बाल मन
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डा.तारादत्त निर्विरोध
पहले कागज, पीछे चीजें
कुतर रही है धान गिलहरी।
घर में कोई नहीं रहे पर,
रहती है मेहमान गिलहरी।
ऊपर चढ़ती, नीचे आती,
फुदक-फुदक कर दौड़ लगाती।
जाने कहां-कहां चढ़ जाती
कैसी है शैतान गिलहरी।
कोई आता, कोई जाता
रखती नहीं किसी से नाता।
निपट अकेली, फिर भी अपनी
रखती है पहचान गिलहरी।
इमली बेर-कैरियां भाती,
रोटी डालो तो खा जाती।
लेकिन अपनी भूख मिटाकर,
सोती चादर तान गिलहरी।
बूझो तो जानें
1. सिर पर पत्थर, मुंह में उंगली,
पैर नहीं, पर बैठे मार कुंडली।
2. एक पहेली मैं कहूं, सुन ले मेरे पूत,
बिन पंखों उड़ आई, बांध गले में सूत।
3. दो अक्षर का मेरा नाम,
आता हूं खाने के काम,
उलटा करो तो नाच दिखाऊं,
सबके मन में भाव जगाऊं।
4. चोर नहीं, डाकू नहीं, नहीं कहीं की रानी,
बत्तीस सिपाही घेरे रहते, तन-मन पानी-पानी।
5. देने से घटती नहीं, करिए जी भर दान,
छीने से छिनती नहीं, देते बढ़ता मान।
6. एक नारी ने अचरज किया,
सांप मारी पिंजरे में दिया,
ज्यों-ज्यों सांप ताल को खाए,
सूखे ताल सांप मर जाए।
उत्तर :
1. अंगूठी
2. पतंग
3. चना
4. जीभ
5. विद्या
6. जलता हुआ दीपक
वाह वैभव
सामान्यत: एक बच्चे को कुछ पैसा घर से मिल जाता है, तो वह तुरन्त पड़ोस की दुकान में जाता है और कुछ न कुछ खरीदकर खा लेता है। किन्तु नई दिल्ली के पश्चिम विहार क्षेत्र के एकता अपार्टमेन्ट में रहने वाला 9 वर्षीय वैभव दुग्गल कुछ अलग ही है। पिछले दिनों वह एक शाम अपार्टमेन्ट परिसर में ही कुछ दोस्तों के साथ खेल रहा था। घर लौटते समय सड़क पर एक पर्स मिला, जिसमें पैसा था। वह उस पर्स को लेकर सीधे रेजीडेन्ट वेलफेयर एसोसिएशन के महासचिव श्री कंछीलाल गुप्ता के पास पहुंचा और पर्स के बारे में बताया। श्री गुप्ता वैभव की ईमानदारी से बड़े प्रभावित हुए। उन्होंने अन्य लोगों से भी वैभव की ईमानदारी की चर्चा की। इसके बाद अपार्टमेन्ट के निवासियों ने निर्णय लिया कि वैभव को उसकी ईमानदारी के लिए 15 अगस्त के कार्यक्रम में सम्मानित किया जाएगा और ऐसा ही हुआ। उस दिन वैभव को सभी लोगों ने शुभकामनाएं दीं और कामना की कि उसका भविष्य उज्ज्वल हो।
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