शिक्षा बचाओ आंदोलन: बढ़ते कदमशिक्षा से खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं!-अतुल कोठारीराष्ट्रीय सहसंयोजक, शिक्षा बच
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शिक्षा बचाओ आंदोलन: बढ़ते कदमशिक्षा से खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं!-अतुल कोठारीराष्ट्रीय सहसंयोजक, शिक्षा बच

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Dec 8, 2007, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 08 Dec 2007 00:00:00

शिक्षा बचाओ आंदोलन: बढ़ते कदमशिक्षा से खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं!-अतुल कोठारीराष्ट्रीय सहसंयोजक, शिक्षा बचाओ आन्दोलन समितिशिक्षा राष्ट्रीय विकास की धुरी होती है, लेकिन इसे देश का दुर्भाग्य ही कहेंगे कि स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात कांग्रेस और कम्युनिस्टों ने अपने निहित स्वार्थों के लिए पाठ्य-पुस्तकों को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत किया ताकि भारत में राष्ट्रवादी विचार पुष्ट न हो सके। इन्हीं विसंगतियों के विरुद्ध 2 जुलाई, 2004 को शिक्षा बचाओ आन्दोलन की शुरुआत हुई। दिल्ली में राष्ट्रीय स्तर पर संचालन समिति का गठन हुआ। देश के सभी राज्यों में प्रान्तीय स्तर की 29 समितियों की रचना हुई, जिसमें 5 से 10 संस्थाओं के 450 कार्यकर्ता सम्मिलित हैं। देश भर में 3 प्रकार से आन्दोलन चलाए जा रहे हैं- जन जागरण, प्रत्यक्ष आन्दोलन एवं कानूनी लड़ाई।जन जागरणअभी तक 36 पुस्तिकाओं का प्रकाशन हुआ है एवं 5 पुस्तकें अन्य संस्थाओं के प्रकाशन के सहयोग से (कुल मिलाकर 41 पुस्तकें) नियमित रूप से लगभग 5500 बुद्धिजीवियों को भेजी जा रही हैं। लाखों की संख्या में विभिन्न भाषाओं में जागरण पत्रक बांटे गए हैं। देश भर में 500 से अधिक संगोष्ठियों का आयोजन हुआ, जिनमें लगभग 1,00000 से अधिक लोग सहभागी हुए हैं।प्रत्यक्ष आंदोलनअभी तक राष्ट्रीय स्तर पर दो बार धरना, प्रदर्शन तथा सार्वजनिक सभा जैसे आंदोलनात्मक कार्यक्रम हुए हैं। कुछ प्रांतों में संभाग या जिला केन्द्र तक भी आन्दोलन हुए हैं। इसके अलावा इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय के इतिहास की पाठ्य पुस्तकों में शामिल विकृतियों के खिलाफ 50 से अधिक स्थानों पर देश भर में धरना- प्रदर्शन आदि कार्यक्रम हुए। दिल्ली में केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा परिषद् की बैठक के बीच विज्ञान भवन में प्रवेश करने की 65 कार्यकर्ता 2 से 9 दिन तक जेल में रहे। इसके विरुद्ध देशभर में कई स्थानों पर विरोध प्रदर्शन के कार्यक्रम भी हुए।कानूनी लड़ाईसन् 2004 में ही जयपुर उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गई थी। इस कारण राष्ट्रीय शैक्षणिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद् (एन.सी.ई.आर.टी.) वर्ष के बीच में ही जो पाठ्यक्रम बदलता चाहती थी, नहीं बदल सकी। अलवर के न्यायालय में जैन समाज द्वारा याचिका दायर करने के कारण भगवान महावीर एवं जैन मत के बारे में जो गलत बातें लिखी गई थीं, उनको एन.सी.ई.आर.टी. द्वारा निकाल दिया गया। वर्तमान में चण्डीगढ़, इलाहाबाद एवं दिल्ली उच्च न्यायालय में मुकदमे चल रहे हैं।एन.सी.ई.आर.टी. की इतिहास की पाठ्य पुस्तकों के 75 अंशों पर शिक्षा बचाओ आन्दोलन समिति ने आपत्ति दर्ज की थी। इस संदर्भ में दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपने अन्तरिम निर्णय में 67 अंशों को निकालने का आदेश दिया है। अन्य 8 अंश अप्रैल, 2008 में निकालने का एन.सी.ई.आर.टी. ने आश्वासन दिया है।इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय की एम.ए. इतिहास की पुस्तकों की विकृतियों के विरोध में आंदोलन हुए। फलस्वरूप मानव संसाधन विकास मंत्री को 3 दिन में इन विकृतियों को हटाने की संसद में घोषणा करनी पड़ी। दिल्ली विश्वविद्यालय के पत्राचार विद्यालय में भी इतिहास की पुस्तक में विकृति के विरोध में कानूनी नोटिस एवं ज्ञापन दिया गया, जिसके चलते उन विकृतियों को हटाया गया। पहले उत्तर भारत के लगभग सभी राज्यों में एन.सी.ई.आर.टी. का पाठ्यक्रम लागू किया जाता था। शिक्षा बचाओ आंदोलन समिति के प्रयासों के कारण 3 राज्यों में एन.सी.आर.टी. का पाठ्यक्रम लागू नहीं किया गया। एक राज्य में विश्वविद्यालय हेतु संदर्भ ग्रंथों की सूची में राष्ट्र विरोधी लेखकों के नाम सम्मिलित थे, जिसे हटाने का सफल प्रयास हुआ।मानव संसाधन विकास मंत्रालय एवं नेशनल एड्स नियंत्रण प्राधिकरण ने देशभर के विद्यालयों में यौन शिक्षा लागू करने का निर्णय किया है। उसके विरुद्ध समग्र देश में शिक्षा बचाओ आंदोलन समिति के माध्यम से विरोध किया जा रहा है। इसके तहत देश भर में चलाए गए हस्ताक्षर अभियान में अभी तक 5 लाख से अधिक हस्ताक्षर हो चुके हैं। जन जागरण हेतु हजारों की संख्या में “रेड एलर्ड” नामक पुस्तक का प्रकाशन किया गया है, जो पूरे देश में वितरित की जा रही है। स्थान-स्थान पर संगोष्ठियों का आयोजन किया जा रहा है। देश की संसद एवं विभिन्न प्रांतों की विधानसभाओं में इस प्रश्न को उठाने का प्रयास जारी है। इसके परिणामस्वरूप देश के सात प्रांतों (केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ एवं राजस्थान) ने इस शिक्षा को लागू करने पर रोक लगाई है। शिक्षा बचाओ आन्दोलन समिति के इन प्रयासों के कारण संसद के दोनों सदनों में इन विषयों पर व्यापक बहस हुई। परिणामस्वरूप विवादित असत्य बातों को पाठ्य पुस्तकों से हटाने की बात मानव संसाधन विकास मंत्री को कहनी पड़ी। हिन्दी की पुस्तकों की विकृतियों के संदर्भ में भी संसद में व्यापक बहस हुई। राजनीतिक दलों के दबाव के कारण मानव संसाधन विकास मंत्री ने हिन्दी की पुस्तकों की समीक्षा हेतु प्रोफेसर यशपाल की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया है।19

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