्यवादी लिप्सा और संसार की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति बनने की पूंजीवाद व साम्यवाद प्रेरित होड़ के दंश झेल रहा है। श्रीमद्भगवद्गीता और इसके जन्मदाता भारत में वह शक्ति है जो विश्व को किसी
भी संभावित विनाश से बचा सकती है।
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