बात बेलाग
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बहुमत से उपजी अहमन्यता के घोड़े पर सवार मनमोहन सिंह सरकार की हेकड़ी एफडीआई पर भी निकल गयी। महंगाई और काले धन के मुद्दों से मुंह चुराने के लिए इस सरकार ने जिस तरह आनन-फानन में “मल्टी ब्रांड” खुदरा क्षेत्र में 51 प्रतिशत और “सिंगल ब्रांड” खुदरा क्षेत्र में 100 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का फैसला लिया था, उसने विपक्ष के साथ-साथ सरकार में शामिल घटक दलों को भी हैरत में डाल दिया था। भारतीय करोबार जगत के लिए घातक इस फैसले पर मुख्य विपक्षी दल भाजपा की अगुआई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन और वामपंथी दलों का विरोध तो तीखा था ही, लेकिन सरकार में शामिल तृणमूल कांग्रेस व द्रमुक घटक दलों तथा बाहर से समर्थन दे रहे सपा, बसपा और राजद सरीखे दलों के तीखे तेवरों को संप्रग सरकार झेल नहीं पाई। बेशक इन सबके विरोध के अपने अलग-अलग कारण हैं, पर मनमोहन सरकार का बहुमत का नशा काफूर हो गया। इतने अहम नीतिगत मुद्दे पर संसद सत्र जारी रहने के दौरान फैसला लेने वाली सरकार इस पर मतदान के प्रावधान के साथ सदन में चर्चा का साहस भी नहीं जुटा पायी। नतीजतन संसद लगातार ठप रही। हां, फूट डालो राज करो की अंग्रेजों की नीति का अनुसरण करते हुए सरकार ने 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में फंसी द्रमुक को जरूर इस बात के लिए मना लिया कि विरोध में बोलते हुए भी वह मतदान में सरकार का साथ दे, लेकिन पश्चिम बंगाल में जबरदस्त जीत हासिल करने के बाद बुलंद हौसलो वाली तृणमूल मतदान से अनुपस्थित रहने के लिए भी नहीं मानी। आखिरकार नौ दिन ठप रहने के बाद संसद सात दिसंबर को तभी चल पायी, जब सरकार ने ऐलान किया कि एफडीआई पर अपने फैसले को वह तब तक स्थगित रखेगी, जब तक कि राजनीतिक दलों और मुख्यमंत्रियों से विचार-विमर्श में आम राय नहीं बन जाती।
आनंद ही आनंद
वक्त से पहले और ज्यादा मिल जाने का नशा कुछ और ही होता है। खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश संबंधी विवादास्पद फैसला मनमोहन सिंह सरकार ने किस गणित और दबाव के तहत लिया, यह लंबी बहस का मुद्दा है। पर इससे सरकार के संकट में पड़ जाने पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और केन्द्रीय वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी जहां सहयोगी दलों और विपक्ष को मनाने में जुटे थे, वहीं केन्द्रीय उद्योग, वाणिज्य एवं कपड़ा मंत्री आनंद शर्मा मीडिया में एक के बाद एक आक्रामक इंटरव्यू देकर माहौल को और गरमा रहे थे। इस विवाद के दौरान आनंद ने जितने मीडिया इंटरव्यू दिये, उतने शायद अभी तक के मंत्रीकाल में नहीं दिये होंगे। उनके दो जुमले बहुत मशहूर हुए- एक, चुनाव के डर से सरकार फैसले लेना नहीं छोड़ सकती। दूसरा, कुछ राज्य अन्य राज्यों पर फैसला “वीटो” नहीं कर सकते। वैसे ज्यों ही तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी की धमकी के आगे झुकते हुए सरकार ने एफडीआई के फैसले को स्थगित किया, आनंद के अनमोल वचन नदारद हो गये। कांग्रेस आलाकमान के दरबारियों की गणेश परिक्रमा के जरिये राजनीति में पायदान चढ़ने वाले आनंद शर्मा मनमोहन सिंह के पिछले प्रधानमंत्रित्वकाल में बतौर राज्य मंत्री आये थे, लेकिन आज तीन-तीन महत्वपूर्ण मंत्रालयों के कैबिनेट मंत्री हैं।
कैलेंडर में “भारत निर्माण”
उचित रखरखाव के अभाव में लाखों टन खाद्यान्न सड़ रहा है और लोग भूखों मरने को मजबूर हैं। सर्वोच्च न्यायालय कहता है कि सड़ने के बजाय खाद्यान्न गरीबों में मुफ्त बांट दिया जाये, पर मनमोहन सिंह सरकार साफ इनकार कर देती है। पिछले चार साल से बेलगाम बनी हुई महंगाई ने आम आदमी का जीवन दुष्कर बना दिया है तो भ्रष्टाचार के नित उजागर होते कांड नये-नये कीर्तिमान स्थापित कर रहे हैं। इसके बावजूद मनमोहन सिंह सरकार का दावा है कि “भारत निर्माण हो रहा है”। चूंकि भारत निर्माण वास्तविकता में तो कहीं नजर नहीं आता, सो सरकार ने उसे कैलेंडर पर साकार कर दिखाया है। वर्ष 2012 का जो सरकारी कैलेंडर जारी किया गया है, उसमें महीनेवार सरकार की कथित उपलब्धियों का बखान करते हुए यह बताने की कोशिश की गयी है कि वह किस तरह भारत निर्माण कर रही है। कैलेंडर पर किया गया यह भारत निर्माण ही ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंच सके, इसलिए इस बार कैलेंडर भी ठोक कर 12 लाख छपवाये गये हैं। इस उपलब्धि पर सूचना-प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी तो गद्गद् हैं।
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