सनातनी और सिख परम्परा का अनूठा संगम है कपालमोचन
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जुगनू शर्मा
हरियाणा के जिला यमुनानगर में प्रसिद्ध, ऐतिहासिक एवं धार्मिक कपालमोचन मेला सनातनी और सिख परम्परा का अनूठा संगम है। हर वर्ष कार्तिक मास की पूर्णिमा के अवसर पर यहां भव्य मेला लगता है। इस वर्ष 6-10 नवम्बर तक यहां मेला आयोजित हुआ। अनुमान है कि नौ लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने इस पवित्र धाम पर स्थित कपालमोचन सरोवर, ऋण मोचन सरोवर व सूरजकुण्ड में स्नान किया और मन्दिरों और गुरुद्वारों में पूजा- अर्चना की।
कपालमोचन ऋषि-मुनियों, शूरवीर-योद्धाओं और तपस्वियों की कर्मस्थली रही है। यहां कभी ब्रह्मा ने तीन कुंड बनाकर तीन यज्ञ किए थे। किवदन्ती है कि इसी जगह पर भगवान शिव ने कपालमोचन सरोवर में स्नान किया। भरवान परशुराम ने क्षत्रियों का नाश करने के बाद यहां आकर स्नान किया और अपना ब्रह्म हत्या दोष मिटाया। भगवान राम ने रावण वध के पश्चात् यहां आकर स्नान किया। भगवान कृष्ण ने पाण्डवों को पितर दोष निवारण के लिए यहां स्नान करने की सलाह दी थी।
गुरु नानकदेव और गुरु गोविन्द सिंह भी कपालमोचन आए थे। गुरु गोविन्द सिंह ने 1679 ईस्वी में भांगनी के युद्ध के बाद पोंटा साहिब जाते हुए इस स्थान की यात्रा की थी। वे यहां रुके और 52 दिन तक पूजा की। इस कारण यह तीर्थ सिख श्रद्धालुओं के लिए उतना ही पवित्र व पुण्य देने वाला माना जाता है, जितना कि हिन्दुओं में भगवान श्रीराम व श्रीकृष्ण के यहां रुकने के कारण उनकी विशेष आस्थाओं का प्रतीक है। प्राचीनकाल से ही देवी-देवताओं, ऋषि-मुनियों, सूफी-संतों व गुरुओं की धरती रहे कपालमोचन तीर्थराज की यात्रा करने में विभिन्न धर्मों एवं सम्प्रदयों के लोगों की एक विशेष आस्था है। यह स्थान हिन्दू, सिख व मुस्लिम एकता का भी अनूठा तीर्थ है। मेले में तीनों पंथों के लोग एक ही पद्धति से पूजा-अर्चना करते हैं और इकट्ठे ही यहां के तीन पवित्र सरोवरों में स्नान करते हैं। एक साथ ही बैठकर पांच दिन तक लंगर का आनन्द भी लेते हैं।
ऐसी मान्यता है कि कपालमोचन सरोवर में स्नान करने से मनुष्य के जन्म-जन्मांतर के पाप धुल जाते हैं। ऋण मोचन सरोवर में स्नान करने से मनुष्य सभी प्रकार के ऋणों से मुक्त हो जाता है और सूरजकुण्ड सरोवर में स्नान करने से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कपालमोचन तीर्थ के तीनों प्रसिद्ध एवं धार्मिक सरोवर मानव जाति को अन्न, धन व वैभव देने वाले माने जाते हैं। महाभारत और पुराणों में अनेक स्थानों पर इसका नाम आने से इसकी महत्ता सिद्ध होती है। यह भी कहा जाता है कि द्रोपदी और पाण्डवों ने भी इस पवित्र स्थान की यात्रा की थी। कपाल मोचन को गोपालमोचन के रूप में भी जाना जाता है। यह स्थान जगाधरी से लगभग 17 किलोमीटर उत्तर-पूर्व में है।
श्रद्धालुओं ने पंच स्नान करने के लिए इस बार 6 नवम्बर से ही इस पवित्रधाम में आना शुरू कर दिया था और 9 नवम्बर रात्रि को 12 बजे के बाद कार्तिक मास की पूर्णिमा शुरू होते ही यहां के तीनों सरोवरों में स्नान व पूजा-अर्चना के लिए भक्तों का सैलाब सा उमड़ पड़ा।
9 नवम्बर की रात्रि 12 बजे से ही पूरे मेला क्षेत्र में भीड़ अपने पूरे उफान पर थी तथा यह उफान 10 नवम्बर दोपहर बाद तक जारी रहा और पूरे दिन आस-पास के क्षेत्रों से आए स्थानीय हजारों श्रद्धालुओं ने पवित्र सरोवरों में स्नान किया। कपालमोचन के पवित्र सरोवरों में स्नान करने वाले लाखों श्रद्धालु ऐसे भी थे, जो पिछले कई वर्षों से लगातार यहां आ रहे हैं और उन्हें उनकी श्रद्धा का फल भी मिला है, इसलिए यहां प्रत्यक्ष को प्रणाम जैसी ही बात है। मेले में हरियाणा, पंजाब के अलावा हिमाचल, उत्तराखण्ड आदि प्रदेशों से भी बड़ा संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं।
इस बार श्रद्धालुओं ने रात्रि के 6 बजे से 11 बजे तक तीनों सरोवरों के किनारों पर दीप दान किया और पूजा- अर्चना की। लोगों की श्रद्धा देखते ही बनती थी। क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति अपनी हैसियत के हिसाब से सरोवरों के किनारे पर दीप दान कर रहा था। दीप दान करने के बाद लोग वहीं पूजा-अर्चना करते थे और इस समय तीनों सरोवरों के घाट मन्दिरों का रूप धारण कर लेते थे।
प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी जगाधरी में मेले का लघु रूप दिखाई दिया, क्योंकि ज्यादातर श्रद्धालुओं ने जगाधरी बस स्टैण्ड के आस-पास बर्तनों की दुकानों से भारी मात्रा में खरीददारी की। जगाधरी का सेना मैदान श्रद्धालुओं के वाहनों से भरा हुआ था और जगाधरी बस स्टैण्ड के आसपास भी एक छोटा मेला दिखाई दे रहा था। प्रत्येक श्रद्धालु ने मेले तथा जगाधरी से कुछ न कुछ अवश्य खरीदा। उल्लेखनीय है कि जगाधरी पीतल नगरी या बर्तन नगरी के रूप में देशभर में विख्यात है। इसीलिए इस मेले की परम्परा है कि यहां श्रद्धालु बर्तन और बैठने वाले छोटे पीहड़े अवश्य खरीदते हैं, क्योंकि बर्तनों को समृद्धि का सूचक तथा पीहड़ों को वंशवृद्धि का सूचक माना जाता ½èþ*n
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कलश यात्रा की परम्परा टूटी
यमुनानगर जिले में पवित्र कपालमोचन के साथ-साथ श्री आदिबद्री तीर्थ स्थल भी सरकारी लापरवाही का शिकार हुआ है। प्रशासन के ढुलमुल रवैये के कारण श्री सरस्वती उद्गम स्थल से निकाली जाने वाली कलश यात्रा की परम्परा टूट गई है। यात्रा के आयोजक इसके लिए सीधे तौर पर वन विभाग को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। श्री आदिबद्री में 6 नवम्बर को श्री अन्नपूर्णा वानस्पतिक महायज्ञ आरम्भ हुआ था। यह महायज्ञ लगातार पांचवें वर्ष करवाया जा रहा था। छह दिनों तक चलने वाले महायज्ञ के प्रथम दिन श्री सरस्वती उद्गम स्थल से श्री आदिबद्री तक कलश यात्रा निकाली जानी थी। लेकिन सरस्वती उद्गम स्थल पर गंदगी व कूड़े-कर्कट का ढेर लगा होने से इस बार यात्रा यहां से नहीं निकाली जा सकी। श्री आदिबद्री मंत्र देवी गऊ रक्षा समिति के अध्यक्ष व काठगढ़ गांव के सरपंच विनय स्वरूप ब्रह्मचारी ने बताया कि बरसात में श्री सरस्वती उद्गम स्थल ढह जाने के बाद वहां काफी मलवा इकट्ठा हो गया था। श्री आदिबद्री में आयोजित होने वाले श्री अन्नपूर्णा वानस्पतिक महायज्ञ से पूर्व सारा मलवा हटवाने का भी भरोसा दिया था। श्री सरस्वती उद्गम स्थल की सफाई न होने के कारण इस बार परम्परा को तोड़ते हुए अष्ट वसु जल धारा सोमनदी से कलश यात्रा शुरू करनी पड़ी। इस बारे में जिला वन अधिकारी आर. गुलिया का कहना है कि सरस्वती उद्गम स्थल में मलवा हटवाने का काम वन विभाग का नहीं है। श्री आदिबद्री तीर्थ स्थल श्राइन बोर्ड के अधीन आ चुका है। यहां की साफ-सफाई का जिम्मा बोर्ड का है।
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