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आक्रोश अभी कुछ बाकी है-तरुण विजयसिंहवाहिनी ब्रिटानिया देवीब्रिटेन के 50 पेंस के सिक्के पर सिंहवाहिनी ब्रिटानिया देवी का चित्र अंकित है जो कि हजारों वर्ष पहले पूजित रोमन देवी (ईसाइयत से पहले) मिनरवा (इथेना या ब्रिटानिया) का प्रतिरूप है। क्लोडियस सीजर के समय 43 ईसवीं सन् में रोमनों ने ब्रिटेन पर विजय प्राप्त की थी और उन्होंने अपने नव विजित क्षेत्र को ब्रिटानिया देवी के नाम पर ब्रिटेन कहा। हालांकि आज का ब्रिटेन ईसाई है फिर भी उसने अपने ईसाई पूर्व काल की देवी का सम्मान किया। यह देवी कोई नहीं बल्कि सिंहवाहिनी दुर्गा का ही रूप है।1822 के सिक्के1822 में ब्रिटेन ने पुन: सिंह पर सवार हैड्रियान का यह चित्र सिंहवाहिनी ब्रिटानिया से समरूपता स्थापित करते हुए निकाला। वास्तव में ब्रिटेन में ऐसे कई सिक्के निकले हैं जिनमें ब्रिटानिया देवी को त्रिशूल लिए हुए चट्टान या सिंह पर सवार दिखाया गया है। यह ब्रिटेन की शक्ति, वीरता और अजेय चरित्र का प्रतीक माना गया।अपरिहार्य कारणों से श्री जगमोहन के आलेख और गेशे जम्पा उपन्यास की अगली कड़ियां हम इस अंक में प्रकाशित नहीं कर पा रहे हैं। सं.दो रुपए के सिक्के पर ईसाई क्रास के चिह्न अंकित करने से लेकर आंध्र प्रदेश में हिन्दू मतों को समग्रत: सरकारी नियंत्रण में लेने तक इतनी अधिक घटनाएं एक साथ हो रही हैं कि हिन्दू मानस स्तब्ध और अवसन्न दिखे तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। उसके साथ ही राम सेतु पर निशाना साधा जा रहा है। भारत ने अपने इतिहास में कभी इतना एकजुट, सुनियोजित और तीखा प्रहार नहीं झेला है, जितना वह इस संप्रग सरकार के अन्तर्गत झेल रहा है। ऐसी स्थिति में दीवाली की आधी रात पूजा कर रहे जगद्गुरु शंकराचार्य जी की गिरफ्तारी से लेकर राम सेतु को तोड़कर समुद्री जहाजों के लिए रास्ता बनाने तक की योजनाएं केवल हिन्दुओं पर ही निशाना साधे हुए दिखती हैं।भारत के सिक्कों पर यदि कोई सांस्कृतिक चिह्न अंकित हो तो वह श्रीराम, श्रीकृष्ण, गुरु गोविन्द सिंह, शिवाजी, स्वामी विवेकानन्द, ॐ, स्वस्तिक अथवा भारतीय एकता के प्रतीक चार प्रमुख तीर्थों का चित्र स्वाभाविक लगेगा। भारत की बात क्यों, इण्डोनेशिया की मुद्राओं पर गणपति के चिह्न हैं, जबकि इण्डोनेशिया मुस्लिमबहुल है। वहां की सरकार ने अपने देश के सांस्कृतिक अधिष्ठान और सभ्यतामूलक पृष्ठभूमि का सम्मान करना सीखा। ब्रिटेन में सिंहवाहिनी ब्रिटानिया देवी को सिक्के पर अंकित किया गया, जो कि सीधे-सीधे सिंहवाहिनी दुर्गा का प्रतिरूप ही प्रतीत होता है, क्योंकि ब्रिटानिया की जिस देवी को सिंह पर सवार दिखाया गया है, वह त्रिशूलधारी है और ईसाई पूर्व सांस्कृतिक परम्परा से ली गयी है।एक ओर इण्डोनेशिया और ब्रिटेन जैसे देश अपनी संस्कृति पर अभिमान रखते हुए मुस्लिम और ईसाई पूर्व सांस्कृतिक युग को सम्मानित करते हैं, दूसरी ओर यह भारत की सरकार है जो अपने ही सभ्यतामूलक अधिष्ठान और सांस्कृतिक गौरव के प्रति शर्मिंदा दिखती है। इसीलिए धोखे और छल से एक-दूसरे बहाने से उसने 2 रुपए के सिक्के पर क्रास का चिह्न अंकित किया। यह चिह्न रिजर्व बैंक के जिन अधिकारियों ने बनाया, देखा और अनुमोदित किया वे वस्तुत: नोरपोक इंग्लैण्ड में 16वीं तथा 17वीं शताब्दी में प्रचलित ईसाई सिक्कों की चोरी के गुनाहगार माने जाने चाहिए। उन सिक्कों के चित्र यहां दिए गए हैं।16वीं व 17वीं शताब्दी के ब्रिटेन के सिक्के की नकल- स्पष्ट है कि रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया ने 16वीं और 17वीं शताब्दी के ब्रिटिश ईसाई सिक्कों का रूपांकन लेकर भारत के सिक्कों पर उतार दिया। लेकिन किससे शिकायत करें? जिस देश का हिन्दू मानस अभी भी एकता, पारस्परिक, आत्मीयता और एक-दूसरे के सुख-दु:ख में साथ देने की भावना से मीलों दूर विधर्मी, विदेशी से पहले अपने ही हिन्दू परिवार के घटकों पर चोट और प्रहार करने में आनन्द और संतोष अनुभव करता हो उस समाज में अपने राष्ट्रीय एवं सांस्कृतिक अधिष्ठान पर विदेशी मूल के विधर्मी आघातों के खिलाफ खड़े होने का उबाल पैदा होगा, यह आशा करना केवल तब संभव है जब हम डाक्टर हेडगेवार और श्रीगुरुजी के आदर्शों और हिन्दू जीवन के उत्कर्ष में उनके विश्वास पर अपना विश्वास टिकाते हों। यह समय अग्निधर्मा उबाल, भाषा-भूषा, पंथ, वैचारिक मतभेद और दलीय प्रतिबद्धताओं का सीमातिक्रमण करते हुए हिन्दू एकजुटता की मांग करता है। परन्तु न राम सेतु और न ही हिन्दुओं पर हो रहे चतुर्दिक प्रहार दलीय राजनीति का हिस्सा बनने चाहिए। यह सभी देशभक्त भारतीयों, विशेषकर हिन्दू जीवन और परम्परा में निष्ठा रखने वाले करोड़ों नागरिकों की अस्मिता और पहचान का बिन्दु है। इस बिन्दु से स्खलन अपने आत्मतत्व और राष्ट्रधर्म से च्युत होने के समान होगा।7
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