राम के ननिहाल में भी
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राम के ननिहाल में भी

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Dec 3, 2006, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 03 Dec 2006 00:00:00

एक कुंभ-राजिम से राजेश जैनभगवान राजीव लोचन मंदिरराजिम महोत्सव का दीप प्रज्ज्वलित कर उद्घाटन करते हुए भाजपाध्यक्ष श्री राजनाथ सिंह, उनके पीछे हैं मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह एवं पर्यटन मंत्री बृजमोहन अग्रवाल। चित्र में सबसे दाएं हैं स्वामी प्रज्ञानंद जी महाराजसंत समागम में सम्मिलित हुए संत-महात्मा और श्रद्धालुराजिम मेले का एक दृश्यगत 13 फरवरी, माघ पूर्णिमा से 26 फरवरी, महाशिवरात्रि तक छत्तीसगढ़ राज्य की राजधानी रायपुर से 45 कि.मी. दूर राजिम तीर्थ में आयोजित राजिम कुंभ इस संकल्प के साथ सम्पन्न हुआ कि इसे पांचवें कुंभ के रूप में प्रतिवर्ष मनाया जाएगा। महाशिवरात्रि के दिन राजिम कुंभ के भव्य समापन समारोह के पूर्व प्रात:काल शाही स्नान के लिए नागा एवं अन्य दण्डी साधुओं एवं विविध सम्प्रदायों के गण्यमान्य आचार्यों एवं संतों की यात्रा देखने एवं स्नान के लिए श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ पड़ा।समापन समारोह में अविभाजित मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री श्री श्यामा चरण शुक्ल ने राजिम कुंभ के ऐतिहासिक एवं विशाल आयोजन की भूरि-भूरि प्रशंसा की और कहा कि इसमें राजनीतिक मतभेदों से परे हटकर सभी को सहयोग करना चाहिए। इस अवसर पर मंच पर अनेक संत-महात्मा भी विराजमान थे। जगद्गुरु श्री वल्लभाचार्य के वंशज स्वामी श्री वल्लभलाल जी महाराज ने अपने उद्बोधन में सुझाव दिया कि राजिम और चंपारण्य को मंदिरों का शहर घोषित कर यहां मांस-मदिरा की बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध लगा देना चाहिए। संत श्री बालदास ने राजिम कुंभ के विश्व व्यापी प्रचार-प्रसार पर बल दिया। राजिम कुंभ में लोक कलाकारों ने भी अपनी मनमोहक प्रस्तुतियों द्वारा लोगों को खूब मोहा। लखनऊ से आए देवेश-राकेश अग्निहोत्री के भजनों, भिलाई के कलाकारों की दृश्य-श्रव्य प्रस्तुति एवं पद्मश्री तीजन बाई के पंडवानी कार्यक्रम का श्रद्धालुओं ने भरपूर आनन्द लिया।इसके पूर्व 21 फरवरी को कुंभ में 75 निर्धन कन्याओं का छत्तीसगढ़ शासन की ओर से आयोजित विवाह कार्यक्रम संपन्न हुआ। इस अवसर पर राज्य के राज्यपाल श्री के.एम.सेठ ने संतों-महात्माओं से अनुरोध किया कि वे प्रतिवर्ष इस कुंभ में भाग लेते रहें। उन्होंने कहा कि राजिम कुंभ के आयोजन के पीछे ईश्वरीय प्रेरणा है। अवश्य ही यहां भी अमृत बूंदे गिरी होंगी, इसी कारण यहां प्रतिवर्ष कुंभ के रूप में हजारों लोग एकत्रित होते रहे हैं। अब इसकी ओर पूरे देश का ध्यान आकृष्ट हुआ है। उल्लेखनीय है कि राजिम कुंभ का उद्घाटन छत्तीसगढ़ राज्य के संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री श्री बृजमोहन अग्रवाल द्वारा भगवान राजीव लोचन की पूजा-अर्चना के साथ प्रारम्भ हुआ था। उन्हीं के प्रयासों से राजिम कुंभ को छत्तीसगढ़ शासन ने राजिम कुंभ को शासकीय महोत्सवों की श्रेणी में शामिल करते हुए यहां पर सभी प्रकार की व्यवस्थाएं करने का कार्य अपने हाथों में लिया।कुंभ में 18 फरवरी को आयोजित संत समागम में जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद जी ने कहा कि जहां वैज्ञानिकों का विज्ञान समाप्त हो जाता है, वहां से धर्म और अध्यात्म शुरू होता है। शंकराचार्य ने देश की राजनीति में अध्यात्म के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि जब तक नेतृत्व आध्यात्मिक मनीषी के हाथ में नहीं होगा, देश की राजनीति दिशाहीन ही रहेगी। इस अवसर पर भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री राजनाथ सिंह ने कहा कि संतों के आशीर्वाद से हम राजनीति के खोए हुए अर्थ को पुन: प्रतिस्थापित करेंगे। उन्होंने कहा कि भविष्य में राजिम कुंभ वृहत स्वरूप ग्रहण करेगा। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री श्री रमन सिंह ने कहा कि छत्तीसगढ़ संतों के आशीर्वाद से संपूर्ण देश और विश्व में उत्कृष्ट स्थान प्राप्त करेगा। डा. सिंह ने इस अवसर पर राज्य में शीघ्र ही गोवंश निरोधक कानून बनाने की बात कही। छत्तीसगढ़ विधानसभा में उपनेता (प्रतिपक्ष) श्री भूपेश बघेल ने भी इस अवसर पर राजिम से जुड़ी अपनी स्मृतियों का वर्णन किया। राज्य विधानसभा के अध्यक्ष श्री प्रेम प्रकाश पांडे, विधानसभा के उपाध्यक्ष श्री बद्रीधर दीवान सहित अनेक मंत्रियों एवं विधायकों, प्रतिपक्ष के नेताओं ने भी कुंभ में शामिल होकर इस आयोजन के प्रति अपनी आस्था प्रकट की।भगवान राम का ननिहाल है राजिमहेमन्त उपासनेमहानदी, पैरी और सोढूंर नदियों के त्रिवेणी संगम के मध्य में पंचमुखी भगवान कुलेश्वर महादेव का मंदिर तथा तट पर भगवान राजीव लोचन का मंदिर स्थित है। इसीलिए राजिम को मंदिरों की नगरी भी कहा जाता है। इतिहासकारों के अनुसार भगवान राजीव लोचन के मंदिर का निर्माण 500 से 700 ई. के मध्य हुआ है। छत्तीसगढ़ के प्रख्यात इतिहासकार डा. विष्णु सिंह ठाकुर ने राजिम को महाभारत कालीन बदरी तीर्थ तथा पद्म क्षेत्र कहा है। इसे पद्म क्षेत्र में कुलेश्वर महादेव को केन्द्र मानकर इसके इर्द-गिर्द स्थापित पांच शिवलिंग चम्पारण में चंपेश्वर, महासमुद्र के पास बम्हनी में बम्हनेस्वर, फिंगेश्वर में फणिकेश्वर, कोपरा में कोपेश्वर, पोखरा में पटेश्वर महादेव की प्रदक्षिणा का समापन कुलेश्वर मन्दिर में जल चढ़ाकर किया जाता है। इस पंचकोसी यात्रा कहा जाता है और छत्तीसगढ़ में इसका बहुत महत्व है। कुलेश्वर आश्रम से लगभग 100 गज की दूरी पर लोमश ऋषि का आश्रम है। श्रृंगी ऋषि लोमश ऋषि के पुत्र थे जिन्होंने त्रेतायुग में अयोध्या में महाराजा दशरथ को पुत्र प्राप्ति हेतु पुत्रकामेष्टि यज्ञ किया था। छत्तीसगढ़ माता कौशल्या की जन्मभूमि मानी जाती है। लोक मान्यता है कि राजिम ही भगवान राम की ननिहाल है। कहा जाता है कि द्वापर युग में राजीव लोचन मंदिर का जीर्णोंद्धार महाराज युधिष्ठिर ने कराया था और यही वह स्थान है जहां भगवान विष्णु ने गजेन्द्र को मोक्ष प्रदान किया था।18

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