कवर स्टोरी
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आधार–कार्ड पर भी वोट बैंक की राजनीति
अरुण कुमार सिंह
दुनिया में शायद भारत ही एकमात्र ऐसा देश होगा, जहां रोजाना हजारों की संख्या में विदेशी नागरिक अवैध रूप से आ रहे हैं, और यहीं बस रहे हैं। इन विदेशियों में सबसे अधिक बंगलादेशी हैं और इसके बाद पाकिस्तानी। अनुमान है कि भारत में इस समय लगभग 5 करोड़ विदेशी नागरिक अवैध रूप से रह रहे हैं। वोट बैंक की राजनीति करने वाले नेता इन अवैध विदेशी नागरिकों को वैधानिक रूप से भारतीय नागरिक बनाने में लगे हैं। ऐसे ही नेताओं ने पहले इन घुसपैठियों के लिए फर्जी राशन कार्ड बनवाए। उसी आधार पर ये घुसपैठिए यहां के मतदाता बन गए। इनसे किन राजनीतिक दलों को लाभ मिल रहा है, यह कोई रहस्य नहीं रह गया है। अब इन्हीं राजनीतिक दलों के नेता इन विदेशी घुसपैठियों के लिए 'आधार-कार्ड' बनवा रहे हैं। आधार, एक आम भारतीय के लिए ऐसा अधिकार है जिससे उसे एक ठोस पहचान मिल रही है, विशेषकर उसको, जिसके पास कोई सरकारी प्रमाण नहीं है। आधार 12 अंकों का एक 'नम्बर' है। यह अनोखा नम्बर देशभर में मान्य होगा। 'आधार कार्ड' के आधार पर किसी भी बैंक में खाता और शेयर खरीदने/बेचने के लिए डीमेड एकाउन्ट खुल सकता है, मोबाइल/टेलीफोन का 'कनेक्शन' मिल सकता है, ड्राइविंग लाइसेंस बन सकता है। आधार कार्ड के आधार पर कोई भी व्यक्ति भारत में सरकारी/गैर-सरकारी नौकरी पा सकता है। जीवन-बीमा करा सकता है। बैंक से कर्ज ले सकता है। मकान और गाड़ी खरीद सकता है। 'गैस-कनेक्शन' ले सकता है। बच्चों को किसी स्कूल में दाखिला मिल सकता है। यानी प्राय: सभी सरकारी/ गैर सरकारी योजनाओं में आधार-कार्ड काम आएगा। चाहे आप बैंक से कर्ज ले रहे हों, गाड़ी खरीद रहे हों या टेलीफोन कनेक्शन ले रहे हों, आधार कार्ड पर मौजूद पते का सत्यापन न बैंक वाला कर सकता है और न गाड़ी वाला। आधार-कार्ड का इतना बड़ा आधार है। किन्तु इस कार्ड को किस तरह बनाया जा रहा है उसे जानकर हर भारत-भक्त की चिन्ता बढ़ जाती है।
आधार-कार्ड बनवाने के लिए आवास और पहचान प्रमाणपत्र देने पड़ते हैं। किन्तु शहर में जिन लोगों के पास आवास या पहचान के लिए कोई दस्तावेज नहीं होता है वे लोग स्थानीय सांसद/विधायक या किसी राजपत्रित पदाधिकारी (ए) द्वारा जारी फोटो-युक्त आवास प्रमाणपत्र के आधार पर 'आधार-कार्ड' बनवा सकते हैं। ग्रामीण स्तर पर सरपंच या उसके समान किसी पदाधिकारी को फोटो-युक्त आवास प्रमाणपत्र जारी करने का अधिकार दिया गया है। किन्तु इस अधिकार का दुरुपयोग दिल्ली में वे पार्षद भी कर रहे हैं, जिन्हें यह अधिकार मिला ही नहीं है।
पिछले दिनों दिल्ली की एक महिला निगम पार्षद ने अपने 'लेटर-पैड' पर लिखकर आधार कार्ड बनवाने के लिए एक युवक को आवासीय प्रमाणपत्र दिया। युवक प. बंगाल का है और यहां अपने बड़े भाई के पास तीन महीने से रहता है। उसके बड़े बाई ने अभी एक साल पहले ही पश्चिम दिल्ली में एक नवनिर्मित फ्लैट खरीदा है। बड़ा भाई, आधार कार्ड बनाने गया, तो छोटे भाई को भी साथ ले गया। छोटे भाई के पास ऐसा कोई कागज नहीं था जिससे कि यह साबित हो सके कि वह दिल्ली में रहता है। इसलिए उसका आधार-कार्ड नहीं बना। किसी ने कहा कि स्थानीय पार्षद से लिखवा लो तो आधार कार्ड बन जाएगा। वह पार्षद के पास गया तो पार्षद ने तुरन्त अपने 'लेटर हैड' पर लिख कर दिया कि 'श्री अविनाश मण्डल को मैं पिछले 3 साल से जानती हूं। ये फ्लैट नं 17, प्लाट नं. 155 स्थान-डाबड़ी, नई दिल्ली में रहते हैं।' जबकि वह फ्लैट ही एक साल पहले बना है और वह युवक भी सिर्फ तीन माह से दिल्ली में रह रहा है। (उपर्युक्त नाम और पता बदला हुआ है।) खैर, पार्षद के उस पत्र के आधार पर उस युवक का 'आधार कार्ड' बन गया। किन्तु वह यह सोचकर परेशान हो गया कि इस तरह तो बड़ी संख्या में देश-विरोधी तत्व किसी भी पते पर 'आधार-कार्ड' बनवा लेंगे। इसके बाद देश का क्या होगा? यह बहुत ही गंभीर सवाल है। उस लड़के के बड़े भाई ने पाञ्चजन्य को पूरे घटनाक्रम की जानकारी देते हुए चिन्ता व्यक्त की कि यदि कुछ आतंकवादी इस तरह से फर्जी आधार-कार्ड बनवा लें तो देश की सुरक्षा खतरे में पड़ जाएगी। फर्जी पते पर मोबाइल या इन्टरनेट कनेक्शन लेकर आतंकवादी कहीं भी किसी तरह की घटना को अंजाम देकर भाग सकते हैं। उन्हें पकड़ना आसान नहीं रहेगा। पाञ्चजन्य को इसकी भी पुख्ता जानकारी मिली है कि दिल्ली में अनेक सेकुलर जनप्रतिनिधि बंगलादेशी मुस्लिम घुसपैठियों को 'आधार-कार्ड' बनवाने में मदद कर रहे हैं। ये घुसपैठिए दिनभर रिक्शा चलाते हैं, और इनकी रातें भी रिक्शा पर ही कटती हैं। इनका कोई स्थाई निवास तो है नहीं। फिर भी इनके 'आधार-कार्ड' बन रहे हैं। निजामुद्दीन के पास एक कॉलोनी में एक व्यक्ति के पास एक हजार से अधिक रिक्शा हैं। उसके रिक्शों के ज्यादातर चालक बंगलादेशी घुसपैठिए हैं। स्थानीय निवासियों के अनुसार इन सबके 'आधार-कार्ड' बन चुके हैं। लोगों ने यह भी बताया कि रिक्शा मालिक उल्टे-सीधे काम करता है। वह पुलिस पर भी हमला करता है। जब कभी प्रशासन उसके खिलाफ कार्रवाई करता है, तो उसके रिक्शाचालक सड़कों पर उतर आते हैं। दिल्ली में ऐसे रिक्शा मालिकों और रिक्शाचालकों की बहुत बड़ी संख्या है। यदि ये सभी रिक्शाचालक 'आधार-कार्ड' बनवाने में कामयाब रहे तो आने वाले समय में ये लोग निश्चित रूप से देश के सामने खतरा पैदा करेंगे।
इन प्रसंगों से आम आदमी यह सोचने के लिए मजबूर हो जाता है कि आखिर इस देश को कौन चला रहा है? क्या यह देश 'धर्मशाला' है कि जो भी यहां आता है, वही पैर पसारकर रहने लगता है? क्या इस देश के सेकुलर नेता सत्ता के इतने भूखे हैं कि घुसपैठियों को भी भारतीय नागरिक बनवाने में उन्हें शर्म नहीं आती?
उल्लेखनीय है कि भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (Unique Indentification Authority of India, यू.आईडी.ए. आई.) की देखरेख में इन दिनों पूरे देश में 'आधार-कार्ड' बनाए जा रहे हैं। यू. आईडी.ए.आई. के अध्यक्ष हैं नंदन मनोहर नीलेकणि। यू.आईडी.ए.आई. को 2010-11 के लिए 1,90,00,000 रुपए दिए गए थे। 2011-12 के लिए 1470 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं।
आधार-कार्ड बनाने का ठेका तीन निजी कम्पनियों को दिया गया है। ये हैं-एसेंचर, महिन्द्रा-सत्यम-मोर्फो और एल-1 आईडेंटिटी सोल्यूशन। ये कम्पनियां बड़ी संख्या में युवाओं को ठेके पर रखकर उनसे आधार कार्ड बनवा रही हैं। जब तक कार्ड बन रहे हैं तब तक तो ये युवा किसी गड़बड़ी के लिए जिम्मेदार हैं। इसके बाद मिली गड़बड़ी के लिए किसको पकड़ा जाएगा? जिस लापरवाही से काम हो रहा है, उसमें फर्जीवाड़ा होना तय है। एल-1 आईडेंटिटी सोल्यूशन अमरीका में सुरक्षा सम्बंधी कार्य करने वाली बड़ी कम्पनियों में से एक है। यह पासपोर्ट से ड्राइविंग लाइसेंस तक बनाती है। इसके शीर्ष आधिकारियों में ऐसे लोग हैं, जिनके सम्बंध अमरीकी खुफिया एजेंसी सी.आई.ए. से होने की आशंका जताई जा रही है। इस हालत में यह भी खतरा है कि आधार कार्ड में उपलब्ध जानकारी का दुरुपयोग भी हो सकता है। इसलिए आधार कार्ड को लेकर लोगों में अनेक सवाल घूम रहे हैं। इन सवालों का जवाब कौन देगा?
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