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श्रीराम जन्मभूमि पर विवादित ढांचा किसी प्राचीन मंदिर को तोड़कर बनाया गया था या नहीं, मुकदमे में इस सवाल का जवाब दिया भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने। एएसआई की रपट को न्यायालय ने आधार माना और कहा कि विवादित ढांचा किसी पुराने ढांचे को तोड़कर बनाया गया था। न्यायालय ने एसआई की रपट की चर्चा करते हुए कहा भी कि वह ढांचा निश्चित ही किसी बड़े हिन्दू धार्मिक स्थल को तोड़कर बनाया गया था। उल्लेखनीय है कि उच्च न्यायालय में सुनवाई के दौरान हिन्दू पक्ष की ओर से बार-बार पुरातात्विक साक्ष्यों की बात कही जा रही थी। आग्रह था कि विवादित कहे जाने वाले स्थल की अगर खुदाई की जाए तो निश्चित यह सत्य उद्घाटित होगा कि वहां कोई प्राचीन मंदिर था। न्यायालय ने इस तर्क को गंभीरता से लिया और उसने एएसआई को वहां खुदाई के आदेश दिये। इससे पहले न्यायालय ने उक्त भूमि के नीचे की सच्चाई जानने के लिए ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार सर्वेक्षण कराया था। यह जिम्मेदारी तोजो विकास इंटरनेशनल को दी गयी थी। इसमें कनाडा और कोरिया के भूगर्भशास्त्री शामिल हुए थे।रडार सर्वे की रपट बहुत स्पष्ट नहीं थी। उसने केवल इस ओर इशारा किया कि जमीन के भीतर कोई बड़ी संरचना है। इसी के बाद न्यायालय ने वहां उत्खनन के निर्देश दिये। करीब सात साल पहले हुई खुदाई में चौकाने वाले पुरातात्विक साक्ष्य सामने आये। 2003 में एएसआई ने अपनी रपट अदालत को सौंप दी थी। उसमें साफ-साफ कहा गया था कि खुदाई में र्इंट की कुछ दीवारें मिलीं हैं। इनमें कुछ दीवारें पूरब-पश्चिम की तरफ थीं और कुछ उत्तर-दक्षिण दिशा में थीं। कुछ रंगीन सजावटी फर्श मिले। करीब 30 आधार स्तम्भ भी मिले जिन पर भवन खड़े होते हैं। ये आधार स्तम्भ दो समानांतर कतरों में हैं। इस जमीन में तीन अलग-अलग युग के तीन फर्श दिखे। खुदाई में मिलीं र्इंटों को गहरवाल युग यानी 12वीं शताब्दी का बताया गया। हिन्दू पक्ष के वकीलों का कहना था कि विवादित ढांचे के नीचे किसी मंदिर के होने का उनका दावा सही है। मामले की सुनवाई कर रही विशेष पूर्ण पीठ ने एएसआई की रपट को प्रामाणिक मानते हुए अपने निर्णय का आधार बनाया। द5
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