पाठकीय
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पाठकीय
अंक-सन्दर्भ : 30 अक्तूबर,2011
उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों से पहले राज्य को चार हिस्सों में बांटने की राजनीतिक चाल मायावती द्वारा चली जा रही है। पिछले दिनों उन चार हिस्सों का एक खाका भी उन्होंने तैयार कर दिया। परन्तु इस चार विभाजन के फलस्वरूप बनने वाले पश्चिमी उत्तर प्रदेश रूपी “हरित प्रदेश” के भयावह स्वरूप की कल्पना भी किसी ने की है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश रूपी “हरित प्रदेश”के अधिकांश जिलों में मुसलमानों की जनसंख्या 30 से 40 प्रतिशत के आस-पास पहुंच चुकी है। सन् 2001 की जनगणना में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हिन्दुओं का प्रतिशत 68.3 तथा मुसलमान 25.8 प्रतिशत थे। वहीं 2011 की जनगणना के अनुसार मुस्लिम जनसंख्या बढ़कर लगभग 38.0 प्रतिशत पहुंच चुकी है तथा हिन्दू घटकर 55.0 प्रतिशत के लगभग रह गये हैं। इसके बावजूद मुसलमान समाज अपने अल्पसंख्यक होने की दुहाई देकर आरक्षण तथा सभी सरकारी संसाधनों पर पहला हक लेने को तत्पर हो रहा है और सभी सेकुलर दल मुसलमान-भक्त बनने को लालायित हैं। इसका परिणाम क्या होगा? आखिर कश्मीर के बाद एक और मुस्लिम-बहुल राज्य बनने से कश्मीर और पाकिस्तान का इतिहास दोहराया नहीं जायेगा? अखण्ड भारत में 1939 से 1947 तक जिन्ना की मुस्लिम लीग और इसके द्वारा भारत विभाजन कर मुस्लिम-बहुल क्षेत्रों से पाकिस्तान बनाने का समर्थन करने वाले मुसलमान इसी उत्तर प्रदेश और बिहार से ही थे। यहां के 93 प्रतिशत मुसलमानों ने पाकिस्तान निर्माण हेतु मुस्लिम लीग का समर्थन किया था। पाकिस्तान निर्माण के बावजूद भारत के एक मात्र बचे मुस्लिम-बहुल प्रदेश कश्मीर के मुसलमान भी अपनी बहुलता का बहाना बनाकर इसे पाकिस्तान में मिलवाना चाहते हैं। क्या गारण्टी है कि भविष्य में पश्चिमी उत्तर प्रदेश रूपी नए “हरित प्रदेश” के मुसलमान अलगाववादी मांगें नहीं उठायेंगे?
भविष्य में “हरित प्रदेश” में और अधिक मुस्लिम होते ही यहां के अधिकतर नेता, सांसद, विधायक, मंत्री तथा मुख्यमंत्री भी मुस्लिम समाज से बनेंगे। तब इस प्रदेश में जनसंख्या नियंत्रण और अपराध नियंत्रण क्या रह पायेगा? क्योंकि इस पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आने वाले पांच मंडलों (मेरठ, सहारनपुर, आगरा, मुरादाबाद और बरेली) तथा लगभग 25 जिले पहले से ही संवेदनशील और मुस्लिमबहुल हैं। ये सभी क्षेत्र जिहादी आतंकवादियों के प्रभाव वाले क्षेत्र भी माने जाते हैं। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और दारुल उलूम देवबन्द जैसे अलगाववादी मानसिकता वाले संस्थान इसी क्षेत्र में आते हैं। इसके अलावा पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जड़ें फैला रहे मदरसों का जाल भी खुफिया एजेंसियों के लिए चिन्ता का कारण बने हुए हैं। इसलिए कश्मीर और पाकिस्तान के इतिहास से सबक लेते हुए इस मुस्लिम-बहुल “हरित प्रदेश” की संरचना से सावधान रहने की जरूरत है।
-डा. सुशील गुप्ता
शालीमार गार्डन कालोनी, बेहट बस स्टैण्ड सहारनपुर (उ.प्र.)
एक ही रास्ता राष्ट्रवाद
दीपावली विशेषांक पठनीय, संग्रहणीय और प्रेरक रहा। सारे लेख और विचार अच्छे लगे। श्री बल्देव भाई शर्मा का संवाद “अंधकार से लड़ना होगा”, श्री भैयाजी जोशी का साक्षात्कार “उठो, जलाओ आशा दीप” एवं अन्य लेख आशा बंधाते हैं। किन्तु अफसोस यह है कि तुष्टीकरण की कुर्सी पर काबिज होने वाले सेकुलर नेता कब सुधरेंगे?
-हरेन्द्र प्रसाद साहा
नया टोला, कटिहार-854105 (बिहार)
द विशेषांक बहुत ही महत्वपूर्ण विचारों से सुसज्जित है। सभी लेखकों ने राष्ट्र और समाज के सामने जो चुनौतियां हैं, उन्हें पूरी लगन के साथ उजागर किया है। परन्तु हमारे सामने आज समस्या यह खड़ी है कि हमारी शिक्षा-दीक्षा, रहन-सहन, खान-पान, जीवनचर्या आदि विदेशी तौर-तरीकों के आधार पर चल पड़ी है। इन्हीं कारणों से हमारी विचारधाराएं प्रभावित हो रही हैं।
-लक्ष्मी चन्द
गांव-बांध, डाक-भावगढ़ी
जिला-सोलन-173233 (हि.प्र.)
द इस अंक में प्रकाशित सभी आलेखों ने हमारे अज्ञान को भगाकर महत्वपूर्ण तथ्यों से साक्षात्कार कराया है। सरदार पटेल द्वारा पण्डित नेहरू को यह सच्चाई बताने पर कि फिरोज गांधी और रफी अहमद किदवई रिश्वत लेकर लाइसेंस बेच रहे हैं और उनका चुप्पी साधे रहना यह स्पष्ट करता है कि भ्रष्टाचार की शुरुआत नेहरू युग से ही हो चुकी थी। वर्तमान कांग्रेस सरकार भी उसी का अनुगमन कर रही है।
-क्षत्रिय देवलाल
उज्जैन कुटीर, अड्डी बंगला, झुमरी तलैया, कोडरमा, झारखण्ड-825409
द सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के राजदूत के रूप में आज पाञ्चजन्य देश और दुनिया के सामने है। इसका अभिनव अंक “जलाएं आशा-दीप” हमारे हाथों में है। विश्वास से भरपूर “संवाद” से लेकर चुनौतियों को चुनौती देता श्री भैया जी जोशी का आह्वान और सर्वश्री नरेन्द्र सहगल, हृदयनारायण दीक्षित, दया प्रकाश सिन्हा, रमेश नैयर, डा. वीना अग्रवाल के आलेख-प्रस्तुत अंक की विशेष उपलब्धि हैं। सर्वश्री शिवओम अम्बर, मृदुला सिन्हा, अशोक अंजुम और शैवाल सत्याथी की रचनाएं-दीप-अंक की साहित्यिक- काव्य- ज्योति को प्रज्ज्वलित करती हैं।
-डा. ऋचा सत्यार्थी
बुढ़ार, शहडोल (म.प्र.)
द श्री नरेन्द्र सहगल के आलेख “सांस्कृतिक राष्ट्रवाद” में किया गया यह आकलन बिल्कुल सटीक है कि “भारत की राष्ट्रीय पहचान सांस्कृतिक राष्ट्रवाद अर्थात् हिन्दुत्व सभी जातियों, पंथों, मजहबों, वर्गों और क्षेत्रों को जोड़कर रखने का सशक्त आधार है। यह तथ्य भी अकाट्य है कि हिन्दुत्व के क्षीण होने से ही देश अनगिनत व्याधियों का शिकार होता जा रहा है। जबकि विश्व के सभी मत-पंथों में श्रेष्ठतम केवल हिन्दू धर्म ही ऐसा है जो विश्व कल्याण की भावना को प्रोत्साहन देता आया है। यही वजह है कि आज वैदिक मंत्र लंदन के बकिंघम पैलेस में आयोजित समारोह में और संयुक्त राष्ट्र महासभा में गूंज रहे हैं। अमरीकी सीनेट का अधिवेशन भी इन्हीं वैदिक मंत्रों के उद्घोष से आरम्भ किया जाता है। परन्तु हमारे देश में इस प्रकार के आग्रह को साम्प्रदायिक माना जाता है।
-आर.सी. गुप्ता
द्वितीय ए-201 नेहरू नगर
गाजियाबाद-201001 (उ.प्र.)
द डा. कुलदीप चन्द्र अग्निहोत्री ने अपने लेख “भारतीय समाज की आधारभूत एकता” में बताया है, “भारतीय समाज को विभाजित करने का काम अंग्रेजों द्वारा अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना के बाद शुरू हुआ। 1857 से पहले मुस्लिम बंधु हिन्दुओं के साथ मिल-जुलकर रहते थे।” यह विलक्षण है। क्योंकि इतिहास साक्षी है कि इस्लाम का इतिहास शेष मानव जाति, विशेषकर उन लोगों के लिए जो इनकी विचारधारा में विश्वास नहीं करते, बड़ा ही दु:खद और यातनाओं से भरा रहा है।
-पवन कुमार जैन
287, वार्ड नं. 17, मैगजीन मोहल्ला
संगरूर-148001 (पंजाब)
द भारत की सांस्कृतिक एवं लोकतांत्रिक व्यवस्था के दीपक की लौ को बुझाने के लिए आज चीन, पाकिस्तान और बंगलादेश एक हो गए हैं। इनकी नफरत की आग को कायम रखने के लिए अमरीका एक तरह का ईंधन बन गया है। किन्तु भारत सरकार निश्चिन्त बैठी है। उसने राष्ट्रधर्म को तिलांजलि दे दी है। सरकार सरेआम अपनी अकमण्र्यता का परिचय दे रही है।
-सूर्यप्रताप सिंह सोनगरा
कांडरवासा, रतलाम-457222 (म.प्र.)
कांग्रेस सदैव यह दिखाने और बताने की कोशिश करती है कि वास्तव में वही मुसलमानों की हितैषी है। जबकि कांग्रेस को न तो मुसलमानों पर भरोसा है, और न ही मुसलमानों को कांग्रेस पर। दोनों के बीच जो थोड़े-बहुत संबंध दिखते हैं, उनकी नींव में प्रपंच और स्वार्थ की ईंटें लगी हैं। कांग्रेस केवल मुसलमानों को डरा-धमकाकर उनका वोट लेना चाहती है। यदि कांग्रेस मुसलमानों के लिए कुछ करती तो उसे सच्चर समिति या रंगनाथ मिश्र आयोग बनाने की जरूरत नहीं पड़ती। यह भी सच है कि कांग्रेसी राज में सबसे अधिक दंगे होते हैं। इसका क्या अर्थ है, यह बताने की जरूरत नहीं है।
-कालीमोहन सिंह
गायत्री मन्दिर, मंगलबाग, आरा, भोजपुर (बिहार)
द अपने आपको प्रबल राष्ट्र-हित चिन्तक संगठन के रूप में दर्शाने वाली कांग्रेस ने 1947 में सत्ता प्राप्ति के लोभ में भारत का मजहबी आधार पर विभाजन स्वीकार किया। लेकिन इसके बावजूद कांग्रेस ने शेष खण्डित भारत में मुस्लिम तुष्टीकरण का त्याग नहीं किया। पिछले दशक से तो मुस्लिम तुष्टीकरण की सभी सीमाएं तोड़कर केवल “मुस्लिम हितों के पोषण” के नाम पर अनेक राष्ट्र विरोधी व हिन्दू विरोधी योजनाएं बनाने व पारित कराने में कांग्रेस सरकार लगी हुई है और मुस्लिम समुदाय को लुभाने के लिए अनेक प्रकार के प्रलोभन दिये जा रहे हैं।
-आनन्द मेहता
13/740, सर्राफा बाजार, सहारनपुर (उ.प्र.)
द देश विभाजन के लिए मुस्लिम लीग और कांग्रेस जिम्मेदार हैं। दुर्भाग्य की बात है कि आज भी ये दोनों दल देश-विभाजन की नींव रखने में आगे हैं। कांग्रेसी करतूतें तो जाहिर हैं, किन्तु मुस्लिम लीग बड़ी चतुराई से अपने मंसूबों को अंजाम दे रही है। जिस मुस्लिम लीग ने स्पष्ट रूप से पाकिस्तान की मांग की थी वही आज भी भारत में सक्रिय है। केरल और केन्द्र की सरकारों में मुस्लिम लीग की भागीदारी भी है।
-ईश्वर चन्द्र
239, धर्मकुंज आपार्टमेन्ट, सेक्टर-9, रोहिणी, दिल्ली
इतिहास की पुनरावृत्ति
कहावत है “इतिहास पुनरावृत्ति करता है।” यह कहावत आज भारत पर लागू प्रतीत हो रही है। स्वतंत्रता से पहले अंग्रेजों ने भारतीय समाज को दो विरोधी खेमों में बांटने के प्रयास किए। उन्होंने मुसलमानों को बढ़ावा दिया और हिन्दुओं को दबाया। सरकारी सेवाओं और विधान परिषदों में उन्हें आरक्षण दिया गया। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को मुस्लिम राजनीति का गढ़ बना दिया। बाद में यहां के विद्यार्थी ताण्डव नृत्य करने लगे। देश के बंटवारे के पक्ष में प्रचार करने लगे। अन्तत: देश बंट गया। आज फिर मुसलमानों को आरक्षण देने की बात होने लगी है। कहीं-कहीं तो आरक्षण दे भी दिया गया है। यह मुस्लिम तुष्टीकरण आधारित सत्ता की राजनीति कहीं देश का बेड़ा गर्क न कर दे।
-शान्ति स्वरूप गुप्त
60, जनकपुरी, अलीगढ़-202001 (उ.प्र.)
पञ्चांग
वि.सं.2068 तिथि वार ई. सन् 2011
मार्गशीर्ष शुक्ल 2 रवि 27 नवम्बर, 2011
“” “” 3 सोम 28 “” “”
“” “” 5 मंगल 29 “” “”
(चतुर्थी तिथि का क्षय)
“” “” 6 बुध 30 “” “”
“” “” 7 गुरु 1 दिसम्बर, 2011
“” “” 8 शुक्र 2 “” “”
“” “” 9 शनि 3 “” “”
भंवरी का भंवर
भंवरी देवी का भंवर, लेगा कितनी जान
पूछ रहा है देश सब, पूछे राजस्थान।
पूछे राजस्थान, कौन यह उत्तर देगा
काली घोर कुठरिया, साफ कौन निकलेगा?
कह 'प्रशांत' कुर्सी है सबको भ्रष्ट बनाती
इसकी माया गजब, सभी को नाच नचाती।।
–प्रशांत
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