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प्रिय बन्धुओ, सप्रेम जय श्रीराम।थ् सादा और निरहंकारी व्यवहार का जीवन में कोई विकल्प नहीं हो सकता। जो जैसे रहता है वैसी ही उसकी छवि बनती है। मनोहर पर्रीकर गोवा के भाजपा नेता हैं। पुराने स्वयंसेवक हैं लेकिन उनकी छवि संगठन और विचारधारा से परे सर्वत्र आदर पाती है। कुछ वर्ष पहले वहां प्रेस दिवस के राजकीय कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के नाते गया था। पर्रीकर तब मुख्यमंत्री थे। हल्की सर्दी के दिन थे। गोवा की सर्दी के मुताबिक मैंने भी बंद गले का हल्का सूट पहना था। वातावरण बेहद औपचारिक जैसा ही था। विभिन्न समाचार पत्रों और दैनिकों के सम्पादक विराजमान थे। मेज पर पुष्प गुच्छ सजे हुए थे। सूचना निदेशक देशपाण्डे व्यस्तता के भाव से मुख्यमंत्री के आगमन की प्रतीक्षा कर रहे थे, उन्हें कार्यक्रम का उद्घाटन करना था। कुछ ही क्षण में वे आए तो मुझे लगा कि कैसे इस हालत में आ गए, शायद उन्हें तैयार होने के लिए घर जाने का समय नहीं मिला होगा। साधारण सी बाहर निकली हुई कमीज, पैंट और पांव में हवाई चप्पल। कमीज की जेब में दो पैन थे। आते ही आत्मीयता से कहने लगे, “बोला देशपाण्डे साहिब आता उद्घाटन करु या।” लेकिन दीप प्रज्ज्वलित करने के लिए सभी सम्पादकों को एक साथ बुला लिया। सबके भाषण हुए लेकिन पर्रीकर का भाषण एकदम अलग था। छोटा सा भाषण, लेकिन कलम और राजनेता की फिसलन पर बेबाक टिप्पणियां। शाम को उनसे घर पर भेंट हुई तो मैंने पूछा, मुख्यमंत्री के नाते औपचारिक कार्यक्रम में हवाई चप्पल में आ जाते हैं। ऐसी अनौपचारिकता साधारण में भी विशिष्ट बना देती है। वे हंस पड़े। कहने लगे, छोड़ो यार जैसा मन को ठीक लगे करते रहना चाहिए। मुझे जिन्दगी में किसी चीज का शौक नहीं है, बस पैन अच्छे से अच्छा रखना चाहता हूं इसलिए जन्मदिन या किसी दूसरे मौके पर मुझे मित्र लोग पैन ही ज्यादा देते हैं। बाकी किसी आडंबर से फर्क नहीं पड़ता। जनता सब जानती है। दोस्ती में कामकाज करो तो कभी दिक्कत नहीं होती।वही पर्रीकर अब संभवत: अगले सप्ताह मुख्यमंत्री बनेंगे। हमने सादगी पर भाषण देने वाले लेकिन स्वयं वैभवशाली जीवन जीने वाले लोग अक्सर देखें हैं, लेकिन पर्रीकर जैसे कम ही मिलेंगे, जो सादगी पर भाषण तो नहीं देते पर उसे जीकर जरुर दिखाते हैं।किसी व्यक्ति या संस्था के लिए चरम तक पहुंचना अपेक्षाकृत आसान होता है, लेकिन वहां टिके रहना बहुत कठिन। व्यक्ति या संस्था के प्रमुखों में यह भाव आ जाना बड़ा सरल होता है कि वही सब कुछ जानते हैं, जो वह कर रहे हैं वही ठीक है। सलाहकार या तो गलत हैं या जो आलोचना कर रहे हैं वे इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि उनके किन्हीं स्वार्थों की पूर्ति नहीं हो सकी थी इसलिए वे विरोधी बन गए। शायद ही कोई मित्रवत आलोचक किसी राजनेता का मित्र बन पाता हो, बन भी जाएगा तो ज्यादा दिन टिकेगा नहीं, क्योंकि उन्हें चाहिए होते हैं सिर्फ ऐसे लोग जो कहते रहें, वाह आप भी कमाल हैं, आपकी बात भी कमाल है, आपकी चाल भी कमाल है, आपके फैसले भी कमाल हैं।शेष अगली बार।आपका अपनात.वि.6
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