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पाठकीय

by
Dec 2, 2006, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 02 Dec 2006 00:00:00

अंक-सन्दर्भ, 15 जनवरी, 2006

स्वामी रामदेव के विरुद्ध वृंदा

भारत विरोधी सोच सदा

पञ्चांग

संवत् 2062 वि. वार ई. सन् 2006

माघ शुक्ल

(व्रत पूर्णिमा) 14 रवि 12 फरवरी, 06

माघी पूर्णिमा

(माघ स्नान समाप्त) सोम 13 ,,

फाल्गुन कृष्ण 1 मंगल 14 ,,

,, ,, 2 बुध 15 ,,

,, ,,

(श्री गणेश चतुर्थी व्रत) 3 गुरु 16 ,,

,, ,, 4 शुक्र 17 ,,

,, ,, 5 शनि 18 ,,

“स्वामी रामदेव पर माकपा का प्रहार” रपट माक्र्सवादियों की विकृत सोच की ही पुष्टि करती है। अब बिल्कुल स्पष्ट हो चुका है कि माक्र्सवादियों ने वृन्दा कारत को आगे करके स्वामी रामदेव पर जो निराधार आरोप लगाए, वह उनकी एक सोची-समझी चाल है। ये लोग हिन्दुत्व के विरोध में तरह-तरह के षडंत्र रचते आए हैं। इन वामपंथियों को स्वामी रामदेव की बढ़ती लोकप्रियता रास नहीं आई और वह तुरन्त उनके विरुद्ध उठ खड़े हुए। जिन बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को स्वामी रामदेव के प्रवचनों, योग-प्राणायाम एवं देशी औषधियों से आर्थिक हानि हो रही थी, उनके साथ वृन्दा और माक्र्सवादियों की मिलीभगत को हल्केपन से नहीं लिया जा सकता।

-रमेश चन्द्र गुप्तानेहरू नगर, गाजियाबाद (उ.प्र.)

इतिहास साक्षी है कि कम्युनिस्टों की भूमिका सदा भारत-विरोधी रही है। इन्होंने स्वतंत्रता संग्राम और 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में किसका साथ दिया था? 1962 में चीन और 1965 व 1971 में पाकिस्तान द्वारा भारत पर आक्रमण के समय इन्होंने क्या किया था? प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को रूस ले जाकर ताशकन्द में समझौता कराने और उनकी मृत्यु में किसका हाथ था? आज इन्हीं के समविचारी माओवादी और नक्सलवादी नेपाल से लेकर आंध्र प्रदेश तक क्या कर रहे हैं, यह भी किसी से छिपा नहीं है।

-वैद्य राम कुमार बिन्दल

श्री बिन्दल रसायनशाला, अपर बाजार, सोलन (हि.प्र.)

संस्कृति विरोधी

कम्युनिस्ट योग, संस्कृत, आयुर्वेद एवं ज्योतिष विरोधी हैं। जब-जब इन विषयों की जागृति जनता में बढ़ती है, तब-तब ये विरोध में खड़े हो जाते हैं और अनर्गल प्रचार शुरू कर देते हैं। योग, संस्कृत, आयुर्वेद, ज्योतिष भारत की आत्मा है। इनके द्वारा ही विश्व में भारत की पहचान होती है। अगर कोई इनका विरोध करता है तो निश्चित रूप से वह भारतीय संस्कृति का विरोधी है। वृन्दा कारत द्वारा स्वामी रामदेव का जो विरोध किया जा रहा है, वह केवल उनका ही विरोध नहीं अपितु इस राष्ट्र में हजारों वर्षों से प्रवाहित सनातन भारतीय संस्कृति का विरोध है।

-रामकृष्ण शास्त्री

केशव निकुंज, शिवाजी नगर, उदयपुर (राजस्थान)

हजारों साल पुरानी योग विद्या को घर-घर पहुंचाने वाले स्वामी रामदेव की लोकप्रियता इन कम्युनिस्टों को पची नहीं। इसलिए वृन्दा कारत ने उन पर मनगढ़ंत आरोप लगाया। शायद उन्हें इसका अनुमान नहीं था कि उनके इस दुष्प्रचार के कारण पूरे भारत का विरोध झेलना पड़ेगा। उनके विरुद्ध तीव्र आन्दोलन छेड़ने का श्रेय सभी हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों को जाता है।

-विशाल कुमार जैन

184, दरीबाकलां, चांदनी चौक (दिल्ली)

पूरे विश्व में भारतीय संस्कृति और स्वदेशी का झण्डा बुलन्द करने वाले स्वामी रामदेव को बदनाम करने के लिए वामपंथियों ने कमर कस ली है। स्वामी रामदेव की आयुर्वेदिक दवाइयों के कारण कई विदेशी कम्पनियों को भारत में जमें रहने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ रही है। इस हालत में वृन्दा कारत स्वामी रामदेव पर मिथ्या आरोप जड़ कर किसका हित साधना चाहती हैं?

-विष्णु कान्त शर्मा

संघ कार्यालय, शिकोहाबाद (उ.प्र.)

भारत विरोधी चरित्र

मंथन स्तम्भ के अन्तर्गत श्री देवेन्द्र स्वरूप का लेख “स्वामी रामदेव से कैलीफोर्निया तक फैला षडंत्र” कम्युनिस्टों के दोहरे चरित्र का खाका प्रस्तुत करता है। वृन्दा कारत का आरोप हिन्दू संस्कृति पर आघात है। वह भारतीयता और हिन्दुत्व को अपना शत्रु मानकर बैठी हैं। वह भारतीय सभ्यता और आयुर्वेदिक पद्धति के प्रचार-प्रसार से सशंकित रहती हैं, क्योंकि स्वामी रामदेव की विचार साधना से जुड़ने के कारण लोगों का वामपंथ से विश्वास उठता जा रहा है।

-दिलीप शर्मा

114/2205 एम.एच.वी. कालोनी, समता नगर, कांदीवली पूर्व, मुम्बई (महाराष्ट्र)

वामपंथी अपने जन्मकाल से ही भारतीय संस्कृति विरोधी रहे हैं। 1942 के “भारत छोड़ो आन्दोलन” में ये लोग अंग्रेजों के एजेंट बनकर क्रांतिकारियों को पकड़वाने में संलग्न थे। पाकिस्तान बनाने का सारा बौद्धिक कुतर्क वामपंथियों ने ही तैयार किया था। 1962 के चीनी आक्रमण को इन लोगों ने मुक्ति के लिए किया जाने वाला आंदोलन घोषित किया था। आपातकाल के समय वामपंथी लोकतंत्र के हत्यारों के पक्ष में थे। कम्युनिस्ट शासित प. बंगाल में लोकतंत्र का निशान नहीं है। जिस तरह राष्ट्रवादी शक्तियों ने मजदूर, किसान आदि क्षेत्रों में वामपंथियों के वर्चस्व को समाप्त कर दिया, उसी प्रकार जब तक मीडिया में बैठे वामपंथियों को खदेड़ नहीं दिया जाता तब तक वामपंथियों का भारत विरोधी अभियान रुकने वाला नहीं है।

-मोहित कुमार मंगलम्

कुशी, कांटी, मुजफ्फरपुर (बिहार)

दबाव बनाना होगा

आवरण कथा के अन्तर्गत श्री राजेश गोगना की रपट “पाकिस्तान में हिन्दुओं पर हमले बढ़े” पढ़ी और वास्तव में मन को बहुत पीड़ा हुई। काश विभाजन के समय पाकिस्तान में शेष बचे हिन्दुओं को भी भारत बुला लिया जाता तो उनकी ऐसी दुर्दशा नहीं होती। उस समय जिन हिन्दुओं ने पाकिस्तान छोड़ा था, आज वे यहां हर तरह से सुखी-सम्पन्न हैं। उन्हें हर प्रकार के अधिकार हैं। भारत सरकार को चाहिए कि पाकिस्तान से किसी भी प्रकार की वार्ता करने से पूर्व यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि जब तक पाकिस्तान में हिन्दू सुरक्षित नहीं रहेंगे और आतंकवाद खत्म नहीं होगा तब तक किसी तरह की वार्ता नहीं होगी। जिस प्रकार ब्रिटेन के हिन्दू पाकिस्तानी हिन्दू भाइयों की रक्षा के लिए धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं, उसी तरह भारत के हिन्दुओं को भी धरना-प्रदर्शन कर सरकार पर दबाव बनाना चाहिए ताकि सरकार की नींद टूटे।

-अशोक बोहरा

पिपलोन कलां, जिला-शाजापुर (म.प्र.)

कब चेतेंगे?

सम्पादकीय “सऊदी अतिथि और हम” एवं दिशादर्शन के अन्तर्गत श्री तरुण विजय का लेख “घर संभलेगा तो बाहरी हमले भी हारेंगे” पढ़कर मन व्यथित हो गया। अति उदारता के कारण ही भारत विदेशी लुटेरों से आक्रांत हुआ और मजहब के आधार पर देश का बंटवारा होने के बाद भी हम नहीं चेते हैं। इसके लिए पूरी तरह से राजनेता दोषी हैं। व्यक्तिगत स्वार्थ के कारण इन लोगों ने देश को धर्म, जाति, प्रान्त जैसे मुद्दों पर बांट रखा है। लोगों में राष्ट्रीयता की धारा बहने ही नहीं दी जाती। इस स्थिति में राष्ट्रवादियों को बहुत कुछ करना होगा।

-लखन लाल गुप्ता

आसनसोल (प. बंगाल)

पुरस्कृत पत्र

संघर्ष करो, अधिकार भी मिलेंगे, सम्मान भी

बशीर बद्र जैसे शायर मक्का मदीना जैसी पवित्र नगरी में अल्लाह से हिन्दुस्थान की बर्बादी की दुआएं मांगते हैं और हिन्दुस्थान आकर राजकीय पारितोषिक प्राप्त करते हैं। मृदुला गर्ग जैसी लेखिका को अक्षरधाम मन्दिर बनने पर अपार पीड़ा होती है। उन्हें इसके स्थान पर शौचालय बनाया जाना अधिक पसन्द है। उनकी ऐसी इच्छाएं पाकिस्तान और बंगलादेश की सरकारें बहुत दिनों से पूरी तन्मयता के साथ पूर्ण कर रही हैं। वहां पर सैकड़ों देवालयों और मन्दिरों को तोड़कर शौचालय बना दिये गये हैं। मृदुला गर्ग वहां जाकर यह सब देख सकती हैं और संतुष्ट हो सकती हैं। दिल्ली की जामा मस्जिद के इमाम अपने आपको खुलेआम आई.एस.आई. का एजेंट घोषित करते हैं और भारत सरकार को चुनौती देते हैं कि उसमें दम हो तो पकड़कर दिखाये। ये चन्द उदाहरण छुपे हुए नहीं बल्कि सार्वजनिक हैं। ये सब हिन्दुस्थान की सेकुलर सरकार की नाक के नीचे हो रहा है। इसका कारण सिर्फ इतना है कि सरकार ने पंथ निरपेक्षता का जो लबादा ओढ़ा है वह मध्ययुगीन मुस्लिम बर्बरताओं को बनाये रखने और हिन्दुओं की धार्मिक मान्यताओं पर कुठाराघात करने के लिए ही है। आगरा और दिल्ली पर कभी राज करने वाले 6 मुस्लिम वंशों (गुलाम वंश, खिलजी वंश, तुगलक वंश, सैय्यद वंश, लोदी वंश और मुगल वंश) ने 1206 से लेकर 1857 ई. तक 43 सुल्तानों और राजाओं के माध्यम से हिन्दू जनता पर जो जुल्म किए, वह मानसिकता ऐसे उदाहरणों से आज भी परिलक्षित होती है। ऐसा लगता है कि हिन्दू इन सब बातों को सहने के लिए अभिशप्त और अभ्यस्त हो चुका है। बीच-बीच में राणा प्रताप जैसी हुंकार सुनायी तो देती है लेकिन वह समुद्र की लहरों की तरह तिरोहित हो जाती है। आखिर इसका कारण क्या है? क्या हमारे संविधान में दोष है अथवा हमारे नेताओं की नीयत में खोट है या फिर बहुसंख्यक हिन्दू अपने संवैधानिक अधिकारों को प्राप्त करना ही नहीं चाहता? जो अपना सम्मान नहीं कराना जानते आखिर उन्हें कोई उधार में सम्मान क्यों देगा? किसी ने सच कहा है कि अधिकार और सम्मान संघर्ष करने से मिलते हैं, अपमान सहने से नहीं।

-कुमुद कुमार

ए-5, आदर्श नगर, नजीबाबाद,

बिजनौर (उ.प्र.)

हर सप्ताह एक चुटीले, ह्मदयग्राही पत्र पर 100 रुपए का पुरस्कार दिया जाएगा। -सं.

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