बात बेलाग
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बात बेलाग
समदर्शी
सात साल से देश को जानने के नाम पर टीवी कैमरों के साथ गरीबों की झोपड़ियों में जाकर फोटो खिंचवाने वाले कांग्रेस के 'युवराज' अभी तक यह भी नहीं जान पाए हैं कि देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश से बड़ी संख्या में लोग रोजगार की तलाश में दूसरे राज्यों में क्यों जाते हैं। तभी तो उन्होंने जवाहर लाल नेहरू का प्रथम संसदीय निर्वाचन क्षेत्र रहे फूलपुर में एक रैली में लोगों से किसी फिल्मी डॉयलाग के अंदाज में अपमानजनक शब्दावली में यह सवाल पूछ डाला कि आखिर वे कब तक महाराष्ट्र में भीख मांगते रहेंगे और पंजाब में मजदूरी करते रहेंगे? दो दशक पहले उत्तर प्रदेश की सत्ता से बाहर हुई कांग्रेस अब वहां हाशिये पर फिसल गयी है। इसलिए 'युवराज' की खीज समझी जा सकती है, पर उन्हें यह कौन समझाये कि पलायन का यह दंश तो उत्तर प्रदेश बहुत पहले से झेल रहा है और इसके लिए दोषी हैं नेहरू से लेकर मनमोहन सिंह तक विभिन्न कांग्रेसी सरकारों द्वारा अपनायी गयीं गलत आर्थिक नीतियां। ये सरकारें बनीं तो देश भर के मतदाताओं के समर्थन और बहुमत से, लेकिन विकास के मामले में उनकी तंग नजर चंद बड़े शहरों से आगे नहीं जा पायी। यह पहला मौका नहीं है, जब कांग्रेस का 'भविष्य' माने जाने वाले राहुल ने विवादास्पद टिप्पणी की है। लेकिन ताजा टिप्पणी पर लोगों की नाराजगी से लगता है कि इस बार उन्हें मतदान के जरिये खरा-खरा जवाब जरूर मिल जाएगा।
झलक दिखला दी
जब सोनिया गांधी का प्रधानमंत्री बनने का सपना पूरी नहीं हो पाया तो राहुल के बारे में क्या कहा जाये? फिर भी कांग्रेस में ऊपर से नीचे तक पसरे परिवारवाद और चाटुकारिता के मद्देनजर उनका कांग्रेस अध्यक्ष बनना तो तय माना जा रहा है। अपनी ही तरह जड़ और जमीन से कटे सहयोगियों की टीम बनाने के बाद राहुल अब कांग्रेस में भी अपनी टीम बनाने में लगे हैं। यह काम वह युवा कांग्रेस के जरिये कर रहे हैं। पर जिस तरह की पार्टी का ढांचा वह बना रहे हैं, उसका चेहरा और चरित्र डराने वाला है। फिलहाल राहुल 'मिशन-2012' के तहत उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को हाशिये से राजनीति के केन्द्र में लाने में जुटे हैं। हाल ही में पश्चिम उत्तर प्रदेश युवा कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए हुए चुनाव में 'राहुल कांग्रेस' की जो झलक दिखी, वह तो मुलायम सिंह यादव और मायावती के माफिया राज से भी ज्यादा डरावनी थी। आपराधिक मुकदमों के चलते एक दावेदार ने अपनी घर-गृहस्थी संभाल रही पत्नी को ही उम्मीदवार बना दिया। इसके बावजूद वह फर्जी मतदान कराने मतदान केन्द्र पर पहुंच गया। दूसरी उम्मीदवार का पति भी कमजोर नहीं था। सो, दोनों ओर से एक दो नहीं, पूरे दस राउंड गोलियां चलीं। दोनों ओर से एफआईआर भी दर्ज करायी गयी, पर अंतत: उन्हीं में से एक को अध्यक्ष घोषित कर दिया गया और दूसरी को बाद में महासचिव नियुक्त कर दिया गया। संदेश साफ है कि परिवारवाद और अपराधीकरण ही 'राहुल कांग्रेस' की प्रमुख पहचान होगी। वैसे राहुल कांग्रेस की एक झलक फूलपुर में भी दिखी, जहां उन्हें काले झंडे दिखाने गये छात्र नेताओं पर केन्द्रीय राज्य मंत्री जितिन प्रसाद, उत्तर प्रदेश कांग्रेस विधायक दल के नेता प्रमोद तिवारी और विधान परिषद सदस्य नसीब पठान सहित अनेक कांग्रेसी बुरी तरह टूट पड़े।
भंवर में गहलोत
भंवरी के भंवर से राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत फिलहाल तो सुरक्षित बच निकले, पर यह अभयदान तात्कालिक ही है। भंवरी देवी नामक एक नर्स की कुछ नेताओं के साथ आपत्तिजनक अवस्था में सीडी सार्वजनिक हो जाने से राजस्थान की राजनीति में उठे भंवर में गहलोत की कुर्सी जाते-जाते ही बची है, क्योंकि कोई स्वीकार्य विकल्प आलाकमान नहीं खोज पाया। वैसे यह कहना ज्यादा सही होगा कि दरबारियों को खुश रखने में माहिर गहलोत के शुभचिंतकों ने आलाकमान को भ्रमित कर दिया है। शायद इसलिए भी कि भंवरी के भंवर में फंसने वालों में कांग्रेस के कुछ केन्द्रीय नेता भी शामिल बताये जा रहे हैं। इसीलिए गाज फिलहाल गहलोत के बजाय कुछ मंत्रियों पर ही गिरकर रह गयी। हर मोर्चे पर नाकाम मुख्यमंत्री साबित हो चुके गहलोत ने खुद पर मंडराते संकट का फायदा उठाकर मंत्रिमंडलीय फेरबदल के नाम पर पांच मंत्रियों को चलता कर दिया। महिपाल मदेरणा तो पहले ही भंवरी के भंवर में अपना मंत्री पद गंवा चुके थे, फिर भी उनके विरोधियों ने उम्मीद नहीं छोड़ी है। पर दिक्कत यह है कि मुख्यमंत्री पद के ज्यादातर मजबूत दावेदार सांसद हैं और किसी सांसद को मुख्यमंत्री बनाने में कांग्रेस इसलिए हिचक रही है, क्योंकि आज के हालात में कांग्रेस दोबारा वह सीट नहीं जीत पायेगी।
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