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लखनऊ/ शशि सिंह
उत्तर प्रदेश के चुनावी संग्राम में उतरने के लिए भाजपा पूरी तरह से तैयार है। सत्तारूढ़ बसपा सरकार के राज में अनाचार, भ्रष्टाचार, लूट-खसोट और गुंडागर्दी का साम्राज्य कायम हो गया है, सपा और कांग्रेस जैसी विपक्षी पार्टियां अपने पुराने दागों को अभी धो नहीं सकी हैं, इसलिए भाजपा के लिए सकारात्मक स्थिति है। संभवत: इसी को ध्यान में रखकर पार्टी ने पहले अपनी तेज-तर्रार नेता उमा भारती को यहां के मैदान में उतारा, बाद में धीर-गंभीर, संगठन कुशल और पार्टी में सबके लिए सुलभ संजय जोशी को संगठन को चुस्त-दुरुस्त करने का काम सौंपा। गोरक्षपीठ के उत्तराधिकारी और सांसद योगी आदित्यनाथ जैसे प्रखर हिन्दुत्वनिष्ठ नेता ने पूर्वांचल में पहले से अधिक सक्रिय होकर मोर्चा संभाल लिया है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में वरुण गांधी जैसे हिन्दुत्वनिष्ठ युवा सांसद की सक्रियता बनी हुई है। इस बदले हुए परिदृश्य में संगठन, कार्यकर्ता और जनता के स्तर पर पूरी तरह सक्रियता के बाद विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिए पहले से काफी बेहतर परिणामों की उम्मीद की जा सकती है।
बदले हालात
वर्ष 2007 के मुकाबले 2011 में हालात काफी बदल गए हैं। मुख्यमंत्री मुलायम सिंह के गुंडाराज से तंग जनता ने मई, 2007 में बसपा को पूर्ण बहुमत दिया था। मायावती को सत्ता शीर्ष पर बैठाया था। जनता की उनसे कुछ उम्मीदें भी थीं। कम से कम इतनी तो थीं ही कि मायावती मुलायम के गुंडाराज से तो मुक्ति दिलाएंगी। लेकिन माया का साढ़े चार साल का शासन उनकी उम्मीदों पर पानी फेरने वाला ही साबित हुआ। इस दौरान न केवल गुंडागर्दी बढ़ी वरन महिलाओं की घर तक सुरक्षित वापसी भी मुश्किल होती गई। मायाराज में उत्तर प्रदेश अपराध के मामले में पूरे देश में सबसे अग्रणी बन गया। इसलिए 2011 में हालात पूरी तरह बदल गए। जो आक्रोश 2007 में मुलायम सिंह के खिलाफ सड़कों पर दिख रहा था, उससे भी अधिक आक्रोश अब मायावती के खिलाफ दिख रहा है। अंतर केवल इतना है कि वह मुखर नहीं है। इसका सबसे बड़ा कारण मायावती की डर पैदा करने वाली कार्यशैली है। दो-दो मुख्य चिकित्साधिकारियों की हत्या, एक उप मुख्य चिकित्साधिकारी का जेल में कत्ल, एक इंजीनियर की पीट-पीटकर हत्या, आधा दर्जन से अधिक महिलाओं, किशोरियों के साथ बसपा के बड़े नेताओं द्वारा दुराचार की घटनाएं लोगों के दिलो-दिमाग पर खौफ से कम नहीं हैं। पूर्व मंत्री व विधायक आनंदसेन, पूर्व मंत्री व विधायक अमरमणि त्रिपाठी तथा विधायक शेखर तिवारी को उम्रकैद की सजा से राहत जरूर महसूस की जा रही है लेकिन इसमें मायावती की कोई भूमिका नहीं है। अन्याय पीड़ित लोगों की लड़ने की जिजीविषा और न्यायिक सक्रियता से ऐसा संभव हो पाया है। स्थानीय प्राधिकारी क्षेत्र से चुने जाने वाले विधान परिषद सदस्यों में अधिकतर दागी लोगों को टिकट देना और उनको धनबल, बाहुबल और सत्ताबल से जिताकर ले आना, बसपा को इस विधानसभा चुनाव में महंगा पड़ने वाला है।
सपा-कांग्रेस भी कठघरे में
जहां तक मुलायम सिंह और कांग्रेस की बात है तो ये दल भी अपने को बसपा से अलग साबित नहीं कर पाए हैं। मायाराज से कम पाप मुलायम सिंह और उनकी पार्टी ने भी नहीं किए हैं। उ.प्र. में अपराधी किस्म के लोगों को राजनीति में प्रश्रय मुलायम सिंह ने ही देना प्रारंभ किया। अक्षय प्रताप सिंह, मित्रसेन यादव, पारसनाथ यादव, उमाकांत यादव जैसे बाहुबली और दागी सपा की ही देन हैं और अब भी सपा में सक्रिय हैं। गुड्डू पंडित जैसे दागी बसपा विधायक को सपा ने दलबदल करवाकर अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया है। आजम खां जैसे भारत माता को डायन कहने वाले मुस्लिम नेता को मुलायम सिंह अपने बगल में ससम्मान बैठा रहे हैं। जनता के लिए बसपा और सपा में अंतर करना मुश्किल है।
उधर, कांग्रेस की ख्याति अब घोटालेबाजों की पार्टी की हो गई है। केंद्र सरकार में जो कुछ घटित हो रहा है, उसे जनता अच्छी तरह से समझ रही है। तेल के दामों में बेतहाशा हुई बढ़ोतरी और आसमान छू रही महंगाई उसके खिलाफ आग में घी का काम करेगी। भ्रष्टाचार और कालेधन के खिलाफ चल रहा अण्णा हजारे और स्वामी रामदेव का देशव्यापी अभियान कांग्रेस की नींव को कमजोर करने वाला सिद्ध होगा।
भाजपा को मिलेगा फायदा
ऐसे हालात का फायदा भाजपा को मिल सकता है। पार्टी ने इसके लिए तैयारी भी कर ली है। पार्टी में फिर से सक्रिय किए जाने के बाद सुश्री उमा भारती ने सबसे पहले “गंगा बचाओ यात्रा” की। गंगा किनारे बसे उत्तर प्रदेश के एक दर्जन से अधिक जिलों और 100 से अधिक विधानसभाओं में उन्होंने गैरराजनीतिक अभियान चलाकर राष्ट्रवादी ताकतों को संबल प्रदान करने का काम किया। प्रभारी बनने के बाद संजय जोशी ने भी संगठन के स्तर पर कार्यकर्ताओं से सघन संवाद कायम किया। उन्हीं की पहल और रणनीति के चलते पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष कलराज मिश्र की क्रमश: पश्चिम और पूरब से शुरू की गई प्रदेशव्यापी यात्राओं का सकारात्मक संदेश गया है। इससे कार्यकर्ताओं में नया जोश देखने को मिल रहा है। उन्होंने भारतीय जनता युवा मोर्चा और महिला मोर्चा को सक्रिय किया। योगी आदित्यनाथ ने पूर्वी उत्तर प्रदेश विशेष रूप से भारत-नेपाल सीमा पर सक्रिय राष्ट्रविरोधी तत्वों के खिलाफ जोरदार अभियान चलाया। गोरखपुर में आम लोगों को हर साल मौत के मुंह में झोंकने वाले जापानी “इंसेफ्लाइटिस” पर गहरी नींद में सो रहे प्रशासन को आंदोलन-धरना प्रदर्शन कर जगाया। भाजपा को इसका लाभ मिल सकता है।
उधर विधानसभा चुनाव में सपा और बसपा काफी पहले से प्रत्याशी घोषित कर परोक्ष रूप से फंसती नजर आ रही हैं। इन दोनों दलों ने करीब-करीब सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं। इन दोनों दलों में असंतोष देखने को मिल रहा है। बसपा ने तो पहले घोषित 50 से अधिक उम्मीदवारों का टिकट बदलकर दूसरे को दे दिया। सपा में इस कदर असंतोष है कि सुल्तानपुर की लंभुआ सीट पर चार बार उम्मीदवार बदलने पड़े। सपा में आजम खां की बढ़ती सक्रियता और अपनी पुरानी दुश्मनी के कारण मुलायम के पुराने साथी रसीद मसूद अब कांग्रेस का दामन पकड़ चुके हैं। उधर भाजपा ने देर से ही सही, 143 उम्मीदवारों की पहली संतुलित सूची जारी करके बढ़त लेने का संकेत दे दिया है। अपने सभी बड़े नेताओं-राष्ट्रीय उपाध्यक्ष कलराज मिश्र (लखनऊ पूर्व), प्रदेश अध्यक्ष सूर्य प्रताप शाही (पथरदेवा), पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रामपति राम त्रिपाठी (सिसवा), पूर्व मंत्री रमापति शास्त्री (बलरामपुर सुरक्षित), पूर्व मंत्री रामकुमार वर्मा (पलिया), विधानमंडल दल के नेता ओम प्रकाश सिंह (चुनार), उपनेता हुकुम सिंह (कैराना), पूर्व विधानसभा अध्यक्ष केशरीनाथ त्रिपाठी (इलाहाबाद दक्षिण), लल्लू सिंह (अयोध्या), अतुल सिंह (हाटा) तथा पूर्व मंत्री देवेंद्र सिंह भोले (सिकंदरा) को उतारकर भाजपा ने लड़ाई को धारदार बनाने का संकेत दिया है।द
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