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राजस्थान साहित्य अकादमी के राष्ट्रीय लेखक सम्मेलन व साहित्यकार सम्मान समारोह में वरिष्ठ साहित्यकारों ने कहा-

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Jan 4, 2007, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 04 Jan 2007 00:00:00

साहित्य में झलके विरोध के स्वर-डा. महीप सिंहराजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर का राष्ट्रीय लेखक सम्मेलन व साहित्यकार सम्मान समारोह गत 17-18 फरवरी को जयपुर में सम्पन्न हुआ। इसमें देशभर के साहित्यकारों ने भाग लिया। समारोह का उद्घाटन भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष व वरिष्ठ साहित्यकार डा. महेशचन्द्र शर्मा ने किया। कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि थे साहित्यकार डा. महीप सिंह व अध्यक्षता की उपन्यासकार डा. नरेन्द्र कोहली ने। सर्वप्रथम अकादमी की अध्यक्ष डा. (श्रीमती) अजित गुप्ता ने स्वागत भाषण करते हुए कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की।मुख्य अतिथि डा. महेश शर्मा ने कहा कि साहित्य में जीवन दर्शन ही झलकता है। परन्तु आज सत्संग, गान, कीर्तन और लोक गीतों का तिरोहित होना चिंता का विषय है। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद एवं मानवीय संवेदनाओं से युक्त राष्ट्रवाद पर बल देते हुए उन्होंने कहा कि साहित्यकार हमेशा जूझता रहा है, जूझ रहा है। मगर उन्होंने आशा जताई कि सूर्य का प्रकाश निश्चित रूप से आएगा।विशिष्ट अतिथि डा. महीप सिंह ने माना कि साहित्य सृजन की स्थिति निराशाजनक नहीं है। केवल निर्देश नहीं विरोध का स्वर भी आना चाहिए।डा. नरेन्द्र कोहली ने कहा कि साहित्य में सृजन की प्रक्रिया निरंतर चलती रहनी चाहिए। संस्कृति की रक्षा नहीं होगी तो बाजार की रक्षा भी नहीं हो पाएगी। उन्होंने शाश्वत मूल्यों पर जोर देते हुए कहा कि विजय शक्ति की होती है। अकादमी के उपाध्यक्ष डा. बद्री प्रसाद पंचोली ने आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर अकादमी की वार्षिक पत्रिका सोपान का लोकार्पण भी हुआ।प्रथम सत्र में साहित्य सृजन और राष्ट्रीयता विषय पर पत्रवाचन करते हुए डा. के.के. शर्मा (उदयपुर) ने राष्ट्रीय भावना के विकास का विश्लेषण किया। डा. सदानंद गुप्त (गोरखपुर) ने यूरोप और भारत की राष्ट्रीयता का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया। सत्र के मुख्य अतिथि पांचजन्य के सम्पादक श्री तरुण विजय ने कहा कि सम्मान प्राप्ति के चक्कर में मूल्य आधारित लेखन कम हो रहा है। इस ओर सामूहिक चिंतन की आवश्यकता है। कार्यक्रम अध्यक्ष डा. दयाकृष्ण विजयवर्गीय (कोटा) ने अधकचरे विचारों को भाषा और साहित्य में अधोगति लाने वाला बताया। सत्र में गीतकार मधुकर गौड़ के नवीन गीत संग्रह सांस सांस गीत का लोकार्पण भी हुआ। 18 फरवरी की सुबह द्वितीय सत्र में भारतीय जीवन मूल्य और साहित्य विषय पर डा. इन्दुशेखर तत्पुरुष (गंगापुर सिटी) ने कहा कि भारतीय जीवन मूल्य शाश्वत होते हैं। पश्चिमी दर्शन संघर्ष और द्वंद्व पर टिका है जबकि भारतीय दर्शन एकात्मक है।विशिष्ट अतिथि डा. शत्रुघ्न प्रसाद सिंह (पटना) ने कहा कि आज समाज जीवन में मूल्यों का संकट है। भारत और भारतीयता को पराजित करने के षडंत्र चल रहे हैं। मुख्य अतिथि डा. आरसु (केरल) ने संस्कृति पर संकट से सचेत किया। कार्यक्रम अध्यक्ष डा. बद्रीप्रसाद पंचोली ने कहा कि भारत त्यागभूमि है। उन्होंने भाषाओं और चिंतन के माध्यम से संस्कृति के संरक्षण की बात कही। आधुनिक बाजारवाद और लेखकीय संकट विषयक तृतीय सत्र का संचालन करते हुए श्री अनंत भटनागर (अजमेर) ने कहा कि आज ऐसे लेखकों की भी कमी नहीं जो बाजार के अनुरूप लिख रहे हैं। इस विषय पर खुली चर्चा में डा. विद्यासागर शर्मा, ए.के. ऋषि, विजय सिंह नाहटा, डा. इन्दुशेखर तत्पुरुष, श्रीकृष्ण शर्मा, आनंद शर्मा व उषा गोयल ने भाग लिया।मुख्य अतिथि डा. बालशौरी रेड्डी (चेन्नै) ने कहा कि लेखक रचना को जीता है। वह समाज का प्रतिनिधित्व करता है।कार्यक्रम अध्यक्ष श्री राजेन्द्र परदेशी (लखनऊ) ने कहा कि साहित्यकार अपनी रचनाओं के माध्यम से हमेशा देता है, कुछ लेता नहीं। उन्होंने ऐसे सम्मेलन छोटे शहरों में करवाने पर बल देते हुए शहर छोड़कर गांवों में पाठकों की तलाश करने की बात कही। समापन समारोह के मुख्य अतिथि प्रो. कलानाथ शास्त्री ने सम्मेलन में आए सार्थक विचारों की प्रशंसा की और कहा कि इनका मुद्रण हो और कार्यशालाएं भी हों। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए श्री राधेश्याम धूत ने जीवन मूल्य संस्कारों में संचारित करने का आह्वान किया।इससे पूर्व 17 फरवरी की शाम अकादमी का वार्षिक साहित्यकार सम्मान समारोह हुआ। इसमें मुख्य अतिथि शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी, विशिष्ट अतिथि पाञ्चजन्य के सम्पादक श्री तरुण विजय, राजस्थान उर्दू अकादमी की अध्यक्ष डा. प्रवीण अख्तर तथा साहित्य अकादमी अध्यक्ष डा. (श्रीमती) अजित गुप्ता ने साहित्यकारों को प्रतीक चिन्ह, प्रमाण पत्र व पुरस्कार राशि के ड्राफ्ट भेंट कर सम्मानित किया। विशिष्ट साहित्यकार सम्मान डा. रामकृष्ण शर्मा (भरतपुर), श्री रघुराज सिंह हाड़ा (झालावाड़), श्री मधुकर गौड़ (मुम्बई) व श्री बलवीर सिंह करुण (अलवर) को दिया गया। काव्य विधा का सुधीन्द्र पुरस्कार श्री मनोज कुमार शर्मा (जयपुर), निबंध-आलोचना का देवराज उपाध्याय पुरस्कार मदनमोहन माथुर (जोधपुर), विविध विधाओं का कन्हैयालाल सहल पुरस्कार डा. आदर्श शर्मा (जयपुर), प्रथम प्रकाशित कृति का सुमनेश जोशी पुरस्कार श्रीमती गीता भट्टाचार्य (जोधपुर) व बाल साहित्य का शम्भूदयाल सक्सेना पुरस्कार श्रीमती गीतिका गोयल (जयपुर) को दिया गया। नवोदित प्रतिभा प्रोत्साहन पुरस्कार के अंतर्गत डा. सुधा गुप्ता पुरस्कार सुश्री पुष्पांजलि (भीलवाड़ा), चन्द्रदेव शर्मा पुरस्कार सुश्री अमनदीप पंवार (बीकानेर) व कहानी विधा में यह पुरस्कार सुश्री दीपिका शर्मा (उदयपुर) को तथा परदेशी पुरस्कार (निबंध) तारानगर के आनंद जांगिड़ को दिया गया। मुख्य अतिथि प्रो. वासुदेव देवनानी ने कहा कि साहित्यकार समाज को जोड़ता है। प्रो. देवनानी ने आगामी सत्र से सिन्धु नदी पर अध्ययन को पाठक्रम में जोड़ने की बात भी कही। अकादमी सचिव डा. प्रमोद भट्ट ने सभी का आभार व्यक्त किया। -प्रतिनिधि30

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