केरलअभाविप की राष्ट्रीय संगोष्ठी मेंअल्पसंख्यक शिक्षा संस्थानों पर लगाम की मांग-प्रदीप कुमारगत 16-17
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केरलअभाविप की राष्ट्रीय संगोष्ठी मेंअल्पसंख्यक शिक्षा संस्थानों पर लगाम की मांग-प्रदीप कुमारगत 16-17

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Mar 6, 2007, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 06 Mar 2007 00:00:00

केरलअभाविप की राष्ट्रीय संगोष्ठी मेंअल्पसंख्यक शिक्षा संस्थानों पर लगाम की मांग-प्रदीप कुमारगत 16-17 मई को अरणाकुलम में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् (अभाविप) की राष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न हुई। इसमें केरल के 500 प्रतिनिधियों सहित देशभर से शिक्षा क्षेत्र से जुड़े विद्वानों ने भाग लिया। संगोष्ठी में “शिक्षा क्षेत्र में अल्पसंख्यकों के अधिकार- तार्किकता और भ्रांतियां” विषय पर वक्ताओं ने अपने विचार व्यक्त किए। केरल में इन दिनों सरकार ने केरल प्रोफेशनल कालेजिज एक्ट-2006 लागू किया है जिसमें दाखिलों के लिए पैसा लेने की पाबंदी है, दाखिलों को सुचारू करने और ज्यादा शुल्क न लेने की व्यवस्था की गई है तथा निजी गैर सहायता प्राप्त व्यावसायिक कालेजों में लंबी-चौड़ी राशि बटोरने की प्रथा पर लगाम लगाने की बात कही गई है। अल्पसंख्यक दर्जा देने की शर्तों से जुड़े इस कानून के प्रावधानों का ताकतवर ईसाई और मुस्लिम प्रबंधनों ने, जो राज्य के 80 प्रतिशत व्यावसायिक संस्थानों का नियंत्रण करते हैं, ने तीखा विरोध किया है। अभाविप की यह संगोष्ठी इस पृष्ठभूमि में महत्वपूर्ण थी।सरकार के इस कानून को केरल उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई तथा खण्डपीठ ने इसके कई महत्वपूर्ण प्रावधानों को खत्म कर दिया, जिनमें अल्पसंख्यक दर्जे की पात्रता तय करने वाले प्रावधान भी शामिल थे। उच्च न्यायालय के इस फैसले के बाद अभाविप ने इस विषय पर राष्ट्रीय बहस आयोजित करने का विचार बनाया था। इसमें चर्चा की गई कि क्या तथाकथित अल्पसंख्यकों को धारा 30(1) में दिए संरक्षण की आवश्यकता है, क्या इससे बहुसंख्यकों के हितों को कोई नुकसान तो नहीं पहुंचता?संगोष्ठी का उद्घाटन करते हुए पूर्व केन्द्रीय मंत्री और जनता पार्टी के अध्यक्ष डा. सुब्राहृण्यम स्वामी ने कहा कि कुल जनसंख्या में 50 प्रतिशत से कम आबादी वाले किसी भी समुदाय को अल्पसंख्यक कहने का चलन सरासर गलत है। उन्होंने कहा कि भारतीय संविधान, सर्वोच्च न्यायालय और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग ने अल्पसंख्यक की कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं दी है। बिना यह साफ हुए कि अल्पसंख्यक कौन है, यह देश पिछले साठ साल से अल्पसंख्यक अधिकारों पर बहस करता आ रहा है। आखिर जब कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं है तो हम अल्पसंख्यक की पहचान कैसे कर सकते हैं? डा. स्वामी ने आगे कहा कि 2005 में सर्वोच्च न्यायालय की खण्डपीठ ने बाल पाटिल बनाम केन्द्र सरकार के मामले में निर्णय देते हुए अल्पसंख्यकवाद की भत्र्सना की थी जो दुर्भाग्य से देश के लिए एक काला धब्बा बन गया है। मुस्लिमों और ईसाइयों को आज भारत में अल्पसंख्यक नहीं माना जा सकता। इन दोनों मजहबी समुदायों ने एक हजार साल से ज्यादा समय भारत पर राज किया और इस दौरान हिन्दुओं से भेदभाव बरता है। इसलिए सभी को मिलकर नौकरियों और शिक्षा में मुस्लिमों व ईसाइयों के लिए विशेष स्थान रखने की कोशिशों का विरोध करना चाहिए। शिक्षा में अल्पसंख्यकों के अधिकारों का उद्देश्य सामाजिक न्याय को बढ़ाना होना चाहिए।मुख्य वक्ता के रूप में पंजाब- हरियाणा उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रामा जायस ने अपने भाषण में कहा कि भारतवासी एक हैं और उनको पंथ व भाषा के आधार पर, अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक के रूप में बांटना सही नहीं है। यह देश की एकता व अखण्डता के लिए घातक है जबकि कुछ राजनीतिक दल इसी काम में लगे हुए हैं। केरल उच्च न्यायालय द्वारा अल्पसंख्यक कालेजों के संदर्भ में बने कानून के प्रावधानों को कतरना सर्वोच्च न्यायालय द्वारा घोषित कानून से उलट है।सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति के.टी. थामस ने कहा कि विशेष अधिकार केवल उन्हें देने चाहिए जो सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े हैं। मजहब के आधार पर विशेष अधिकारों का दावा बेमानी है। अल्पसंख्यक अधिकारों के संरक्षण के नाम पर व्यावसायिक प्रबंधन बेलगाम व्यवसाय में जुटे हैं।भारतीय विचार केन्द्रम के निदेशक और विवेकानंद केन्द्र (कन्याकुमारी) के अध्यक्ष श्री पी. परमेश्वरन ने कहा कि जिस मानसिकता ने द्विराष्ट्र का सिद्धान्त चलाया, वह देश बांटने वाली मानसिकता आज भी सक्रिय है। इंडियन इंस्टीटूट फार क्रिश्चियन स्टडीज के अध्यक्ष जोसफ पुल्लिकुन्नेल ने कहा कि भाषा और संस्कृति को संरक्षण देने वाली संवैधानिक धाराओं का कुछ गुटों द्वारा दुरुपयोग किया जा रहा है। चर्च द्वारा भारत में कितनी संपत्ति इकट्ठी की गई है, उसकी निगरानी करने का कोई नियम नहीं है। चर्चों और उनके संस्थानों को नियंत्रित करने के लिए कानून लाया जाना चाहिए। संगोष्ठी को संबोधित करने वाले अन्य विशिष्टजन थे सुप्रसिद्ध विचारक श्री एस. गुरुमूर्ति, केरल के चिकित्सा शिक्षा मंत्री डा. वी.एस. आचार्य, अभाविप के राष्ट्रीय सचिव श्री संदीप, अधिवक्ता एस. मनु, परिषद् के प्रदेश अध्यक्ष अधिवक्ता एन. नागरेश और श्री के.जी. वेणुगोपाल। इस संगोष्ठी में बड़ी संख्या में छात्रों और शिक्षकों ने भी भाग लिया।21

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