तीर्थों के विकास और सेवा-समर्पण की राह
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तीर्थों के विकास और सेवा-समर्पण की राह

by
Apr 7, 2010, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 07 Apr 2010 00:00:00

तरुण सिसोदियाभगवान श्रीकृष्ण की लीलास्थली सारे जग से निराला बृजधाम, करोड़ों श्रद्धालुओं का आस्था केन्द्र है, उसमें भी गोवर्धन की परिक्रमा कर तीर्थों का पुण्य अर्जित करने का अवसर है। इसी गोवर्धन के महात्म को ध्यान में रखकर तथा उसके धार्मिक स्वरूप को प्रेरणास्पद बनाने हेतु वर्षभर वहां आने वाले लाखों श्रीकृष्ण भक्तों को परिक्रमा मार्ग व पूरे क्षेत्र में विभिन्न प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध कराने, साथ ही इस क्षेत्र के निवासियों के उन्नयन का बीड़ा उठाया गोवर्धन (मथुरा, उ.प्र.) में धार्मिक संस्था “तीर्थ विकास ट्रस्ट” ने। इसके सेवा कार्यों के माध्यम से यहां परिवर्तन की छटा दिखाई दे रही है। पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से तो संस्था ने यहां बड़ी संख्या में वृक्षारोपण कर पहल की ही है, इसके अलावा पेयजल की गंभीर समस्या को देखते हुए उसने यहां पेयजल व्यवस्था को भी सुदृढ़ करने का महत्वपूर्ण कार्य किया है। साथ ही आसपास के विद्यार्थियों के लिए व्यावसायिक शिक्षा केन्द्र शुरू कर उनमें भविष्य के प्रति एक नई किरण जगाई है।नवंबर, 1997 में राजधानी दिल्ली के कुछ प्रमुख समाजसेवी उद्योगपतियों- सर्वश्री नंद किशोर गर्ग, सुभाष अग्रवाल, अशोक बंसल, विनोद कुमार गुप्ता एवं श्री कैलाश चंद गुप्ता ने संत रमेश भाई ओझा, स्वामी गुरुशरणानंद, स्वामी चिदानंद सरस्वती और ब्राहृचारी ब्राहृस्वरूप से प्रेरणा लेकर हिन्दू तीर्थों की खराब हो रही स्थिति को सुधारने के उद्देश्य से “तीर्थ विकास ट्रस्ट” का गठन किया और सर्वप्रथम मथुरा के प्रसिद्ध तीर्थस्थल “गोवर्धन” की बिगड़ती हालत सुधारने का काम शुरू किया।उल्लेखनीय है कि गोवर्धन के “गोवर्धन पर्वत” की 21 किलोमीटर लंबी परिक्रमा करने की बहुत मान्यता है। ऐसी कथा है कि भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को सात दिन और सात रात तक अपनी अंगुली पर उठाकर ब्राजवासियों की इन्द्र देवता के प्रकोप से रक्षा की थी। कालांतर में देशवासियों के मन में इस पर्वत के प्रति अपार श्रद्धा उत्पन्न हुई और वे यहां परिक्रमा करने आने लगे। सालभर श्रद्धालु यहां देश के कोने-कोने से बड़ी संख्या में परिक्रमा करने आते रहते हैं। प्रत्येक पूर्णिमा पर तो श्रद्धालुओं की संख्या यहां लाखों में हो जाती है, जोकि गुरुपूर्णिमा के दिन 35-40 लाख तक पहुंच जाती है। “गोवर्धन” की इतनी अधिक मान्यता होने के बावजूद श्रद्धालुओं को यहां अनेक प्रकार की समस्याओं से जूझना पड़ता था। पेयजल का तो अभाव था ही, विश्राम स्थल, शौचालय आदि की भी बड़ी किल्लत थी। और सबसे बड़ी दिक्कत थी, परिक्रमा मार्ग की स्वच्छता की। इन समस्याओं को ध्यान में रखते हुए “तीर्थ विकास ट्रस्ट” ने यहां कार्य करना प्रारम्भ किया।ट्रस्ट ने सबसे पहले परिक्रमा मार्ग की स्वच्छता का बीड़ा उठाया। इसके लिए उसने पूरे 21 किलोमीटर लंबे मार्ग पर जगह-जगह सफाई कर्मचारी नियुक्त किए, डिवाइडर लगवाए और रेतीली मिट्टी डालकर कच्चा मार्ग तैयार कराया, ताकि परिक्रमा करने आने वाले आम श्रद्धालुओं और दंडवत परिक्रमा करने वाले श्रद्धालुओं को किसी भी प्रकार की दिक्कत का सामना न करना पड़े। अब ये सफाई कर्मचारी नियमित रूप से परिक्रमा मार्ग की सफाई करते हैं, जिनका वेतन ट्रस्ट अदा करता है। मार्ग की सुंदरता और पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से अब तक यहां हजारों छायादार और फलदार वृक्ष लगाए जा चुके हैं। गोवर्धन पर्वत पर हरियाली बनी रहे इसलिए वहां कंटीले पौधों के बीज बिखेरे गए हैं। श्रद्धालुओं के विश्राम हेतु परिक्रमा मार्ग में 6 विश्राम स्थल और 80 बेंचें अलग-अलग स्थानों पर लगाई गई हैं। इसी तरह शौचालय, पथ प्रकाश और कूड़ेदान आदि की व्यवस्था को भी पुख्ता किया गया है।एक बहुत ही सराहनीय कार्य जो ट्रस्ट द्वारा किया जा रहा है, वह है पेयजल आपूर्ति का। इसके कारण श्रद्धालुओं की समस्या का निदान तो हुआ ही है, गोवर्धन क्षेत्र में आने वाली धर्मशालाओं, विद्यालयों, आश्रमों और ग्रामीण परिवारों की समस्या का भी समाधान हो गया है। उल्लेखनीय है कि इस पूरे क्षेत्र में खारा पानी है, जिसके कारण यहां पेयजल की भारी किल्लत है। ट्रस्ट द्वारा लगाए गए पीने योग्य पानी के ट्यूबवेल से जल भरकर ट्रस्ट के टेंकर और ट्रैक्टर 24 घंटे पेयजल आपूर्ति के कार्य में संलग्न रहते हैं।गोवर्धन में हो रहे विकास कार्यों की देखरेख के लिए ट्रस्ट ने यहां तीर्थ विकास भवन का निर्माण किया है। इसमें परिक्रमा करने आने वाले श्रद्धालुओं के लिए ठहरने की भी उचित व्यवस्था है। इसके अलावा इस विशाल भवन में ट्रस्ट की ओर से आसपास के विद्यार्थियों के लिए अनेक प्रकार के व्यावसायिक शिक्षा के प्रकल्प भी चलाए जा रहे हैं। जिनमें कम्प्यूटर प्रशिक्षण केन्द्र, सिलाई-कढ़ाई प्रशिक्षण संस्थान और चित्रकला प्रशिक्षण केन्द्र हैं। भवन में पुस्तकालय और होमोपैथिक चिकित्सालय भी चल रहे हैं। ट्रस्ट के कार्यकारी सचिव श्री रामचंद्र रिछारिया ने बताया कि भवन में ट्रस्ट की ओर से चलाए जा रहे व्यावसायिक शिक्षा के प्रकल्पों से अब तक 600 से अधिक विद्यार्थी लाभान्वित हो चुके हैं। जो आज पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर होकर सम्मान का जीवन जी रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमारे कम्प्यूटर प्रशिक्षण केन्द्र को “डोएक” के “ओ” लेवल की पढ़ाई की मान्यता भी मिल चुकी हैं।गोवर्धन में गुरुपूर्णिमा के दिन लगने वाले विशााल मेले में भी ट्रस्ट मुख्य भूमिका में रहता है। यहां ट्रस्ट द्वारा विभिन्न सामाजिक-धार्मिक संस्थाओं के सहयोग से चिकित्सा शिविर, खोया-पाया शिविर आदि लगाए जाते हैं। इस दौरान प्रशासन के लिए तो ट्रस्ट का भवन मुख्यालय जैसा बन जाता है।इस तरह ट्रस्ट के कार्यकर्ताओं द्वारा किए गए अथक प्रयासों के कारण आज इस प्रसिद्ध तीर्थ “गोवर्धन” की स्थिति में बहुत हद तक सुधार हो गया है। अब श्रद्धालुओं को वैसी समस्याओं से नहीं जूझना पड़ता जैसे पहले जूझना पड़ता था। ट्रस्ट की योजना गोवर्धन को और भी विकसित करने की है। परिक्रमा मार्ग में आने वाले घाटों एवं कुंडों की स्वच्छता और मानसी गंगा का विकास इनमें मुख्य है।13

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