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कुछ भी नया नहींइन्दिरा किसलयगजब की दीवानगी है इसकीवही ढूंढता है जो खोया नहीं है।।डर लगता है उसे इंसान कहने मेंजो कभी आंख भर रोया नहीं है।।जागरण के मायने क्या पूछते होभूख से वो रात भर सोया नहीं है।।उसे सच बोलना होगा, उसनेकंधों पर आसमां ढोया नहीं है।।वो फूल जाने कैसे जिया होगाजिसे शबनम ने भिगोया नहीं है।।छांव मांगी तो मिली धूप की छतरीइसमें कुछ भी नया नहीं है।।18
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