भारतीय अर्थचिंतन ही दुनिया को
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भारतीय अर्थचिंतन ही दुनिया को

by
Dec 17, 2011, 12:00 am IST
in Archive
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SANGH SAMACHAR

दिंनाक: 17 Dec 2011 22:55:59

नागपुर में स्वदेशी जागरण मंच की “भारतीय अर्थचिन्तन” पर संगोष्ठी

प्रगति का रास्ता दिखा सकता है

-भैयाजी जोशी, सरकार्यवाह, रा.स्व.संघ

“भारतीय चिंतन इतना मजबूत है कि इसके आधार पर यदि समाज खड़ा होता है और अपना व्यवहार करता है तो बहुत सी समस्याएं आसानी से हल हो सकती हैं। भारतीय अर्थचिंतन यह किसी सीमित काल के लिए नहीं है, अपितु सार्वकालिक, मूलभूत और मानव जीवन के सभी संदर्भों को स्पर्श करने वाला है। यह चिंतन शाश्वत, चिरंतन, सार्वत्रिक और सार्वकालिक है। अत: इसके आधार पर समाजजीवन खड़ा करने का प्रयास करना चाहिए”। उक्त उद्गार रा.स्व.संघ के सरकार्यवाह श्री भैयाजी जोशी ने गत दिनों नागपुर में स्वदेशी जागरण मंच के तत्वावधान में आयोजित संगोष्ठी को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। “भारतीय अर्थचिंतन” विषयक संगोष्ठी में बड़ी संख्या में स्वदेशी जागरण मंच तथा अन्य सामाजिक संगठनों के कार्यकर्ता उपस्थित थे।

श्री भैयाजी ने आगे कहा कि वर्तमान युग में साधनों के कारण उद्योग, व्यवसाय आदि में परिवर्तन आया है। संवाद का माध्यम बहुत प्रभावी माना जा रहा है, पर यह परिवर्तन तो स्वाभाविक है क्योंकि यह इनका बाह्य स्वरूप है। परन्तु जो मूलगामी चिंतन है वह तो अपरिवर्तनीय है। पश्चिम के प्रगतिशील समाज ने जो आर्थिक चिंतन दिया है उसका केन्द्र बिन्दु मनुष्य है, पर उन्होंने मनुष्य का पूर्ण रूप से विचार नहीं किया, इसलिए वह चिंतन अपूर्ण है। उन्होंने कहा कि वर्तमान युग में विकास का मापदंड उपभोग के साधनों की उपलब्धता पर निर्भर करता है। आज धनवान लोगों को समाज में प्रतिष्ठा मिलती है। पर उन्होंने यह धन कैसे कमाया, इस पर ध्यान कम दिया जाता है। यह अवस्था चिंताजनक है।

श्री भैयाजी ने कहा कि आर्थिक संसाधनों पर दो प्रकार से नियंत्रण प्राप्त करने की होड़ दुनिया में दिखाई देती है। कुछ मुट्ठीभर सम्पन्न लोग सभी उद्योगों पर स्वामित्व स्थापित करना चाहते हैं और उसके जरिए दुनिया में अपनी सत्ता काबिज करना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि भारतीय चिंतन में कहा गया है कि जो भी संसाधन हैं, वह ईश्वर के दिए हुए हैं। उन पर मालिकाना हक ईश्वर का है, वह सबके लिए हैं। हम केवल उसके न्यासी हैं, लेकिन इसको न मानने वाले पश्चिम के लोग “पेटेंट” के जरिए ज्ञान पर भी कब्जा जमाने की बात करते हैं। यह तो दानवी प्रवृति है, इससे तो प्रश्न निर्माण होंगे क्योंकि इसमें भविष्य की चिंता नहीं है। यह वर्तमान में जीने, अनियंत्रित उपभोग करने तथा आवश्यकता से अधिक प्राप्त करने की लालसा जगाने वाली प्रवृति है। श्री भैयाजी ने कहा कि आज दुनिया को अगर बचाना है, संसाधनों को आने वाली पीड़ियों के लिए सुरक्षित रखना है तो भारतीय चिंतन का सहारा लेना पड़ेगा। भारतीय चिंतन यह मानता है कि सम्पूर्ण विश्व में एक ही चैतन्य विद्यमान है और इस विचार से सुसंगत ऐसी व्यवस्थाएं हमारे समाजजीवन में लाई गईं। जिनके आधार पर मनुष्य को इस चैतन्यमय ब्रह्माण्ड का हिस्सा माना गया।

भैयाजी ने कहा कि स्वदेशी जागरण मंच जैसी संस्थाओं को देशभर में भारतीय चिंतन को अपने जीवन में उतारने वाले और ऐसा जीवन व्यतीत करने वाले परिवार बड़ी संख्या में खड़े करने का आह्वान स्वीकार करना चाहिए। ऐसा करने से ही भारतीय चिंतन को वैश्विक मान्यता प्राप्त हो सकेगी। द

हांगकांग में हिन्दू स्वयंसेवक संघ

और विहिप का परिवार मिलन

हिन्दू स्वयंसेवक संघ और विश्व हिन्दू परिषद् के संयुक्त तत्वावधान में गत दिनों हांगकांग में एक दिवसीय परिवार मिलन कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। इसमें 196 परिवारजनों ने भाग लिया, जिनमें 127 वयस्क तथा 69 बच्चे शामिल थे। कार्यक्रम का शुभारम्भ विश्व हिन्दू परिषद, हांगकांग के अध्यक्ष श्री किशोर समब्यानी के स्वागत उद्बोधन से हुआ। इस अवसर पर हिन्दू स्वयंसेवक संघ, हांगकांग के सह संघचालक श्री निर्मल लउंगनी ने आयोजन के उद्देश्य पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हमारी पहली पहचान यह है कि हम सब हिन्दू हैं। बाकी सब पहचान बाद में।

कार्यक्रम में वयस्कों तथा बच्चों के लिए अलग-अलग प्रकार के मनोरंजनात्मक खेल कराए गए। साथ ही हिन्दू संस्कृति तथा परम्परा से सम्बंधित प्रश्नोत्तरी के कार्यक्रम भी हुए। इस अवसर पर हिन्दू स्वयंसेवक संघ, हांगकांग के कार्यवाह श्री मनोज कुमार मोटवानी ने कम्प्यूटर की सहायता से बहुत सुंदर ढंग से संघ के इतिहास, लक्ष्य और उद्देश्य को समझाया। उन्होंने संघ संस्थापक डा. केशवराव बलिराम हेडगेवार के बारे में भी उपस्थित जनों को बताया। साथ ही विश्व हिन्दू परिषद्, सेवा भारती, विद्या भारती, वनवासी कल्याण आश्रम, राष्ट्र सेविका समिति आदि के बारे में भी जानकारी दी। कार्यक्रम का समापन हिन्दू स्वयंसेवक संघ, हांगकांग के संघचालक श्री जे.पी. गोयल द्वारा धन्यवाद ज्ञापन से हुआ। यहां वैदिक संस्कृति और परम्परा एवं प्राचीन भारत की उपलब्धियों को दर्शाती प्रदर्शनी भी लगाई गई। द प्रतिनिधि

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