|
चन्द कतरों को नदी मान के खुश रहना था, अपनी झोली को भरी मान के खुश रहना था। देखना था हमें हर गम को तो छोटा करके, छोटी खुशियों को बड़ी मान के खुश रहना था।-राजेश रेड्डीतनहा दोनों पार हूं मैं, आंगन की दीवार हूं मैं।-रौशनालाल रौशनमेंहदी रची हथेलियां लहरों ने चूम लीं, छोड़े जब उसने ताल में जलते हुए दिये।-मंगल नसीमहममें रिश्ता कोई न था लेकिन, मेरी खातिर वो खास था, क्यों था?-दीप्ति मिश्र24
टिप्पणियाँ