संकटों से उबरने के लिए समाज एकजुट हो
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समाज एकजुट हो
-सुरेश सोनी, सह-सरकार्यवाह, रा.स्व.संघ
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह-सरकार्यवाह श्री सुरेश सोनी ने देश को तोड़ने में लगीं अंदरूनी और बाहरी ताकतों से जनता को सावधान करते हुए अपनी मानसिकता में बदलाव लाने का आह्वान किया है। उन्होंने चीन-पाकिस्तान गठजोड़, इस्लामी जिहाद, माओवाद, चर्च के षड्यंत्र और भ्रष्टाचार की चुनौतियों से निपटने के लिए सामाजिक एकजुटता और दृढ़ निश्चय की आवश्यकता पर भी बल दिया। वे गत दिनों शिमला में “राष्ट्रीय सुरक्षा के समक्ष चुनौतियां एवं निराकरण” विषय पर हुई संगोष्ठी को मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित कर रहे थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए विख्यात अर्थशास्त्री एवं हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.अरुण दिवाकर नाथ वाजपेयी ने राष्ट्र के समक्ष उपस्थित चुनौतियों पर चिन्तन न करने की बुद्धिजीवियों की मानसिकता को घातक बताया।
डा. हेडगेवार स्मारक समिति द्वारा आयोजित संगोष्ठी में श्री सोनी ने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा का प्रश्न बहुआयामी है। यह समाज, संस्कृति एवं भूमि से जुड़ा है। उन्होंने तिब्बत का उदहारण देते हुए कहा कि जो समाज अपने आसपास की हलचलों से बेखबर रहता है उसे कोई नहीं बचा सकता। उन्होंने कहा कि संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्री गुरुजी कहा करते थे कि “चीन के शरीर पर बौद्धधर्म कपड़े की तरह है जिसका असर नाममात्र का है। कन्फ्यूशियस का विचार चीन की चमड़ी तक सीमित है और विस्तारवाद उसके हृदय में बसा है।” आज ये बात सब मान रहे हैं।
स्वतंत्रता सेनानी बिपिन चंद्र पाल द्वारा 100 वर्ष पूर्व 1911 में चीन के बारे में कही गई बातों को भी सच बताते हुए श्री सोनी ने कहा कि हमारे राजनीतिक नेता चीन के बारे में काल्पनिक धारणाएं बनाए रहे जिसका हमें नुकसान हुआ। उन्होंने कहा कि श्री बिपिन चंद्रपाल कहते थे- “चीन तब तक शांत रहेगा जब तक विश्व से टकराने लायक नहीं बन जाता।” उन्होंने हमें इससे निपटने के उपाय भी 1911 में बताए थे। ये थे- “आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल, प्रचण्ड सैनिक ताकत, मजबूत अर्थव्यवस्था और ज्यादा से ज्यादा देशों से मैत्री।” लेकिन देश की सरकारों ने 1947 से अब तक कोई सबक नहीं सीखा।
सह-सरकार्यवाह ने कहा कि चीन ने अब भारत की घेराबंदी का पूरा बंदोबस्त कर लिया है। तिब्बत को हड़पने के बाद वहां भारत की सीमा तक उसने सड़कों का जाल बिछा दिया है। पाक अधिकृत कश्मीर में उसके सैनिक मौजूद हैं। अरुणाचल प्रदेश पर वह दावा करता है। पाकिस्तान के ग्वादर में उसने सैन्य बंदरगाह विकसित किया है और श्रीलंका में भी वह यही कर रहा है। नेपाल में उसका बहुत प्रभाव है। भगवान बुद्ध की जन्मस्थली लुंबिनी में विकास के लिए चीन ने 1800 करोड़ रुपए दिए हैं और विकास समिति के अध्यक्ष माओवादी पूर्व प्रधानमंत्री पुष्पकमल दहल “प्रचंड” हैं। ये सारी बातें हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी हैं। इस्लाम में विश्व बंधुत्व का जिक्र करते हुए श्री सोनी ने कहा कि यह सिद्धान्त कहीं पर भी व्यवहार में नहीं दिखता। इस्लामी जिहाद के बर्बर उदाहरण भारत में सैकड़ों साल से दिख रहे हैं। अब भी दुनिया के अनेक देश इसका शिकार हैं। अलकायदा और तालिबान असहिष्णुता के नए मॉडल हैं। नक्सलवाद या माओवाद की शुरुआत उन क्षेत्रों में हुई थी जहां गरीबी, शोषण और सामाजिक अवमानना है। अब यह बर्बरता और अत्याचार का पर्याय बन गया है। अक्सर पशुपतिनाथ (नेपाल) से तिरुपति तक लाल गलियारा बनाने की बात उठती थी। अब माओवाद का दायरा इससे भी बड़ा हो गया है। उत्तर पूर्वी राज्यों के बारे में उन्होंने कहा कि वहां करीब 1500 आतंकी संगठन काम कर रहे हैं। वहां राष्ट्रभक्त लोगों की कमी नहीं है। लेकिन चर्च-प्रेरित अराष्ट्रीय गतिविधियों के आगे सरकार उनकी बात नहीं सुनती। घुसपैठ के कारण असम के आधे जिले बंगलादेशी बहुल हो गए हैं। ईसाइयत में मतान्तरण का अभियान चर्च के माध्यम से पूरे देश में चल रहा है। धार्मिक जनसांख्यिकी में बदलाव चिन्ता का विषय है। श्री सोनी ने कहा कि पड़ोसी देशों- भूटान, नेपाल, श्रीलंका, मालदीव और म्यांमार आदि से मैत्रीपूर्ण संबंध हमारी सीमाओं और आन्तरिक सुरक्षा के लिए आवश्यक हैं। चीन द्वारा ब्रह्मपुत्र एवं अन्य नदियों पर बांध बनाने से भारत ही नहीं, अन्य पड़ोसी देशों पर भी विपरीत असर पड़ेगा। इस बारे में मिलकर सोचना होगा। उन्होंने वोट बैंक के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालने के प्रयासों पर भी चिन्ता जताई। उन्होंने मानवाधिकारों के नाम पर दोहरे मापदण्ड अपनाने की मानसिकता को राष्ट्रघातक बताया। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि यह भी एक गंभीर चुनौती है। उन्होंने कहा कि इसके खिलाफ चल रहे हर आन्दोलन को संघ समर्थन देगा।
श्री सोनी ने राष्ट्र और समाज के सामने खड़ी चुनौतियों पर समाज में व्यापक चिन्तन और चर्चा की जरूरत बताई। उन्होंने कहा कि चाणक्य का कथन है “दुर्जनों की दुर्जनता इतनी हानिकारक नहीं होती, जितनी सज्जनों की निष्क्रियता।” अपने अध्यक्षीय संबोधन में प्रो. अरुण दिवाकर नाथ वाजपेयी ने कहा कि राजनेता, नौकरशाह और विश्वविद्यालयों में बैठे बुद्धिजीवी राष्ट्रीय चुनौतियों पर चिन्तन नहीं करते हैं, यही सबसे बड़ी चुनौती और खतरा है। डा. हेडगेवार समिति के अध्यक्ष श्री देशराज चड्ढा ने सभी अतिथियों का स्वागत किया। समारोह में विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधि, हि.प्र. विश्वविद्यालय के प्राध्यापक एवं अन्य गण्यमान्य नागरिक उपस्थित थे।द अजय श्रीवास्तव
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