स्वास्थ्य
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डा. हर्ष वर्धन
एम.बी.बी.एस.,एम.एस.ई.एन.टी.
वर्तमान समय में हृदय रोग बड़ी तेजी से लोगों को अपनी गिरफ्त में ले रहा है। अनुपयुक्त जीवन शैली एवं खानपान तथा नकारात्मक विचार हृदय को बीमार बनाने में मुख्य भूमिका निभा रहे हैं। हमारी भावनाएं एवं हमारे विचार हमारे मस्तिष्क को प्रभावित करते हैं। अत: जैसा हमारा विचार होगा, वैसी ही हमारी दिनचर्या होगी। यदि हम स्वस्थ विचार और भावना रखते हैं तो हमारा अंत:करण स्वच्छ और मजबूत होगा। नकारात्मक भावनाओं से हमारे दिल और दिमाग पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। नकारात्मक विचार शरीर की रासायनिक प्रक्रिया को बाधित करते हैं और यह बाधा दिल और दिमाग सहित समूचे शरीर की कार्यप्रणाली को दुष्प्रभावित करने लगती है।
हृदय को अपने छोटे आकार और हल्के वजन के बावजूद शरीर के संचालन के लिए अत्यधिक काम करना पड़ता है। क्रोध, खुशी, दु:ख, भय का अनुभव जैसे ही होता है, हृदय की धड़कन कई गुना बढ़ जाती है। इसी प्रकार मानसिक तनाव, निर्बलता अथवा उपवास-व्रत में हृदय के धड़कने की गति कम हो जाती है। यहां कहने का अर्थ है कि शरीर में जो भी परेशानी उत्पन्न हो-चाहे मानसिक हो या शारीरिक-सबसे अधिक हृदय प्रभावित होता है।
भारत में प्रचलित प्राचीन परंपराओं और चिकित्सा पद्धतियों में मानव के सम्पूर्ण स्वास्थ्य की परिकल्पना की गयी है। सम्पूर्ण स्वास्थ्य का अर्थ है- मानसिक, आत्मिक , शारीरिक एवं सामाजिक। इन सभी में संतुलन स्थापित करके ही व्यक्ति संपूर्ण स्वास्थ्य की प्राप्ति कर सकता है। संपूर्ण स्वास्थ्य की प्राप्ति के लिए हमारे ऋषियों-महर्षियों ने योग का अन्वेषण किया तथा इसके माध्यम से प्राचीन समय में भारतीय समाज शतायु निरोगी जीवन जीता रहा है।
महर्षि व्यास ने योगवाशिष्ठ में लिखा है कि योग मानसिक और शारीरिक अनुशासन की ऐसी वैज्ञानिक विधि है जो शरीर और मन पर पूर्ण नियंत्रण द्वारा सभी कार्यों में पूर्णता लाती है। महर्षि पतंजलि के अनुसार मन, मन के कार्यों, ज्ञानेन्द्रियों, भावनाओं और इच्छाओं को वश में करने को योग कहा जाता है। योग एक गहन रहस्मय विद्या ही नही, अपितु चिकित्सा संबंधी आधार पर शारीरिक और मानसिक समर्थ संबंध की ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें रोग निवारण का लाभ अनायास ही मिल जाता है। एक स्थान पर कई रास्तों से पहुंचा जा सकता है। यही बात योग साधना के संबंध में भी सच है। हमारे महर्षियों ने स्वस्थ जीवनचर्या में चार प्रमुख बिन्दुओं को अपनाने पर जोर दिया है जो प्रत्यक्ष तौर पर हमारे हृदय एवं शरीर के स्वास्थ को प्रभावित करते हैं-
1.आचार-नैतिकता एवं चरित्र को बनाये रखना ही आचार है। सत्यता, पवित्रता, दयालुता आदि को अपने अंदर बनाये रखना चाहिए।
2.विचार-व्यक्ति के विचार उसके क्रियाकलाप को सीधे तौर पर प्रभावित करते हैं। अत: व्यक्ति को सकारात्मक सोच को विकसित करना चाहिए तथा मन-मस्तिष्क से नकारात्मक विचारों को निकाल देना चाहिए।
3.व्यवहार-व्यक्ति को अवांछनीय आदतों को त्याग देना चाहिए।
4.आहार (भोजन)-भोजन शरीर का पोषक है। जो भी भोजन के रूप में ग्रहण किया जाता है उसका सीधा प्रभाव मस्तिष्क पर पड़ता है। संयमित और संतुलित भोजन हृदय और मस्तिष्क दोनों के लिए हितकर होता है। अधिक भोजन और अत्यंत कम भोजन करने की आदत का त्याग करें।
आसन, प्राणायाम, योग निद्रा और ध्यान-योग में मुख्य रूप से शामिल हैं। एक शोध के अनुसार जो व्यक्ति योग और ध्यान सप्ताह में कम से कम तीन बार करता है, उसको रक्तचाप और हृदय रोग का खतरा कम हो जाता है। योग से शरीर में मजबूती और लचीलापन विकसित होता है। मेटाबौलिक रेट नियंत्रित होता है। हाइपोथैलेमस (मस्तिष्क का वह भाग जो एंडोक्राइन क्रियाकलाप को नियंत्रित करता है) को प्रभावित करता है। योग निर्देशित जीवनचर्या जिसमें शाकाहारी भोजन और तम्बाकूरहित आदत शामिल है, का पालन करने से मन और हृदय स्वस्थ रहते हैं।
एक अध्ययन के अनुसार योग स्वस्थ व्यक्ति एवं हृदय रोगी-दोनों के हृदय को स्वस्थ बनाता है। एक अध्ययन के दौरान कुछ लोगों को छह सप्ताह के योग-ध्यान के कार्यक्रम में शामिल किया गया और इसके उपरांत उनके अंदर रक्त नाड़ी क्रिया (ब्लड वेसेल फंक्शन) में 17 प्रतिशत का सुधार पाया गया। “ब्लड वेसेल फंक्शन” को “एन्डोथिलियल फंक्शन” के नाम से जाना जाता है। रक्त नाड़ी क्रिया के अंतर्गत नाड़ी सिकुड़ती और फैलती है जिससे रक्त का संचालन सही प्रकार से हो पाता है और यही स्वस्थ रक्त नाड़ी क्रिया का संकेत है। उक्त अध्ययन कार्यक्रम में शामिल व्यक्ति जो हृदय रोग से पीड़ित थे, उनके शरीर में एन्डोथिलियल फंक्शन में 70 प्रतिशत का सुधार पाया गया। योग पर शोध एवं अध्ययन पूरे विश्व में जारी है तथा अब तक हुए शोधों से यह स्पष्ट हुआ है कि तनाव और हृदय रोग में योग सहज, सस्ता, सुरक्षित और अत्यधिक कारगर है। कुछ चिकित्सकों का मत है कि हृदय रोग के इलाज में संपूर्ण इलाज रणनीति के अंतर्गत योग को लाने पर विचार किया जाना चाहिए।
“हाइपरटेंशन” एवं हृदय रोग में “रिस्ट रोटेशन”, “शोल्डर रोटेशन”, पादसंचालन “ब्रीदिंग”, “ड्रिल वाकिंग”, “हैण्ड्स स्ट्रैच ब्रीदिंग”, “एंकल स्ट्रैच ब्रीदिंग”, त्रिकोणासन ब्रीदिंग, “टाइगर ब्रीदिंग”, “स्ट्रेट लेग रेजिंग ब्रीदिंग”, अद्र्धकटि चक्रासन, गरुणासन, भुजंगासन, अद्र्धमत्स्येन्द्र आसन, उज्जयी प्राणायाम, नाड़ी शुद्धि प्राणायाम, भ्रामरी प्राणायाम नादानुसंधान आदि प्राणायाम अत्यधिक लाभप्रद हैं। पाठकों से आग्रह है कि उपरोक्त योग क्रिया शुरू करने से पूर्व किसी योग प्रशिक्षित व्यक्ति से सलाह अवश्य लें।
विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा अपने कोबे स्थित स्वास्थ्य नीति बनाने वाले सबसे प्रतिष्ठित “रिसर्च सेन्टर” में 21वीं शताब्दी में “सभी के लिए स्वास्थ्य” विषय पर नवंबर 1, 2, 3 वर्ष 2000 में हुई महत्वपूर्ण बैठक, जिसमें लेखक को भी विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से भारतीय प्रतिनिधि के रूप में आमंत्रित किया गया था, इसमें अनेक सिफारिशों में से एक यह भी सिफारिश थी कि 21वीं शताब्दी में अगर दुनिया में सभी के लिए स्वास्थ्य का नारा सफल और सार्थक सिद्ध करना है तो इसमें भारत के पातंजलि योग को शामिल करना होगा जिसके माध्यम से विश्व में सबसे अधिक आरोग्यसाधक ऊर्जा प्रसारित होगी।
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