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सम्पादकीयमंगल पाण्डे ने 1857 के इस क्रांति युद्ध के लिए अपना उष्ण रक्त प्रदान किया था। किन्तु इसके स

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Jun 5, 2007, 12:00 am IST
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दिंनाक: 05 Jun 2007 00:00:00

सम्पादकीयमंगल पाण्डे ने 1857 के इस क्रांति युद्ध के लिए अपना उष्ण रक्त प्रदान किया था। किन्तु इसके साथ ही उसने अपना नाम भी अमिट रहने वाले अक्षरों में लिखवा दिया। स्वधर्म और स्वराज्य हेतु लड़े गए 1857 के स्वातंत्र्य-समर में भाग लेने वाले सभी क्रांतिकारियों को भी इस क्रांति के शत्रुओं ने “पाण्डे” नाम से सम्बोधित किया। प्रत्येक माता का यह पावन दायित्व है कि अपने बालक को इस पवित्र नाम का स्वाभिमान सहित उच्चारण करना सिखला दे।-विनायक दामोदर सावरकर (1857 का भारतीय स्वातंत्र्य समर, पृ. 111)गुलाम कश्मीर मुक्त कराने की बजायअपना कश्मीर गुलाम बनाने की ओर?जम्मू-कश्मीर पर जरूरत से ज्यादा “चिंतित” दिखने वाली संप्रग सरकार ने तीसरे दौर की गोलमेज बैठक 24 अप्रैल को दिल्ली में आयोजित की। इस बैठक में “शांति और प्रगति” के जिस मार्ग की प्रधानमंत्री ने 7 बिन्दुओं में घोषणा की उसके परे जमीनी सच्चाई को देखना जरूरी है। बैठक में अलगाववादी हुर्रियत नेताओं को बुलाया गया था। न्योता तो भारत विरोधी जहर उगलने वाले गिलानी को भी दिया गया था। पर वे आए नहीं। गिलानी वही हैं जिनके मुम्बई से श्रीनगर लौटने पर स्वागत के लिए दो दिन पहले ही आयोजित सभा में लश्करे तोइबा जैसे कट्टर आतंकवादी गुट और पाकिस्तान के झण्डे मंच से लहराए गए थे। हालांकि इन पंक्तियों के लिखे जाने तक समाचार है कि उन्हें उनके घर में ही बंदी बना लिया गया है।जम्मू-कश्मीर और गुलाम कश्मीर के लोगों के बीच मेल-मिलाप बढ़ाने वाले कदमों की पैरवी के साथ ही दिलासा देने के लिए पश्चिमी पाकिस्तान से आए हिन्दू शरणार्थियों को मताधिकार और कश्मीरी हिन्दुओं की घाटी वापसी का जिक्र किया गया। प्रधानमंत्री ने कहा, केन्द्र और राज्य सरकार इस दिशा में समयबद्ध कार्यक्रम पर अमल करें। गोलमेज में सवाल उठाया जाना चाहिए था आतंकवाद की समाप्ति का, कश्मीर में उन सभी कानूनों, जो शेष देश में लागू हैं, को लागू करने की समयबद्ध योजना का तथा अंतत: गुलाम कश्मीर को वापस भारत में मिलाने का। मगर इन आधारभूत बिन्दुओं पर कोई चर्चा नहीं हुई। उधर लद्दाख की देशभक्त जनता घाटी की साम्प्रदायिक विद्वेष भरी नीतियों से तंग आकर अपने क्षेत्र की बेहतरी के लिए लद्दाख को संघ शासित क्षेत्र बनाने की मांग वर्षों से उठाती आ रही है। उसको भी नहीं छुआ गया। इतना ही नहीं, चिंताजनक तो इधर कुछेक अखबारों में छपी रपटें भी हैं जो घाटी से सेना की 27 डिविजनों को लौटाने का आदेश जारी करने की जानकारी देती हैं। सैनिक लौटने शुरू भी हो गए हैं। श्रीनगर की जामा मस्जिद के पास पिछले 19 साल से स्थित केन्द्रीय आरक्षी बल के शिविर को हटाने का फरमान दिल्ली ने भेज दिया है। जबकि सरकार जानती है कि इस इलाके में रह-रहकर आतंकवादी घटनाएं होती रही हैं। उत्तरी कमांड के लेफ्टिनेंट जनरल एच.एस. पनाग ने बताया है कि घाटी में आज भी 1500 आतंकवादी सक्रिय हैं।सवाल यह नहीं है कि पी.डी.पी. के सामने सरकार घुटने टेक रही है या हुर्रियत के सामने। सवाल तो खड़ा होता है जनरल मुशर्रफ के उस बयान से जो उन्होंने 25 अप्रैल को स्पेन में वहां की विदेश मामलों की समिति के सामने दिए हैं। इसमें उन्होंने जहां डा. मनमोहन सिंह की एक “भरोसेमंद” और “अमनपसंद” नेता कहकर तारीफ की वहीं यह “उम्मीद” भी जताई कि कश्मीर का मसला जल्दी सुलझ जाएगा। पाकिस्तान के विदेश मंत्री खुर्शीद महमूद कसूरी भी अपनी पिछली भारत यात्रा में यही सब कह गए थे। पाकिस्तानी नेताओं के चेहरों पर “कश्मीर पर भारत सरकार की रीति-नीति” को देखकर जो रौनक दिखती है, उससे भारत भक्तों की चिंताएं बढ़ना अस्वाभाविक नहीं है। उनके मन में यही सवाल बार-बार उठ रहा है कि क्या हम कश्मीर छोड़ रहे हैं? 1857 के प्रथम स्वातंत्र्य समर की 150वीं जयंती मना रहे भारत की कमान आज जिस सरकार के हाथ में है उसकी अब तक की चाल-ढाल कहीं से यह सुनिश्चित नहीं करती कि भारत की अखण्डता उसके हाथों अक्षुण्ण रहेगी!अटल जी का जादू़भारतीय राज्य पक्ष की परंपरा में ऐसे बहुत कम प्रज्ञा पुरुष हुए हैं जो जीवन के उत्तराद्र्ध में भी प्रारंभिक काल के समान ही लोकप्रिय और विजय हेतु अपरिहार्य ही न माने जाते हों बल्कि उनकी उपस्थिति चुनावी गणित में विजय से अधिक आशा और विश्वासवर्धक अहसास कराने वाली मानी जाए। अटल बिहारी वाजपेयी ऐसे ही स्वयंसेवक राजनेता हैं जिन्होंने पाञ्चजन्य के सम्पादक पद से लेकर भारतवर्ष के कामकाज तक का कुशल संपादन किया है।बहुत प्रयास किया तब माने उत्तर प्रदेश में चुनाव प्रचार हेतु आने के लिए। क्योंकि कह चुके थे, “अब राजनीति की सक्रियता से मुझे मुक्त करो। बहुत हुआ, अब जाने दो।” मगर राजधर्म, युगधर्म और आत्मीय बन्धुत्व की डोर उन्हें खींच ही लाई। अनेक समाचार पत्रों ने इस पर टिप्पणी की। आखिर अटल की उपस्थिति अटल रूप से आवश्यक ही रही। यह आनंद और गौरव की बात है कि हमारे सह पथगामी विचार, विस्तार और विराटता में एक ऐसा प्रभामंडल बने हैं जो सुख और बलवर्धक हैं। अटल जी और उनका विचार पथ सुदीर्घ एवं और भी यशस्वी हो, यह कामना है।5

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