चुने हुए निकायों में प्रशासक बैठाने की तैयारी
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जनता का सामना करने से डर रहीं माया
उत्तर प्रदेश की मायावती सरकार जनता के बीच इतना अलोकप्रिय हो गई है कि वह उसका सामना करने के लिए तैयार नहीं है। विधानसभा चुनाव (मार्च-अप्रैल 2012 में प्रस्तावित) से पहले वह कतई यह संदेश नहीं देना चाहती कि उसका जनाधार छीज चुका है। जनता उसे नकारने के लिए पूरी तरह तैयार बैठी है। इसीलिए पहले सरकार ने इस बात की कोशिश की कि नगर निकाय चुनाव दलगत चुनाव चिन्ह पर न हो सकें। लेकिन वहां उसे मुंह की खानी पड़ी। जब उच्च न्य्यालय ने दलगत आधार पर चुनाव को हरी झंडी दे दी तो अब सरकार दूसरा पैंतरा चल रही है। उसकी मंशा है कि नवंबर में निकायों के कार्यकाल खत्म होते ही प्रशासक बैठाकर परोक्ष शासन का रास्ता साफ करे। हालांकि उच्च न्य्यालय और राज्य निर्वाचन आयोग चुनाव कराने पर सख्त रुख अख्तियार किए हुए हैं। राज्य निर्वाचन आयोग ने तो अधिसूचना तक जारी कर दी है। अब भी राज्य सरकार चुनाव न कराने के पक्ष में दिख रही है।
उत्तर प्रदेश में 13 नगर निगम (सहारनपुर का गठन अभी हाल ही में किया गया है), 193 नगर पालिका परिषद और 424 नगर पंचायतें हैं। विगत चुनाव नवंबर 2006 में हुए थे। तब सपा के मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री थे। उस चुनाव में बसपा कहीं नहीं टिक पायी थी। 12 नगर निगमों के महापौर पदों में से आठ (लखनऊ, कानपुर, वाराणसी, आगरा, अलीगढ़, मेरठ, गोरखपुर और गाजियाबाद) पर भाजपा के महापौर विराजमान हैं। मुरादाबाद में सपा और झांसी, इलाहाबाद तथा बरेली में कांग्रेस के महापौर हैं। अधिकतर नगरपालिकाओं और नगर पंचायतों पर भी भाजपा, कांग्रेस और सपा के लोग काबिज हैं। बसपा यही सच्चाई नहीं पचा पा रही है। इसलिए वह शहरों में लोकतंत्र के हरण की कुत्सित चाल चल रही है। शहरी जनता के लोकतांत्रिक अधिकारों का गला घोंटने की कोशिश में जुट गई है। बसपा उत्तर प्रदेश में भले ही सत्तारूढ़ है लेकिन उसका शहरी जनाधार अब भी काफी कमजोर है। इसलिए उसे अपनी पोल खुलने का डर सता रहा है। अभी हाल ही में उच्च न्यायालय ने आदेश दिया है कि निकाय चुनाव हर हाल में समय से हों और 2011 की जनगणना के आधार पर होने चाहिए। न्यायालय ने राज्य निर्वाचन आयोग को यह भी आदेश दिया है कि वह हर हाल में चुनाव कराने का प्रबंध करे और उसकी युद्ध स्तर पर तैयारी करे। जब से यह आदेश आया है सरकार के हाथ-पांव फूले हुए हैं। सरकार न्यायालय में याचिका दाखिल कर और समय चाहती है। उसका कहना है कि इतने कम समय में चुनाव कराना संभव नहीं है। इसके विपरीत राज्य निर्वाचन आयोग चुनाव के लिए तैयार है। उसने अपने कर्मचारियों और अधिकारियों की छुट्टियां रद्द कर दी है। हालांकि उसने भी न्यायालय से आग्रह किया है कि उसे थोड़ा और समय मिल जाए। लेकिन सरकार की मंशा तो उसे टालने की है। आयोग ने पुराने परिसीमन के आधार पर चुनाव कराने की तैयारी पूरी भी कर ली है।
जनता का सामना करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही मायावती सरकार
–डाक्टर दिनेश शर्मा, महापौर, लखनऊ
उत्तर प्रदेश मेयर काउंसिल के अध्यक्ष व लखनऊ के महापौर डाक्टर दिनेश शर्मा का आरोप है कि सरकार चुनाव न कराकर प्रशासकों के जरिए परोक्ष रूप से शासन करना चाह रही है। उसे डर है कि वह निकाय चुनाव में बुरी तरह पिटेगी। इसलिए जनता का सामना करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही है। डाक्टर शर्मा का कहना है कि सरकार ने केंद्र को पत्र भेजकर कहा है कि वह संविधान के 74वें संशोधन का पूरी तरह पालन कर रही है। उन्होंने कहा कि उसके अनुसार नगर निकायों में चुने हुए प्रतिनिधियों के जरिए सारे विकास कार्य होंगे। जबकि सरकार प्रशासक बैठाने की तैयारी में है। यह तो संविधान के 74वें संशोधन का खुला उल्लंघन है। सरकार को किसी भी सूरत में चुने हुए नगर निकायों का गला नहीं घोंटना चाहिए। चुनाव दो माह के भीतर हो सकते हैं। चुने हुए जनप्रतिनिधियों को प्रशासक किसी भी सूरत में मंजूर नहीं है।
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