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पाञ्चजन्य में “मंगलं, शुभ मंगलं” स्तम्भ देखकर मेरे मानस पटल पर अंकित पुरानी तस्वीरों में रंग भरने लगा। इस स्तम्भ के माध्यम से स्मृतियों के झरोखों से मैं भी अपने पति और परिवार वालों की कुछ बातें आपको बताना चाहती हूं। 1957 में जब मैं बुलंदशहर से खुर्जा गांव में ब्याह कर आई तो अपने ससुर के सेवा कार्यों को देखकर चकित होती थी। फिर कालांतर में अपने पति श्री कंछीलाल गुप्ता को भी उनके नक्शेकदम पर चलते पाया। बेशक वे इन्जीनियर रहे, पर नौकरी के दौरान भी उन्होंने जरूरतमंदों की सेवा के लिए समय निकाला। सेवा की इसी भावना ने उन्हें सेवानिवृत्ति के बाद सेवाव्रती बना दिया। आज वे सेवा भारती दिल्ली प्रान्त में कार्यालय मंत्री हैं। दीन-दु:खियों की सेवा करने की इच्छा से वे सेवा भारती के कार्यकर्ता बने। आज वे बिना किसी लालच या मानधन के पूरी तरह सेवा भारती को अपना समय दे रहे हैं। चाहे घर का कोई काम रुक जाए, पर सेवा भारती का काम न रुके, इसकी उन्हें बड़ी चिन्ता रहती है। पहले तो मैं उनकी इस व्यस्तता से खुश नहीं रहती थी, पर अब सोचती हूं कि उन्होंने अच्छा निर्णय लिया। क्योंकि इस कारण वे इस उम्र में भी पूरी तरह स्वस्थ हैं और समाज में उनकी अलग पहचान बनी है। उन्हें समाज से प्रतिष्ठा मिलती है।उन्हें प्रतिष्ठा मिलती है, तो पूरा परिवार गौरवान्वित होता है। जब वे सेवा के क्षेत्र में उतरे ही थे, तो उस समय का एक प्रसंग मुझे याद है।सन् 1996 में वे सेवा भारती में विभाग कोषाध्यक्ष का दायित्व निभा रहे थे। एक दिन साइकिल पर शिक्षिकाओं के मानधन हेतु एक बड़ी राशि थैले में डालकर बैंक से लौट रहे थे। रास्ते में एक स्कूटर द्वारा दुर्घटनाग्रस्त हो कर गिर पड़े। इनकी एक टांग की हड्डी भी टूट गई। इस हालत में भी वे दुर्घटनास्थल से पहले घर आये, मुझे रुपयों का थैला सौंपा तथा उचित दिशानिर्देश देने के उपरान्त डाक्टर के पास गए।हमारे तीन बेटे तथा एक बेटी है। तीनों बेटे तथा दामाद भी इन्जीनियर हैं। हमारे बच्चों तथा नाती-पोतों ने भी अपने पिता के सभी गुण विरासत में पाए हैं। ईश्वर की कृपा से आज हमारे सभी बच्चे अपने-अपने घर में सुखी हैं। मैं परमेश्वर से प्रार्थना करती हूं कि मुझे प्रत्येक जन्म में इनकी सहभागिनी बनाएं।बिमला देवी गुप्ताए-बी/102, एम.आई.जी. फ्लैट्स, पश्चिम विहार, नई दिल्ली-11006320
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