सूचना अधिकार कानून से हुआ खुलासा
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सूचना अधिकार कानून से हुआ खुलासा

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Apr 5, 2008, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 05 Apr 2008 00:00:00

यह वंशवादी सरकार है, भारत सरकार नहीं!-डा. राकेश उपाध्यायभारत सरकार ने राष्ट्रीय महापुरुषों की श्रेणी को संभवत: नेहरू-गांधी परिवार तक ही सीमित मान लिया है। नेताजी सुभाष चंद्र बोस, सरदार पटेल और भगत सिंह को यदि छोड़ दें तो भारत सरकार ने पिछले तीन वर्षों में नेहरू-गांधी परिवार को छोड़कर देश के अन्य महापुरुषों की ओर देखने की जहमत तक नहीं उठाई है। इस बात का खुलासा भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों द्वारा दी गई सूचनाओं के द्वारा ही हुआ है। दिल्ली के देवाशीष भट्टाचार्य ने विगत 27 दिसंबर, 2007 को सूचना अधिकार के अन्तर्गत भारत सरकार से यह जानना चाहा था कि सन् 2005 से 2007 के दो वित्तीय वर्षों के मध्य भारत सरकार ने निम्नांकित महापुरुषों के विचारों के प्रचार और प्रसार पर कितनी धनराशि खर्च की-1.महात्मा गांधी 2.नेताजी सुभाष चंद्र बोस 3.पं.जवाहर लाल नेहरू 4.सरदार पटेल 5.लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक 6. पं. मदन मोहन मालवीय 7. सरदार भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, 8.चंद्र शेखर आजाद 9.बालकृष्ण गोखले 10.रविंद्र नाथ ठाकुर 11. डा. भीमराव अंबेडकर 12. डा. राजेंद्र प्रसाद 13. पं. मोती लाल नेहरू 14. इन्दिरा गांधी 15. लाल बहादुर शास्त्री 16. गणेश शंकर विद्यार्थी 17. राम प्रसाद बिस्मिल 18. डा. हेडगेवार 19. माधव राव सदाशिव राव गोलवलकर 20.डॉ. अबुल कलाम आजाद 21. डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी 22.राजगोपालाचारी 23.अशफाक उल्ला खां 24.सरदार उधम सिंह 25. मदनलाल ढींगरा 26. करतार सिंह सराभा 27. भाई परमानन्द 28 रास बिहारी बोस 29. लाला लाजपत राय 30. राजीव गांधी।श्री भट्टाचार्य ने यह भी पूछा कि महारानी लक्ष्मी बाई, शिवाजी, महाराणा प्रताप, तात्या टोपे, मंगल पाण्डे, गुरु गोविंद सिंह, टीपू सुल्तान और राजा राम मोहन राय के विचारों के लिए भारत सरकार ने उपरोक्त वित्तीय वर्ष के मध्य कितनी धनराशि खर्च की है?इसका जो उत्तर भारत सरकार ने दिया वह चौंकाने वाला है। गांधी-नेहरू वंश के अलावा देश के बाकी महापुरुषों का सरकार के यहां क्या स्थान है, इस पर देवाशीष कहते हैं, “मैं जब सूचना अधिकार के अन्तर्गत अपने प्रश्नों के उत्तर जानने सूचना-प्रसारण मंत्रालय गया तो मंत्रालय से जुड़े भारतीय प्रशासनिक सेवा के एक वरिष्ठ अधिकारी ने मुझे ऊपर से नीचे देखा और हिकारत भरे अंदाज में पूछा कि ये राम प्रसाद बिस्मिल कौन हैं, इसका नाम तो मैंने कभी सुना नहीं।”भारत सरकार द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, 2005 से 2007 के दो वित्तीय वर्षों में भारत सरकार ने सूचना प्रसारण मंत्रालय, मानव संसाधन विकास मंत्रालय एवं महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के माध्यम से महात्मा गांधी पर 2 करोड़ 63 लाख 50 हजार 489 रु., पं. जवाहर लाल नेहरू पर 1 करोड़ 2 लाख 43 हजार 73 रु., इन्दिरा गांधी पर 63 लाख 57 हजार 456 रु. और राजीव गांधी पर 96 लाख 74 हजार 493 रु. विज्ञापन प्रकाशित कराने पर खर्च किए हैं। इसी अवधि में सरदार पटेल पर 1 करोड़ 46 लाख 32 हजार 768 रु., नेताजी सुभाष चंद्र बोस पर 6 लाख 82 हजार 266 रु. एवं सरदार भगत सिंह पर 1 करोड़ 12 लाख 22 हजार 580 रु. विज्ञापनों के प्रकाशन पर खर्च किए गए हैं। सूचना और प्रसारण मंत्रालय नेउल्लेखनीय है कि देवाशीष भट्टाचार्य ने 23 जनवरी, 2007 को देश के सभी राष्ट्रीय अखबारों में नेताजी सुभाष चंद्र बोस पर जब एक भी विज्ञापन प्रकाशित नहीं देखा तो उन्होंने सरकार से सूचना अधिकार के अन्तर्गत उस समय भी जानकारी मांगी थी। उस समय सरकार ने नेताजी के बारे में जो कहा उससे संसद सहित देश भर में हंगामा मच गया था। गृह मंत्रालय ने श्री भट्टाचार्य को दिए गए लिखित जवाब में कहा था कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वारा स्वतंत्रता आंदोलन में दिए गए योगदान के संदर्भ में सरकार के पास कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। बाद में केंद्रीय गृहमंत्री शिवराज पाटिल ने इस पर खेद प्रकट कर नेताजी के योगदान को महान और निर्णायक बताया था।पिछले अनुभव से सबक लेते हुए भारत सरकार ने इस वर्ष नेताजी के बारे में 23 जनवरी, 2008 को सभी राष्ट्रीय पत्रों में विज्ञापन प्रकाशित किए।देवाशीष ने पाचजन्य से बातचीत में कहा कि सरकार ने गलती सुधारी है। लेकिन सरकार के अधिकारी देश के महापुरुषों के प्रति कितना सम्मान रखते हैं, इसका सच भी इस बार उजागर हो गया। सरकार ने इस बार जो उत्तर दिया है उसमें नेताजी की पुण्यतिथि पर भी श्रद्धाजलि स्वरूप विज्ञापन प्रकाशित करने की बात कही गई है। देवाशीष ने इस पर कड़ा प्रतिवाद जताते हुए कहा है कि यह हमारी भावना को आहत करता है। सच्चाई यह है कि नेताजी की पुण्यतिथि अभी तक निर्धारित ही नहीं हुई है। उनकी मृत्यु सरकारी रिकार्डों में भी अभी रहस्यों के घेरे में है।9बुंदेलखंड का चूल्हाबंदी आन्दोलनभूखे को भोजन, प्यासे को पानी-आशीष कुमार “अंशु”बुंदेलखंड की स्थिति सचमुच नाजुक हो चुकी है। सूखे के कारण पिछले कई वर्षों से अच्छी फसलें नहीं हुई हैं। लोग बड़ी संख्या में रोजी-रोटी के लिए पलायन कर रहे हैं। जो कहीं नहीं जा पा रहे हैं वे भूख के कारण प्राण त्याग रहे हैं। पर सरकार यह मानने को तैयार नहीं है कि किसी की भूख से मौत हुई है। इस देश में लगभग 5 करोड़ 70 लाख लोग कुपोषण के शिकार हैं। यदि बात बुदेलखंड के सूखा प्रभावित 7 जिलों जालौन, झांसी, महोबा, बांदा, ललितपुर, हमीरपुर और चित्रकूट की करें तो यहां बैंक और स्थानीय साहूकारों के हाथों कर्जदार किसानों की मौतें अब आम सी बात बनती जा रही हैं। एक नहीं इस तरह के दर्जनों मामले प्रकाश में आए, जब प्रशासन ने कर्ज या भूख की वजह से हुई मौत को कुछ और रंग दे दिया। पिछले पांच साल से सूखा का संकट झेल रहे बुंदेलखंड केइस सत्याग्रह में सहभागिता बेहद आसान है। इसके लिए गांव के सम्पन्न लोग अपने घर में सप्ताह में एक दिन चूल्हा नहीं जलाते और इस तरह जितना भोजन गांव भर सेराजेन्द्र के साथी पुष्पेन्द्र कहते हैं “राजेन्द्र हमेशा सक्रिय भागीदारी की बात करते थे। वह समाज को दिशा देने में सरकार से अधिक महत्वपूर्ण समाज की भागीदारी को मानते थे। इसलिए चूल्हाबंदी आंदोलन चलाते हुए हम कभी किसी सरकार के प्रतिनिधि से नहीं मिले। हमने कोई मांग नहीं रखी।”इस आंदोलन के संबंध में एक महत्वपूर्ण जानकारी राजेन्द्र के निकट सहयोगी रामफल ने दी। रामफल के अनुसार इस आंदोलन में शामिल सत्याग्रही परिवार के लोगों ने बुंदेली परंपरा के अनुसार पांच-पांच पेड़ भी लगाए हैं।आगामी 9 मई को राजेन्द्र सिंह की प्रथम पुण्यतिथि है। इस अवसर पर चरखारी (महोबा) में उनके कुछ साथियों ने “पानी पुनरुत्थान पहल” के बैनर तले तालाबों को साफ करने का बीड़ा उठाया है। पूरे जोर-शोर के साथ वहां सफाई का काम चल रहा है। उनकी पुण्यतिथि के अवसर पर चरखारी में एक बड़ी जनसभा के आयोजन की भी योजना है।10

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