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17 अगस्त को आरम्भ हो रही है बाबा बूढ़ा अमरनाथ यात्रा-जम्मू से खजूरिया एस.कांतबाबा बूढ़ा अमरनाथबूढ़ा अमरनाथ मंदिर में भगवान शिव व पार्वती के दर्शनसन् 2006 में बाबा बूढ़ा अमरनाथ की यात्रा का नेतृत्व करते हुए बजरंग दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री प्रकाश शर्मा। उनके बाएं हैं बजरंग दल, जम्मू-कश्मीर के अध्यक्ष श्री सुशील सूदनलारेन घाटी के बीच बहती पुलस्ती नदी, जिसके एक तट पर स्थित हैं बाबा बूढ़ा अमरनाथइस बार बाबा बूढ़ा अमरनाथ जी की यात्रा 17 अगस्त को विधिवत् पूजा अर्चना के साथ वेद मंदिर (जम्मू) से प्रारंभ होगी। यात्रा का पहला जत्था 18 अगस्त को वेद मंदिर से ही रवाना होगा। सप्ताह भर तक चलने वाली इस यात्रा का अंतिम जत्था 25 अगस्त को दर्शन कर वापस जम्मू लौटेगा। जम्मू का वेद मंदिर यात्रा का आधार शिविर रहेगा। विश्व हिन्दू परिषद के केन्द्रीय मंत्री श्री रविदेव आनंद को इस यात्रा का प्रमुख बनाया गया है। यह जानकारी देते हुए बजरंग दल के राष्ट्रीय संयोजक श्री प्रकाश शर्मा ने बताया कि देश भर के लगभग सभी राज्यों के श्रद्धालु इस यात्रा में शामिल होंगे। इससे आतंकवाद से ग्रस्त पुंछ-राजौरी क्षेत्र में रह रहे लोगों व सुरक्षाकर्मियों का मनोबल तो बढ़ेगा ही, देशभर के लोगों को इस पवित्र तीर्थस्थल के बारे में भी पता चल सकेगा। उन्होंने उम्मीद जताई कि इस वर्ष 30 से 35 हजार श्रद्धालु इस तीर्थ यात्रा में शामिल होंगे।उल्लेखनीय है कि बाबा बूढ़ा अमरनाथ जी के इस पवित्र स्थल में श्वेत (स्फटिक) पत्थर का शिवलिंग है, जिस कारण इसे चट्टानी बाबा का स्थान भी कहा जाता है। यह स्थल जम्मू से लगभग 290 किलोमीटर दूर पुंछ जिले की मंडी तहसील में पुलस्ती नदी के बाएं तट पर स्थित है। अत्यन्त मनोरम इस लोरन घाटी की ऊंचाई समुद्र तट से 4500 फीट है। यहां से पीर-पंजाल की बर्फ से लदी चोटियां साफ दिखाई देती हैं।बाबा बूढ़ा अमरनाथ तक पहुंचने के लिए जम्मू से सुंदरबनी, नौशहरा, राजौरी, स्वर्णकोट (सुरनकोट), चण्डक होते हुए मण्डी पहुंचा जा सकता है। चण्डक से पुंछ होकर भी मण्डी का एक मार्ग है। यह सम्पूर्ण मार्ग अत्यन्त दुर्गम और आतंकवाद से ग्रस्त है। पूरे रास्ते में घने जंगल हैं, जिसमें आतंकवादियों के ठिकाने हैं। सायंकाल 4 बजे के बाद इस मार्ग पर यातायात रोक दिया जाता है और प्रात: 7 बजे तब खुलता है जब सेना का बम निरोधक दस्ता पूरे मार्ग का निरीक्षण कर लेता है। यह मार्ग पाकिस्तान की सीमा के भी अत्यन्त निकट है।इस पवित्र तीर्थस्थान के सम्बंध में अनेक कथाएं प्रचलित हैं। कहते हैं कि रावण के दादा पुलत्स्य ऋषि, जो कि प्रतिवर्ष बाबा अमरनाथ के दर्शन करने कश्मीर घाटी जाते थे, एक वर्ष अत्यन्त वृद्ध हो जाने के कारण नहीं जा सके, तब हिमस्वरूप बाबा अमरनाथ ने स्वयं प्रकट होकर इसी स्थान पर दर्शन दिए, जोकि उनकी तपस्थली है। कालांतर में लोरन घाटी की महारानी की कथा भी इसमें जुड़ गई। कहते हैं कि महारानी चन्द्रिका, जो भगवान अमरनाथ की अनन्य भक्त थीं, के लिए भी एक वर्ष कश्मीर की परिस्थितियां अनुकूल नहीं थी। यात्रा का समय समीप आ रहा था और महारानी यह सोचकर कि इस भीषण परिस्थितियों के रहते हुए उनका बाबा अमरनाथ की वार्षिक यात्रा करना सम्भव नहीं है, विक्षुब्ध और उदास रहने लगीं। महारानी चन्द्रिका ने अमर व्रत रखा और प्रतिपल वह भगवान अमरनाथ का नाम जपने लगीं। तपस्या में लीन महारानी को एक बूढ़े साधु ने, जिनके हाथ में एक पवित्र छड़ी थी, दर्शन दिए। उन्होंने महारानी को बताया कि लोरन से अढ़ाई कोस नीचे, पुलस्ती नदी के तट पर श्री अमरनाथ महादेव के पवित्र और दिव्य दर्शन प्राप्त किए जा सकते हैं। महारानी उन बूढ़े साधु के नेतृत्व में अपने कुछ साथियों को लेकर उस स्थान तक आईं और साधु के बताए हुए स्थान पर अमरनाथ महादेव की पूजा में लीन हो गईं। कहते हैं कि वह वृद्ध श्वेतवर्णीय साधु उसी स्थान पर अदृश्य हो गए। बहुत ढूढ़ंने के पश्चात भी उनका कहीं पता नहीं चला। सभी को विश्वास है कि वह कोई और न होकर स्वयं महादेव ही थे। साधु महाराज के लोप होने के स्थान पर सफाई व खुदाई की गई तो श्वेत शिवलिंग स्वरूप चट्टान प्रकट हुई। तभी से यह पवित्र स्थान बूढ़ा अमरनाथ बाबा चट्टानी के नाम से प्रसिद्ध है।पवित्र श्री अमरनाथ यात्रा की ही भांति पुंछ- मण्डी-स्थित बाबा बूढ़ा अमरनाथ की यात्रा भी परम्परागत रूप से श्रावण मास में होती थी। मान्यता यह भी है कि बूढ़ा अमरनाथ की यात्रा किए बिना बाबा अमरनाथ भी कृपा नहीं करते। किन्तु सम्पूर्ण क्षेत्र में चले आ रहे आतंकवादियों के प्रकोप ने इस राष्ट्रीय यात्रा को तहसील और जिले तक ही सीमित कर दिया और कुल समय सीमा भी दो-तीन दिन तक ही सिमट गई। अब हिन्दू समाज ने इस यात्रा को पुन:प्रतिष्ठित करने का संकल्प लिया है, क्योंकि कश्मीर घाटी हिन्दुओं से खाली हो गई है। आतंकवादियों की योजना अब जम्मू संभाग को भी खाली कराने की है। राजौरी में 35 प्रतिशत और पुंछ में 8 प्रतिशत हिन्दू ही बचे हैं। यात्रा का उद्देश्य नौशहरा, राजौरी, पुंछ के हिन्दू की सुध लेने, उनका मनोबल बढ़ाने का भी है, ताकि पलायन रुक सके।धार्मिक आस्था के साथ-साथ राष्ट्रीय निष्ठा का जागरण एवं राष्ट्र रक्षा का संकल्प भी यात्रा के माध्यम से प्रकट हो रहा है। जैसे 1996 में समाप्त प्राय: हो रही बाबा अमरनाथ की यात्रा को इस देश के नौजवानों ने अपना बलिदान देकर पुन:प्रतिष्ठित किया। वैसे ही सन् 2005 में बजरंग दल के द्वारा इस यात्रा का आयोजन 5 अगस्त से 12 अगस्त तक किया गया था, जिसमें हजारों हिन्दू युवकों ने भाग लेकर अपने संकल्प को प्रकट किया। सन् 2006 में यात्रा 27 जुलाई को जम्मू से प्रारम्भ हुई थी जिसमें देशभर से लगभग 20,000 युवक सम्मिलित हुए थे।40
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