व्यंग्य बाण
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विजय कुमार
मेरे पड़ोसी शर्मा जी स्वयं खुश रहते हैं और बाकी लोगों को भी खुश रखते हैं। अत: लोग उन्हें सदाखुश बाबू भी कहते हैं।
जिस दिन विश्व की जनसंख्या सात अरब हुई, उस दिन मिले, तो खुशी मानो गिलास से बाहर छलक रही थी। देखते ही लिपट गये और मेरे बीमार दिल को इतनी जोर से दबाया कि वह राम-राम से “राम-नाम सत्य है” की तैयारी करने लगा। जैसे-तैसे अलग होकर मैंने इस प्रसन्नता का कारण पूछा।
उन्होंने मुझे एक समाचार पत्र दिखाया। उसमें लिखा था कि जनसंख्या वृद्धि की गति पूरे विश्व में क्रमश: घट रही है। पांच से छह अरब वह 11 साल में हुई, तो छह से सात अरब तक पहुंचने में 13 साल लग गये। पत्र के अनुसार अब सात से आठ होने में 15 तथा आठ से नौ होने में 18 साल लगेंगे। इसके बाद जनसंख्या स्थिर हो जाएगी।
आगे लिखा था कि 2050 ई. के बाद जनसंख्या घटने लगेगी और 22वीं सदी प्रारम्भ होने तक वह फिर उसी तीन अरब के आंकड़े पर पहुंच जाएगी, जहां 20वीं सदी के प्रारम्भ में थी।
मैं समझा नहीं कि वे कहना क्या चाहते हैं? मेरी चुप्पी और चेहरे पर बने प्रश्नचिन्ह को देखकर वे हंसे।
– ऐसे क्या मूर्खों की तरह देख रहे हो? जनसंख्या विशेषज्ञ कहते हैं कि सम्पन्न और शिक्षित लोग कम बच्चे पैदा करते हैं, जबकि गरीब और अनपढ़ अधिक। इस समय दुनिया में सबसे धनी देश अमरीका है। उसकी अपनी जनसंख्या तो स्थिर हो गयी है, पर उस कमी को दूसरे देशों से आने वाले पूरा कर रहे हैं। वहां जाने वालों में भारतवासियों की संख्या भी खूब है।
– अच्छा फिर?
– जनसंख्या वृद्धि में भारत जैसे विकासशील देश खूब योगदान कर रहे हैं। हमसे आगे अशिक्षित और अविकसित अरब और अफ्रीकी देश हैं। चीन ने भी जनसंख्या वृद्धि को काफी हद तक रोक लिया है।
– तो..?
– तुम भी बुद्धि से पैदल हो वर्मा। यदि यही हाल रहा, तो एक दिन अमरीका पर हमारा कब्जा होगा। मैं तो उस दिन की कल्पना से ही बाग-बाग हो रहा हूं। मेरी निगाह तो व्हाइट हाउस पर है। मैं उसे ही अपना निवास बनाऊंगा।
– शर्मा जी, सपने देखने में कुछ खर्च नहीं होता, पर इस बात को लिख लो कि ऐसा नहीं होने वाला है। आपके भाग्य में व्हाइट हाउस में रहना तो दूर, उसके पास जाना भी नहीं है।
– न हो, पर भारत में हो रहे जनसंख्या परिवर्तन को भी तो देखो।
– दिखाओ….।
– यहां का हाल भी सारी दुनिया जैसा ही है। जनसंख्या भले ही बढ रही हो, पर उसकी वृध्दि की दर क्रमश: घट रही है। कुछ समय बाद यहां भी जनसंख्या घटने लगेगी। मकान तो होंगे, पर उनमें कोई रहने वाला नहीं होगा। तब मैं राष्ट्रपति भवन में रहूंगा।
– लेकिन शर्मा जी, भारत में किसकी संख्या घट रही है और किसकी नहीं, इस पर भी तो ध्यान दो। यदि यही हाल रहा, तो राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री निवास में हम और आप नहीं, वे लोग रहेंगे, जो पाकिस्तान के मैच जीतने पर शीरनी बांटते हैं।
– मैं तो ऐसा नहीं समझता।
– आप भले ही न समझें, पर अगले 60-70 साल में यही होना है।
– चलो छोड़ो, हमें इससे क्या लेना। तब तक किसने जीना है। इस बारे में सोच-सोचकर हम अपनी खुशी कम क्यों करें ?
काश, कोई सदाखुश बाबू की आंख में उंगली डालकर दिखाए कि जनसंख्या के जिन आंकड़ों से वे खुश हो रहे हैं, उसके पीछे कितने भयावह परिणाम छिपे हैं। कबूतर यदि बिल्ली को देखकर आंख बंद कर ले, तो खतरा नहीं टल जाता।
ऐसे सदाखुश बाबू हर जगह मिलते हैं। हो सकता है वे आपके पड़ोस में भी हों। यह खुशी उनकी भावी पीढ़ियों के लिए दुखदायी न बन जाए, इसके लिए उन्हें जगाना होगा। वे सोते न रह जाएं, यह देखना हर जागरूक नागरिक का कर्तव्य है।
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