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आह्वान पुस्तक में महापुरुषों के कुछ उन पत्रों को संकलित किया गया है जो समस्त देशवासियों को नई दिशा और ऊर्जा प्रदान करते हैं। इस लघु संग्रह में गुरू गोविंद सिंह, नाना साहब पेशवा, स्वामी विवेकानंद, श्री अरविंद, सुभाष चन्द्र बोस, वीर सावकर, डा.हेडगेवार, श्री गुरूजी, भगत सिंह, डा.श्यामा प्रसाद मुखर्जी, मदनलाल धींगरा, अशफाक उल्ला खां सहित अनेक महापुरुषों के कुछ चुनिंदा पत्रों को सम्मिलित किया गया है।पं.दीनदयाल उपाध्याय अपने मामा को लिखे पत्र में सवाल खड़ा करते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति आज के युग में स्वार्थी होकर केवल अपने घर की चिंता कर रहा है, समाज असंगठित और दुर्बल होता जा रहा है। ऐसे में समाज कार्य करने कौन आगे आएगा? वीर सावरकर अपने अनुज को लिखे पत्र में कहते हैं “जात-पांत हिन्दुस्थान का सबसे बड़ा शाप है इससे हिन्दू जाति के वेगवान प्रवाह के दलदल और मरुभूमि में धंस जाने का भय है।”उस समय देश पर मर-मिटने की भावना कितनी बलबती थी, एटा के देवीसिंह द्वारा अपने पुत्र महावीर, सिंह को लिखे पत्र में स्पष्ट झलकती है। महावीर जो उन दिनों अण्डमान में काले पानी की सजा काट रहा था, को पिता ने लिखा, “…उस टापू पर सरकार ने देशभर के जगमगाते हीरे चुन-चुनकर जमा किए हैं। मुझे खुशी है कि तुम्हें उन हीरों के बीच रहने का अवसर मिला है।”इस संकलन में नेताजी सुभाष का अपने मझले भइया को लिखा वह पत्र भी है जो उन्होंने आक्सफोर्ड से लिखा था और जिसमें अंग्रेजों की नौकरी न करने और देश सेवा में जुट जाने का निर्णय सुनाया था। श्री गुरु जी द्वारा 1948 में प्रतिबंध के दौरान गृहमंत्री सरदार पटेल को लिखे ऐतिहासिक पत्र के साथ ही उनके अंतिम पत्र भी इसमें लिए गए हैं। 1935 में सांगली से डा.हेडगेवार द्वारा संघ शिक्षा वर्ग (नागपुर) में प्रशिक्षु स्वयंसेवकों को लिखे पत्र में उन्होंने संघ कार्य के तत्व और व्यवहार को समझाया है। स्वामी विवेकानंद अपने सहयोगी को लिखे पत्र में अपनी उस मनस्थिति का वर्णन कर रहे हैं जो शिकागो में भाषण देने से पहले थी। ये सभी पत्र आज भी उतने ही प्रासंगिक है, प्रेरणा देने वाले हैं। इन पत्रों को पढ़कर एक नई स्फूर्ति और चेतना मिलती है। इन ऐतिहासिक पत्रों को पढ़ना और सहेजना सुधी पाठकों को आनंद देगा। दपुस्तक का नाम -आह्वान प्रकाशक -लोकहित प्रकाशन, संस्कृति भवन, राजेन्द्र नगर, लखनऊ-226004 मूल्य-40 रु. पृष्ठ-98 द समीक्षक : निर्भय कुमार कर्ण25
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