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कल्पना की उड़ानमधु पंतनन्हे साथियो!आदूसरी चीज जो आप में है, वह है आपकी अद्भुत सोच। इसी अनोखी सोच ने आपको रचना करने की अनोखी प्रवृत्ति दी है। आप अपनी कल्पना में ही पूरा संसार संजो लेते हैं। कभी आप पक्षियों से बातें करते हैं तो कभी झरनों के साथ गुनगुनाते हैं। आप फूल-पौधों से बतिया सकते हैं, हवा के साथतीसरी चीज जो आपके पास है, वह है आपकी जादुई नजर…. चीजों को देख सकने की आपकी विलक्षण क्षमता। प्रसिद्ध कवि विलियम वर्डसवर्थ ने अपनी एक कविता में अपने बचपन की यादों को ताजा करते हुए कहा है, “जब मैं छोटा था तो मुझे सभी वस्तुएं एक सुनहरे, रूपहले आवरण में लिपटी नजर आती थीं। घास-मैदान, खेत-खलिहान, पर्वत-मचान सभी कुछ अद्भुत। आज मुझे कुछ भी वैसा नजर नहीं आता जो बचपन में आता था। आज मैं उस दृष्टि से देख ही नहीं पाता हूं।”यह जो जादू का चश्मा आपकी आंखों में चढ़ा हुआ है, आपकी सबसे बड़ी नियामत है। इस जादुई नजर से आप न मालूम कितने सपने देख सकते हैं। सपने देखना बुरा नहीं है बल्कि जो सपने देख सकता है वही उन्हें पूरा करने की कोशिश भी करता है। राइट बंधुओं ने आकाश में उड़ने का सपना देखा तो हवाई जहाज का आविष्कार भी कर डाला। जेम्स वाट ने भाप की शक्ति को अपनी जादुई नजर से पहचाना तो वह भाप के इंजन की खोज भी कर पाया।आपकी इस जादुई नजर के पास सब रहस्यों को खोल सकने की चाभी है। वे सारे तिलस्मी रहस्य जो आकाश की परियों के पास हैं या पाताल के बौनों के पास। वे रहस्य जो नदी की मत्स्य कुमारी के पास हैं या सितारों की चमचमाती दीवाली में। यह जादुई नजर जब तक आप अपने पास रख पाएंगे आपकी कल्पना उतनी ही प्रखर होगी। कल्पना प्रखर होगी तो आपकी बुद्धि विकसित होगी और बुद्धि विकसित होगी तो आपके पास अपने सपनों को पूरा करने की ऊर्जा भी आ जाएगी। कल्पना के ताने-बाने में अपने सपनों के रंग संजोकर उसे सदैव रंगीन रखिए। इंद्रधनुष के रंगों जैसी सतरंगी-रंगीन अपने बचपन के कुछ अनुभव इस कविता के माध्यम से बांटना चाहूंगी-जब मैं तुम्हारी ही तरह छोटी थी,नानी की नतनियां और दादी की पोती थी,सुनती थी ढ़ेरों कहानियां और गीत,वर्षा, गरमी हो, या हो शीत।कहानियां थीं, शेरों की, भालू की,बेईमान की, चालू की,सूरज, चन्दा, तारों की,परियों के नजारों की,जादूगर की छड़ी की,उड़न तश्तरी की,गूंगे की, वाचाल की,स्वर्ग की, पाताल की…पाताल के नाम से ही होती थी हलचलमन के भीतर होने लगता था कौतुहल।….और मैं सोचती कि कहींएक ऐसी खिड़की पातीजिससे झांकते ही पाताल कीदुनिया नजर आतीजहां होता जादूगरनी का बौना बाजीगरमत्स्य लोक की राजकुमारी के सपनों का घरसुरंगों में घड़ों में भरी अशरफियांपारसमणि सी चौंंधियाती फुलझड़ियां।ज्यों-ज्यों बड़ी हुई, टूटता गया तिलस्मी जाल,और पता चलता गया धरती के भीतर का हाल।पृथ्वी की परतें, चट्टानें और भीतर का लावा,खनिज-लवण, सोने हीरे जैसेकीमती पत्थरों का छलावा।सदियों तक दबी वनस्पतिव जीव से बना कोयला तेलकठोर पत्थरों के संरक्षण मेंबहते निर्मल सोने का खेल।….इस तरह सच्चाई की धूप मेंकल्पना का भ्रमजाल मिटता गया,और धीरे-धीरे एक अमूल्यआनन्द का एहसास सिमटता गया।… तभी एक कौंध उठी…पुन: कल्पना हो उठी जीवंतकरती हुई कई नीरसताओं व दुविधाओं का अंत।पाया धरती के आगोश में छुपी हैंन जाने कितनी कहानियां,हड़प्पा, मोहनजोदड़ो सहितन मालूम कितनी सभ्यताओं की निशानियां,और मैंने फिर से इतिहास कीकल्पनाओं का भ्रमजाल बुनना शुरू कर दिया है लगता है पाताल की खिड़की काताला फिर से खुल गया है।16
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