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निशाने पर फिर गुजरात
जो मनुष्य घर में बैठा रहता है, उसका भाग्य भी बैठ जाता है। जो खड़ा रहता है, उसका भाग्य भी खड़ा हो जाता है। जो सोया रहता है, उसका भाग्य भी सो जाता है। जो चलता-फिरता रहता है, उसका भाग्य भी चलने-फिरने लगता है।
-ऐतरेय ब्रााहृण
सत्तालिप्सा में कांग्रेस इस कदर बौरा जाती है कि उसे लोकतंत्र और संविधान की भी कोई परवाह नहीं रहती, चाहे उसे कितनी भी थुक्का-फजीहत क्यों न झेलनी पड़े। समाजसेवी अण्णा हजारे की भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम के एक विशाल जनांदोलन का रूप ले लेने के बाद कांग्रेस और उसके नेतृत्व वाली सरकार की जो किरकिरी हुई, वह किसी से छिपी नहीं है। लेकिन भूलों से सबक ले ले तो इसे कांग्रेस कौन कहेगा! गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी शुरू से कांग्रेस की आंखों में खटकते रहे हैं, उनके लोकप्रिय शासन की काट तो वह कभी ढूंढ नहीं पाई, राज्य में हर स्तर के चुनावों में उसे मुंह की खानी पड़ी है। लेकिन मोदी के प्रति जहर उगलना, कानूनी दांवपेंच खेलना कांग्रेस ने कभी नहीं छोड़ा, यहां तक कि पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी तो मोदी द्वेष से इतनी पीड़ित हैं कि पिछले विधानसभा चुनावों में प्रचार के समय उन्होंने मोदी को व्मौत का सौदागरव् तक कह डाला। सोनिया पार्टी को सपने में भी व्गुजरात दंगेव् सताते हैं और उन्हें आधार बनाकर मोदी की लगाम कसने का कोई अवसर कांग्रेस नहीं छोड़ना चाहती। तीस्ता सीतलवाड़ जैसे लोग उसी के इशारों पर नित नए प्रपंच रचकर मोदी को फंसाने का षड्यंत्र करते हैं, लेकिन सांच को आंच कहां की तर्ज पर मोदी के विरुद्ध सोनिया पार्टी और उसकी सेकुलर जमात का हर वार खाली गया। अब राज्यपाल को मोहरा बनाकर गुजरात में लोकायुक्त की नियुक्ति का जो पासा फेंका गया है, उसमें कांग्रेस की कुत्सित मानसिकता तो सामने आई ही है, संविधान व संवैधानिक संस्थाओं के प्रति भी उसके मन में किस कदर अवमानना का भाव है, यह भी प्रकट हो गया है।
सत्ता की राजनीति में कांग्रेस किस तरह राज्यपालों का दुरुपयोग करती रही है, पिछले समय में कर्नाटक में राज्यपाल की भूमिका से यह पूरी तरह साफ हो गया है, जब कांग्रेस राज्यपाल के माध्यम से बार-बार यह कोशिश करती देखी गई कि कर्नाटक की भाजपा सरकार को किस तरह अपदस्थ किया जाए, लेकिन हर बार यह षड्यंत्र विफल रहा। गुजरात में भी राज्य सरकार से सलाह किए बिना राज्यपाल द्वारा लोकायुक्त की नियुक्ति किया जाना नरेन्द्र मोदी के प्रति कांग्रेस की दुर्भावना को ही प्रकट करता है। यह पूरी तरह संविधान के अनुच्छेद 163 का खुला उल्लंघन है। कांग्रेस इस तरह संवैधानिक मर्यादाओं का मखौल उड़ाएगी तो विरोधी दलों की राज्य सरकारों का तो संचालन ही मुश्किल हो जाएगा।
भारत एक लोकतांत्रिक देश है, हमारा संविधान उसी लोकतंत्र का सबसे मजबूत आधार है, यदि कांग्रेस उसी संविधान की अवहेलना करे तो लोकतंत्र का क्या होगा? राज्यपाल के इस कदम पर भाजपा का आक्रोश अकारण नहीं है। यदि राज्यपाल केन्द्र सरकार के एजेंट की तरह काम करे तो संवैधानिक और लोकतांत्रिक मर्यादा तार-तार हो जाएगी। भाजपा का यह आरोप एकदम सही है कि राज्य सरकार की अनदेखी कर राज्यपाल द्वारा लोकायुक्त की नियुक्ति किया जाना देश के संघीय ढांचे पर आघात है और संविधान की भावना के पूरी तरह प्रतिकूल। वास्तव में यह राज्यपाल जैसी संस्था का राजनीतिकरण किए जाने की अपवित्र कोशिश है। यह राज्यपाल और राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच टकराव पैदा करने की कोशिश है, ताकि इसका लाभ लेकर केन्द्र को हस्तक्षेप का मौका मिले। ऐसी कोशिशें अनेक बार कांग्रेस नीत केन्द्र सरकार कई राज्यों में पूर्व में भी कर चुकी है। एक दौर में तो कांग्रेस ने राज्यपालों के माध्यम से अनुच्छेद 356 को राज्यों में विरोधी दलों की निर्वाचित सरकारों को बर्खास्त करने का हथियार बना लिया था, अब फिर वही अधिनायकवादी प्रवृत्ति सोनिया पार्टी में तेजी से उभर रही है। यह देश के लोकतंत्र के लिए एक गंभीर खतरा है, इसे समझने और पुरजोर विरोध किए जाने की आवश्यकता है
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