चर्चा-सत्र
July 15, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम Archive

चर्चा-सत्र

by
Dec 11, 2006, 12:00 am IST
in Archive
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

दिंनाक: 11 Dec 2006 00:00:00

भारतीय लोकतंत्र

बदलाव और सुधार की बात करें

टी.वी.आर. शेनाय

एक बार अटल बिहारी वाजपेयी ने चुनावों को लोकतंत्र की नब्ज कहा था और यह भी कहा था कि अगर बिना ज्यादा ढील दिए या जल्दबाजी के इन्हें परिचालित किया जाए तो इससे अच्छा और कुछ नहीं है। वास्तव में मुझे लगता है कि हम आज उस स्थिति के करीब पहुंच गए हैं जहां बार-बार चुनावों का होना शासकीय काम-काज पर विपरीत असर डाल रहा है।

पिछले साल लगभग इसी समय बिहार नई विधानसभा चुनने की कवायद से गुजरा था। इसके बाद नीतिश कुमार मुख्यमंत्री बने थे। छह माह पहले प. बंगाल, तमिलनाडु, केरल और असम ने अपनी-अपनी विधानसभाएं चुनीं। आने वाले छह माह में पहले पंजाब और फिर उत्तर प्रदेश में चुनाव होने हैं। लगभग उसके छह माह बाद गुजरात और फिर 2008 में किसी समय जम्मू-कश्मीर, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान की बारी आएगी। उस समय तक निश्चित रूप से हर नेता अगले आम चुनावों की तैयारी में जुट चुका होगा।

गौर किया जाय तो केन्द्र सरकार में मंत्रियों के लिए 5 साल का चक्र अब छह महीने के चक्र में बदल चुका है। ऐसे में आखिर एक सरकार किस प्रकार दीर्घकालीन नीतियों को बनाएगी और लागू करेगी? इसका जबाव यह है कि किसी न किसी गुट से लगातार निपटने की बाध्यता को देखते हुए सरकार ऐसा नहीं कर सकती।

एक क्षण के लिए भी ऐसा न समझें कि समस्या केवल भारत सरकार तक सीमित है। इन दिनों दिल्ली का एक बड़ा हिस्सा व्यापारियों के प्रदर्शन के कारण पंगू हो गया है। ये सर्वोच्च न्यायालय के “सीलिंग” आदेश के खिलाफ सड़कों पर उतरे थे। इसमें आश्चर्य की बात नहीं कि कांग्रेस और भाजपा नेता गुस्साए व्यापारियों के साथ खड़े दिखे, दोनों पार्टियों को लग रहा था कि आने वाले निगम चुनावों के कारण उन्हें ऐसा करना उनकी मजबूरी थी। लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकाय चुनावों के बीच शहर का तथाकथित “मास्टर प्लान” एक ऐसा लोंदा बनकर रह गया है जो हर किसी संगठित गुट की मनमानी के अनुसार तुड़ता-मुड़ता रहता है!

बहरहाल, यह उल्लेखनीय है कि रिहायशी इलाकों में (अवैध) व्यापारिक निर्माणों पर सर्वोच्च न्यायालय की दखल के बाद ही सीलिंग कार्रवाई शुरू हो पायी। किसी भी निर्वाचित नेता-या निर्वाचित होने के इच्छुक नेताओं- ने उस ताकतवर लॉबी का मुकाबला करने की हिम्मत नहीं दिखाई। उन्हें लगा कि दिल्ली के आम नागरिकों से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण एक संगठित व्यापारिक समुदाय का साथ देना है। वे शायद ठीक भी थे और मैंने पाया है कि दक्षिण दिल्ली की विशिष्ट कालोनियों में मतदान के दौरान कभी-कभी 30 प्रतिशत से भी कम मतदान होता है।

दिल्ली-भारत की राजधानी और इस नाते एक प्रकार से देश का चेहरा- में दिखी अफरा-तफरी की चर्चा करें। यह समझना थोड़ा आसान हो जाता है कि आखिर हमारे सभी शहर पूरी तरह इस जड़ता की ओर क्यों बढ़ते जा रहे हैं। चुनाव एक महंगा सौदा है और व्यापारी तथा ठेकेदारी के गुटों को चंदा उगाही के लिए फांसा जा सकता है। प्रधानमंत्री भले मुम्बई को दूसरा शंघाई बनाने की चाहे जितनी बात करें, यह होने वाला नहीं है!

बशर्ते चीन अब भी एकदलीय तानाशाह तंत्र है। चुनावों जैसे राह भटकाने वाले विषयों से मुक्त है। एक चीनी राजनीतिज्ञ अपनी कलम से ही प्रमुख शहरी केन्द्रों से झुग्गी-झोपड़ियों और प्रदूषण फैलाने वाली फैक्ट्रियों को हटाने का निर्देश दे सकता है। और जो बात चीन के लिए सच है वह पूर्वी और दक्षिण पूर्वी एशिया के एक बड़े हिस्से के लिए भी उतनी ही सच है।

अगर चुनने को कहा जाए तो मुझे लगता है मैं तानाशाही के विसंक्रमण के बजाय लोकतंत्र के बेढंगेपन को चुनूंगा। यूरोप और उत्तरी अमरीका यह साबित करते दिखते हैं कि अच्छा शासन और लोकतंत्र एक दूसरे के पूरक नहीं हैं। यूरोपीय देश बहुत छोटे हैं- क्षेत्र और जनसंख्या दोनों की दृष्टि से- और इतने घुलेमिले हैं कि उनकी भारत से अर्थपूर्ण तुलना संभव नहीं है अत: हमें विशाल अमरीका की ओर ही देखना होगा।

अमरीका में चुनाव का समय कड़ाई से नियमित किया जाता है, जहां चुनाव हर दूसरे साल के नवम्बर माह में पहले सोमवार के बाद वाले मंगलवार को होते हैं। यह बात केवल संघीय ही नहीं बल्कि प्रादेशिक चुनावों पर भी लागू होती है। निश्चित कार्यकाल की स्वतंत्रता को देखते हुए, निर्वाचित अधिकारियों के लिए अपनी योजनाएं सही प्रकार निर्धारित करना संभव होता है। क्या यही कारण है कि अमरीकी अब भी सत्तारूढ़ होने के “फायदे” की बात करते हैं बजाय भारत की तरह सत्तारूढ़ होने के “नुकसान” की बात करने के?

1996-1999 के आस-पास एक समय था जब प्रधानमंत्री इतनी जल्दी-जल्दी आए और गए कि निश्चित कार्यकाल के अमरीकी तंत्र को अपनाने के बारे में गंभीर चर्चाएं होने लगी थीं। शुक्र है कि वाजपेयी और फिर डा. मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्रित्व के बाद ये चर्चाएं समाप्त हुईं। मगर, अगर आप, उदाहरण के लिए झारखण्ड की ओर देखें तो सरकारों को किसी प्रकार की स्थिरता देने की जरूरत बिल्कुल साफ दिखेगी और सीधे-सीधे कहूं तो मुझे नहीं लगता कि उत्तर प्रदेश में 2007 में कोई स्पष्ट जनादेश आएगा।

बहरहाल, यहां मैं बता दूं कि अमरीकी माडल में एक गंभीर खामी है, वह यह कि नागरिकों का विश्वास खत्म होने के बाद भी सरकार के पद पर बने रहने की संभावना रहती है। यह लिखते समय मुझे कतई आभास नहीं है कि 7 नवम्बर को होने वाले अमरीकी चुनावों में क्या परिणाम आएगा। मगर मान लेते हैं कि डेमोक्रेट्स अमरीकी कांग्रेस के दो में से एक सदन पर नियंत्रण पा जाते हैं। तब राष्ट्रपति बुश एक लुंजपुंज रिपब्लिकन प्रशासन के मुखिया रह जाएंगे। संवैधानिक रूप से वे तीसरे कार्यकाल के लिए मैदान में नहीं आ सकते और ऐसे में भी, वही कानून कहते हैं कि एक नए निर्वाचित राष्ट्रपति 20 जनवरी, 2009 से पहले पद की शपथ नहीं ले सकते।

यह बड़ा डरावना विचार है- इस ग्रह का सबसे ताकतवर मुख्य कार्यकारी बिना जनादेश के करीब 2 साल और 2 महीने काम करे। भारतीय तंत्र में चाहे जैसी भी खराबियां हैं पर उपरोक्त स्थिति यहां कभी हो ही नहीं सकती।

यह चाहे अच्छा हो या बुरा, मुझे लगता है कि भारत के एक नये तंत्र को अपनाने की संभावना बिल्कुल नहीं है। ऐसे में हमारे पास जो है उसमें से सबसे बढ़िया हमें कैसे मिलेगा? कुछ लोग कहते हैं कि इसका जवाब नागरिकों के सार्वजनिक नीतियां प्रभावित करने के लिए सामने निकलकर आने पर निर्भर है। यह कारगर भी हुआ है, उदाहरण के लिए, प्रियदर्शनी मट्टू मामले में तो हुआ है पर जब दिल्ली के व्यापारी सड़कों पर निकले तब इसका असर नहीं दिखा!

मैं वास्तव में उत्सुक हूं। यह देखते हुए कि भारतीय लोकतंत्र और उसकी असफलताएं हम सभी के लिए चिन्ता का विषय हैं, क्या पाठकों के पास आज की परिस्थितियों में सुधार के लिए कोई सुझाव हैं? (2 नवम्बर, 2006)

6

ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

समोसा, पकौड़े और जलेबी सेहत के लिए हानिकारक

समोसा, पकौड़े, जलेबी सेहत के लिए हानिकारक, लिखी जाएगी सिगरेट-तम्बाकू जैसी चेतावनी

निमिषा प्रिया

निमिषा प्रिया की फांसी टालने का भारत सरकार ने यमन से किया आग्रह

bullet trtain

अब मुंबई से अहमदाबाद के बीच नहीं चलेगी बुलेट ट्रेन? पीआईबी फैक्ट चेक में सामने आया सच

तिलक, कलावा और झूठी पहचान! : ‘शिव’ बनकर ‘नावेद’ ने किया यौन शोषण, ब्लैकमेल कर मुसलमान बनाना चाहता था आरोपी

श्रावस्ती में भी छांगुर नेटवर्क! झाड़-फूंक से सिराजुद्दीन ने बनाया साम्राज्य, मदरसा बना अड्डा- कहां गईं 300 छात्राएं..?

लोकतंत्र की डफली, अराजकता का राग

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

समोसा, पकौड़े और जलेबी सेहत के लिए हानिकारक

समोसा, पकौड़े, जलेबी सेहत के लिए हानिकारक, लिखी जाएगी सिगरेट-तम्बाकू जैसी चेतावनी

निमिषा प्रिया

निमिषा प्रिया की फांसी टालने का भारत सरकार ने यमन से किया आग्रह

bullet trtain

अब मुंबई से अहमदाबाद के बीच नहीं चलेगी बुलेट ट्रेन? पीआईबी फैक्ट चेक में सामने आया सच

तिलक, कलावा और झूठी पहचान! : ‘शिव’ बनकर ‘नावेद’ ने किया यौन शोषण, ब्लैकमेल कर मुसलमान बनाना चाहता था आरोपी

श्रावस्ती में भी छांगुर नेटवर्क! झाड़-फूंक से सिराजुद्दीन ने बनाया साम्राज्य, मदरसा बना अड्डा- कहां गईं 300 छात्राएं..?

लोकतंत्र की डफली, अराजकता का राग

उत्तराखंड में पकड़े गए फर्जी साधु

Operation Kalanemi: ऑपरेशन कालनेमि सिर्फ उत्तराखंड तक ही क्‍यों, छद्म वेषधारी कहीं भी हों पकड़े जाने चाहिए

अशोक गजपति गोवा और अशीम घोष हरियाणा के नये राज्यपाल नियुक्त, कविंदर बने लद्दाख के उपराज्यपाल 

वाराणसी: सभी सार्वजनिक वाहनों पर ड्राइवर को लिखना होगा अपना नाम और मोबाइल नंबर

Sawan 2025: इस बार सावन कितने दिनों का? 30 या 31 नहीं बल्कि 29 दिनों का है , जानिए क्या है वजह

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies