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न स्वेच्छं व्यवहर्तव्यमात्मन: भूतिमिच्छता।अपने कल्याण के इच्छुक व्यक्ति को स्वेच्छाचारी नहीं होना चाहिए।-सोमदेव (कथासरित्सागर, 14/127)फिर एक परीक्षणकुछ अखबारों में ऐसी खबरें छपी हैं कि पाकिस्तान ने एक और यानी तीसरी क्रूज मिसाइल का परीक्षण किया है। पता चला है कि यह मिसाइल 700 कि.मी. तक परमाणु सामग्री दाग सकती है। इस खबर पर भारत के सुरक्षा विशेषज्ञ पर्याप्त सतर्कता और सावधानी से विचार कर रहे हैं क्योंकि यह भारत की दृष्टि से एक खतरनाक संकेत ही है। जनरल मुशर्रफ, इसमें संदेह नहीं कि, अपने पद और अपने रवैये को बनाए रखना चाहते हैं और इसके लिए वे हर वह कदम, भले अफरा-तफरी में, उठाने से झिझकेंगे नहीं जो उनकी नजर में उनके दबदबे को और बढ़ाता हो। लाल मस्जिद और पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति इफ्तिखार मोहम्मद चौधरी की पुन: बहाली को अभी ज्यादा वक्त नहीं गुजरा है। लाल मस्जिद के कारण जनरल मुशर्रफ पाकिस्तान के जिहादी तत्वों और तालिबानी समर्थकों के निशाने पर हैं तो न्यायमूर्ति चौधरी की जीत उनके अडि़यल रवैये पर एक करारा प्रहार थी। संभवत: अमरीका के इशारे पर मुशर्रफ ने अपने देश में तालिबानी ठिकानों के संदेह में कम से कम 9 स्थानों पर सैन्य हमले करवाए। इनमें, सूत्रों के अनुसार बड़ी संख्या में तालिबानी तत्व मारे गए। ये हमले भी कथित अमरीका द्वारा बताए स्थानों पर किए गए थे। संभावना यह भी जताई गई कि अमरीका परोक्ष रूप से इसमें सहयोगी रहा था।पाकिस्तान में आम चुनावों की घोषणा होने के बाद से मुशर्रफ की पूरी कवायद सिर्फ और सिर्फ यही रही है कि वे किसी भी तरह अपने राष्ट्रपति पद और अपनी वर्दी को बचाए रखें। अमरीका पूरी तरह से मुशर्रफ के पीछे खड़ा दिखता है। उसे लगता है कि अगर मुशर्रफ के हाथ से कमान जाती है तो पाकिस्तान में कट्टरवादी मानसिकता सत्ता अधिष्ठान पर हावी हो जाएगी और तब उसकी “आतंक के खिलाफ वैश्विक जंग” को ठेस पहुंचेगी। इधर मुशर्रफ पाकिस्तान में जिस तरह गंभीर हालातों का सामना कर रहे हैं उसमें भारत के खिलाफ दिखने वाली किसी भी हरकत के जरिए वे पाकिस्तानियों का ध्यान बंटाने से चूकेंगे नहीं ।इन सब स्थितियों में भारत की संप्रग सरकार की कश्मीर से सेना हटाने की नीति किसी दृष्टि से समझदारी भरी नहीं कही जा सकती। जम्मू-कश्मीर में सरकार की घटक पीडीपी के नेता मुफ्ती मोहम्मद भले ही समर्थन वापसी की कितनी भी धमकियां दें, राष्ट्रहित को ताक पर नहीं रखा जा सकता। जम्मू- कश्मीर चुनावों की बजाय संप्रग सरकार को व्यापक राष्ट्रीय संदर्भों को नजर में रखना होगा। ताजा मिसाइल परीक्षण के अलावा पाकिस्तान की तरफ से आने वाली अन्य खबरें भी भारत की दृष्टि से चिन्ताजनक ही कही जा सकती हैं। नियंत्रण रेखा के निकट पाकिस्तानी हलचल की चर्चा है तो जम्मू सेक्टर से घुसपैठ बढ़ने के भी समाचार हैं। ऐसे में कश्मीर घाटी के अलगाववादी नेता सैय्यद अली शाह गिलानी का वह तीखा बयान भी अनदेखा नहीं किया जा सकता जिसमें उन्होंने घाटी में मेहनत-मजदूरी करके रोजी-रोटी कमा रहे जम्मू-कश्मीर से बाहर के लोगों, जिनमें श्रमिक अधिक हैं, को लक्ष्य करके कहा था कि “कश्मीर घाटी से भारतीय बाहर चले जाएं।” पता चला है कि बड़ी संख्या में वहां से लोगों ने पलायन किया है जो निश्चित रूप से हिन्दू ही थे। हुर्रियत का अलगाववादी गुट भी गाहे-बगाहे पाकिस्तान जाकर भारत विरोधी बयानबाजी करता रहा है।ये बातें निश्चित रूप से भारतीय सुरक्षा विशेषज्ञों के लिए तो चिंता का विषय बनी ही हुई हैं और वे विभिन्न माध्यमों से सरकार को सचेत करते भी रहे हैं। जरूरत इस बात की है कि संप्रग सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा की चिन्ता पूरी गंभीरता से करे और साथ ही अमरीका के साथ चल रही परमाणु संधि की “अंतिम दौर की बातचीत” को भी देश हित की दृष्टि से आगे बढ़ाए।6
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