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पाञ्चजन्य

by
Dec 6, 2011, 12:00 am IST
in Archive
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सम्पादकीय

दिंनाक: 06 Dec 2011 15:29:22

क्षणिका: सकला: समागमा: कृतमेकं हि विवर्तते परम्।

संसार के समस्त सम्बंध तथा पदार्थ क्षणिक हैं। केवल अपना कर्म ही शेष रह जाता है।                         –धनंजय (द्विसंधान, महाकाव्य, 4/8)

मुस्लिम आरक्षण की राजनीति

उत्तर प्रदेश विधानसभा के आगामी चुनावों को लेकर मुस्लिम आरक्षण के मुद्दे पर अब चुनावी राजनीति गरमाने लगी है, विशेषकर सत्तारुढ़ बहुजन समाज पार्टी व अपने को सत्ता का प्रबल दावेदार मानने की खुशफहमी पाले बैठी कांग्रेस के बीच पैंतरेबाजी शुरू हो गई है। कांग्रेस के 'युवराज' राहुल गांधी के 'मिशन यूपी 2012' की सफलता देखने के लिए पार्टी इतनी उतावली है कि वह राष्ट्रहित और जनहित को ताक पर रखकर कुछ भी करने को तैयार है। विशेषकर मुस्लिम तुष्टीकरण के द्वारा उ.प्र.के मुस्लिम मतदाताओं को लुभाने के लिए वह अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण कोटे में से ही पिछड़े मुस्लिमों को आरक्षण देने की तैयारी में जुट गई है। उ.प्र. में सत्तारूढ़ बसपा की मुखिया मायावती ने अपने खिसकते जनाधार को संभालने के लिए मुस्लिम मतदाताओं के बीच अपनी पैठ बनाने के उद्देश्य से मुसलमानों को आरक्षण दिए जाने की वकालत करते हुए प्रधानमंत्री को पत्र लिखा और राज्य में मुसलमानों की दबती नस पकड़कर बढ़त लेनी चाही। लेकिन प्रधानमंत्री ने राज्य स्तर पर कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और केरल की तर्ज पर मायावती को कदम उठाने की बात कहकर जहां एक ओर गेंद बसपा के पाले में डाल दी, वहीं अब केन्द्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री सलमान खुर्शीद ने यह कहकर सरकार की मंशा साफ कर दी है कि कोटे में कोटा के 'सिद्धांत' के आधार पर अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए निर्धारित 27 प्रतिशत आरक्षण के अंदर ही पिछड़े मुसलमानों को भी आरक्षण दिए जाने पर सरकार विचार कर रही है और इस संबंध में शीघ्र फैसला किया जाएगा। माना जा रहा है कि अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण में 8.33 प्रतिशत आरक्षण मुसलमानों को दिए जाने की तैयारी है और यह घोषणा उ.प्र.चुनाव से पहले ही केन्द्र सरकार कर सकती है।

प्रश्न उठता है कि जब संविधान में मजहबी आधार पर आरक्षण की किसी व्यवस्था का प्रावधान ही नहीं किया गया तो क्या पीछे के रास्ते इस कोशिश के द्वारा वोट की राजनीति करना देश और समाजहित में उचित है? इस आधार पर आरक्षण दिए जाने के बजाय आर्थिक आधार पर सभी को आरक्षण मिले तो यह एक न्यायसंगत व्यवस्था होगी, लेकिन सत्ता का दुरुपयोग करके अपना 'वोट बैंक' मजबूत करने के लिए आरक्षण देकर समुदाय विशेष का तुष्टीकरण किया जाना एक खतरनाक प्रवृत्ति को बढ़ावा देना है। उ.प्र.चुनाव के संदर्भ में देखें तो दुर्भाग्य से कांग्रेस, सपा और बसपा आदि राजनीतिक दल अपने सत्तास्वार्थों के लिए इस अभियान में जुटे हैं। बसपा और कांग्रेस के बीच तो यह स्पर्धा इस हद तक पहुंच चुकी है कि कौन किसे पछाड़े। बसपा आगामी 18 दिसंबर को मुसलमानों का एक बड़ा सम्मेलन करने की तैयारी में जुटी है और वह प्रधानमंत्री को मायावती के पत्र के आधार पर मुस्लिम मतदाताओं को यह संदेश देने का प्रयास करेगी कि वह तो मुसलमानों के लिए आरक्षण दिलाने की हामी है, लेकिन कांग्रेस बहाने बना रही है। इसी की संभावित काट के रूप में सलमान खुर्शीद का बयान आया है। वोट के लिए मुस्लिमों को खुश करने हेतु कांग्रेस किस हद तक जा सकती है, इसका एक और उदाहरण साम्प्रदायिक व लक्षित हिंसा रोकथाम विधेयक है, जिसे कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद ने तैयार किया है। इस परिषद में चुन-चुनकर हिन्दुत्व विरोधी तत्वों को स्थान दिया गया है। हाल ही में जमायते उलेमाए हिंद के सम्मेलन में इस विधेयक को संसद में पारित किए जाने की पुरजोर मांग की गई। वहां उपस्थित केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद ने आश्वासन दिया कि सरकार इस विधेयक को पारित कराने के लिए प्रतिबद्ध है। जबकि वास्तविकता यह है कि विधेयक संविधान की मूल भावना व देश के बहुसंख्यक हिन्दू समाज के खिलाफ है। लेकिन सत्ता और वोट के लालच में कांग्रेस इस देश के सामाजिक ताने-बाने व राष्ट्रीय संप्रभुता की भी बलि चढ़ाने को तैयार है। इसके विरुद्ध प्रबल लोक जागरण आवश्यक है ताकि कांग्रेस के सत्ता-लोलुप देश-तोड़क मंसूबे पूरे न हो सकें।

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