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हमारी संस्कृति को खत्म करने का षडंत्र-आचार्य विजय रत्नसुन्दरसूरिआचार्य विजय रत्नसुन्दरसूरि जी महाराज ऐसे संत हैं जिन्होंने साधु परंपरा को नये आयाम दिए हैं। वे पैदल ही पूरे देश का न केवल भ्रमण करते हैं वरन् समाज से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर अपनी बेबाक टिप्पणी देने में संकोच नहीं करते। देश और समाज से जुड़े मुद्दों पर महाराजश्री का सतत प्रवचन एवं लेखन चलता है। जबसे सरकार ने प्राथमिक विद्यालयों में यौन शिक्षा अनिवार्य करने का फैसला लिया है तभी से महाराजश्री ने सरकार के इस प्रस्ताव के विरुद्ध अभियान छेड़ा हुआ है। इसी संदर्भ में पिछले दिनों पाञ्चजन्य प्रतिनिधि राकेश उपाध्याय ने आचार्यश्री से विस्तारपूर्वक वार्ता की। यहां प्रस्तुत हैं उनके विचारों के संपादित अंश -सं.जोयूरोप और अमरीका में हो रहा है, जिसने पश्चिम में परिवार संस्था को तबाह कर दिया, जिसके कारण घर-घर में अबोध बेटियां मां बनने को अभिशप्त हुईं, जिसके कारण मानव जाति ने गर्भ में पलने वाले भ्रूण की हत्या करने जैसे वीभत्स पाप किए, ऐसे कुकर्मों की जननी “सेक्स एजुकेशन” या यौन शिक्षा को भारत में स्कूली पाठक्रम में अनिवार्य किया जाना भारतीय संस्कृति के विरुद्ध खतरनाक षडंत्र है। मैं दुनिया की संस्कृतियों की विविधता का सम्मान करता हूं लेकिन भारत पर पश्चिम का खुला आक्रमण अब सहन करने योग्य नहीं है। मुझसे एक व्यक्ति ने पूछा था कि आपको पश्चिम को गलत कहने का क्या अधिकार है? मैंने उससे प्रतिप्रश्न किया, यदि मेरे शरीर का रक्त वर्ग “ओ” है तो आपको मेरे शरीर में किसी अन्य नकारात्मक वर्ग का रक्त चढ़ाने का क्या अधिकार है? जबकि मैं जानता हूं कि आपकी मंशा मुझे समाप्त करने की है तो फिर मैं क्यों न आपके इस षडंत्र को समय रहते सभी को बता दूं और अपनी रक्षा का तरीका खोजूं।110 करोड़ के देश के ऊपर सरकार यौन शिक्षा जबरदस्ती नहीं लाद सकती। इसकी न बच्चों को जरूरत है, न उनके अभिभावक इसे पसंद करते हैं, न अध्यापक इसे पढ़ाना पसंद करेंगे और न प्राचार्य इस पर सहमत हैं। कुछ तथाकथित “अकादमिक दिग्गजों” की बात मैं नहीं करता, मैं तो साधारण जनता की बात कर रहा हूं। यह यूनेस्को जैसी विदेशी संस्थाओं और कुछ अन्य पश्चिमी संगठनों के दबाव का परिणाम है। यह हमारी नींव पर हमला है। इसमें प्राथमिक शाला यानी 5 वर्ष की उम्र से यौन शिक्षा देने की बात कही गयी है। जिस देश में बाल विवाह अपराध है वहां अब बालपन से यौन शिक्षा दी जाएगी! यह विडंबना नहीं तो और क्या है? ब्रिटेन में इस सन्दर्भ में किए गए प्रयोगों के भयानक दुष्परिणाम आए हैं। ब्रिटेन में 15 साल पहले यौन शिक्षा किशोर छात्रों के मध्य प्रारंभ हुई थी। और आज स्थिति यह है कि हर स्कूल में गर्भपात केन्द्र खुल गए हैं। गर्भ निरोधक बांटने की व्यवस्थाएं वहां जूनियर माध्यमिक विद्यालयों में शुरू कर दी गई हैं। हर साल 10,000 किशोरवय लड़कियां गर्भपात कराने को मजबूर हैं। यह बी.बी.सी. की रपट है। जिस देश में यौन शिक्षा की नींव पड़ी, वहां यह दुर्दशा है तो हमारी सरकार इसे शुरू करने में आनन्द क्यों मान रही है? यदि बच्चों को 5-15 वर्ष की उम्र में यौन शिक्षा दी जाएगी तब उनके लिए विवाह की उम्र सीमा सरकार ने 18 वर्ष और 21 वर्ष क्यों निर्धारित कर रखी है? बच्चों में मनोवैज्ञानिक समस्याएं इसके कारण बढ़ेंगी।यौन शिक्षा के पीछे एड्स के महामारी बनने के खतरे का तर्क भी दिया जा रहा है। हर साल तीन वर्ष के नीचे के 9 लाख बच्चे डायरिया के कारण मरते हैं। जबकि जिस एड्स की बात कही जा रही है उससे पिछले 5 साल में कुल 5000 लोग मरे हैं। कौन सी बीमारी महामारी है- डायरिया या एड्स? आज जो भी विदेशी एन.जी.ओ. हिन्दुस्थान में आता है, वह और उसके साथ अपने देश के बड़े लोग भी एड्स और गर्भ निरोधकों के प्रचार में इस तरह जुटे हैं मानो पूरा देश एड्स की गिरफ्त में है। देश में साढ़े छह लाख बच्चियों की हर साल भ्रूण रूप में हत्या हो रही है, सरकार इसे महामारी क्यों नहीं घोषित करती? जो देश अपने शत-प्रतिशत नौनिहालों को आज तक प्राथमिक शिक्षा देने में समर्थ नहीं हो सका है, वह किस मुंह से यौन शिक्षा की बात कर रहा है? क्या देश में सबके लिए कपड़ा और दो जून की रोटी की व्यवस्था सरकार ने कर ली है, जो इस काम में उसकी रुचि जगी है?मेरे कुछ शिष्य मेरे पास आए थे। वे अपने बच्चों के साथ कार में कहीं जा रहे थे। दिल्ली के हर चौराहे पर “चलो कण्डोम के साथ” के सरकारी विज्ञापन देखकर बच्चे आपस में चर्चा करने लगे और उन्होंने पिता से पूछा कि पापा, यह क्या होता है? वह सज्जन मुझसे पूछने लगे कि गुरुदेव, मैं बच्चों को क्या उत्तर दूं, कैसे उत्तर दूं? पूरे देश में इस प्रकार से वातावरण बनाकर बच्चों का बचपन नष्ट किया जा रहा है, हमारे संस्कारों को दूषित बनाया जा रहा है। आज बाजारू शक्तियां सर्वत्र हावी हो गई हैं। कहा जाता है कि संत कुछ करें। हम इस अनर्थकारी वातावरण को कैसे दिशा दे पाएंगे। हम जो दीपक जलाते हैं, उसको यह प्रदूषित वातावरण बुझा देता है। लाखों संतों की साधना को खत्म करने की पूरी तैयारी आज की सरकार कर रही है। देश की गलियां, सड़कें अश्लील पोस्टरों से भरी पड़ी हैं। बच्चों की चिंता किसे है? क्या हमारे नेता, अफसर अश्लील विज्ञापनों को देख सकने में असमर्थ हैं? जो कानूनी रूप से प्रतिबंधित हैं, ऐसे पोस्टर सार्वजनिक स्थानों की “शोभा” बढ़ाते हैं। कौन इसे लगवाता है? क्या कानून देश में क्रियान्वित हो रहा है?आज हम छोटे-छोटे अनेक सवालों पर जूझ रहे हैं पर मेरी दृष्टि में यौन शिक्षा एक ऐसा मुद्दा है कि यदि यह एक बार पूरी तरह हमारे बच्चों के पाठक्रम का हिस्सा बन गया तो पूरा देश और उसकी महान संस्कृति एक झटके में ही समाप्ति के कगार पर खड़ी हो जाएगी। मैं पिछले 40 वर्ष से साधु जीवन बिता रहा हूं। मैंने कभी टी.वी. नहीं देखा क्योंकि जब मैं छोटा था तो टी.वी. प्रचलन में नहीं था। आज जैसी स्थिति बन गई है, उसमें देश की साधु संस्था ही खतरे में पड़ गई है। आगे 25 वर्ष बाद क्या स्थिति होगी, इसकी कल्पना की जा सकती है। 25 वर्ष बाद शायद ही ऐसे युवक-साधु मिलेंगे जो मुमुक्षा की ओर उन्मुख होंगे और जिनका ब्राह्मचर्य अखण्ड होगा। साधु संस्था की पवित्रता कैसे बचेगी? हमारे देश का जो नैतिक पतन प्रारंभ हुआ है, उसे कौन रोकेगा? यदि साधु संस्था समाप्त हो गई तो संसार को क्या संदेश जाएगा? मुझे तो लगता है कि पश्चिमी जगत के कुछ लोग भारत की संत संस्था को पूरी तरह समाप्त करने पर तुले हैं। आज जो संत हैं, योगी हैं, उनका तो वे कुछ बिगाड़ नहीं पा रहे हैं लेकिन भविष्य में इस देश में संत बनने लायक युवक ही न बचें, उनकी मानसिकता बचपन में ही बदलने का एक गहरा षडंत्र इस “यौन शिक्षा” के पीछे मैं देख रहा हूं।हर हालत में इसका क्रियान्वयन रोका जाना चाहिए। सरकार “यौन शिक्षा” के विष बीज को फैलने व पनपने से रोके। यदि वह ऐसा नहीं करती है तो समाज के लोग आगे आएं, संत आगे आएं, संस्थाएं व संगठन आगे आएं। हमारे मौलाना, सिख भाई, ईसाई सभी से मैं निवेदन करता हूं कि वे इस भयानक षडंत्र के विरुद्ध अभी से खड़े हों। मैं इसके विरुद्ध शपथ ले चुका हूं, संसद के वर्तमान सत्र के समय मैं दिल्ली इसीलिए आया कि सरकार से जुड़े लोगों, अफसरों, पत्रकारों को इसके खतरे के बारे में बताऊं और उनसे इसे रुकवाने का निवेदन करूं। दूसरी बात, सरकार ने दोपहर भोजन योजना में बच्चों को अण्डे खिलाने का प्रस्ताव रखा है। सरकार के अधिकारी कह रहे हैं कि यह बच्चों के लिए पौष्टिक होगा। मैं पूछता हूं कि अण्डे में ऐसा कौन सा तत्व है जो शाकाहारी पदार्थों में नहीं है? भारत सरकार अपने स्वास्थ्य बुलेटिन क्र. 23 को उठाकर पढ़े। उसमें लिखा है कि मांस, मछली और अण्डे से ज्यादा प्रोटीन मूंगफली में है। बच्चों को मूंगफली और उसके बने व्यंजन देने में क्या दिक्कत है सरकार को? और अगर खिलाना है तो बच्चों को फल खिलाओ, दूध पिलाओ। देश में करोड़ों परिवार हैं जिनके घरों में मांसाहार वर्जित है। उन परिवारों के जो बच्चे सरकारी स्कूलों में जाते हैं उनको भी अण्डा खाने की अनिवार्यता क्यों? सरकार को यह करने का अधिकार किसने दिया?सरकार ने चैरिटेबल संस्थाओं पर भी 30 प्रतिशत टैक्स थोपने की योजना बनाई है। आज देश में बिना सरकारी सहायता के गोशालाएं, पशुशालाएं, अनाथालय, वृद्धाश्रम, जनहितकारी संस्थाएं चलती हैं, उन पर कर थोपना अन्याय है। जो लोग जनहित की आड़ में व्यावसायिक गतिविधि चला रहे हैं, कमाई कर रहे हैं सरकार उन पर नियंत्रण के लिए कानून लाए पर, कुछ लोगों के कारण सभी पर कर लगा दिया जाए यह अनुचित होगा। मैं सरकार द्वारा स्कूलों में बच्चों को यौन शिक्षा देने, अण्डा खिलाने और कल्याणकारी संस्थाओं पर कर लगाने के बिल्कुल विरुद्ध हूं। मैं सरकार को यह सुझाव भी देना चाहता हूं कि वह विदेशों को हो रहे मांस निर्यात को बन्द करे। हमारे खेतों को जैविक खाद चाहिए। खेती में रासायनिक खाद और आधुनिक संयंत्रों के प्रयोग ने हमारे किसानों का बुरा हाल किया है। किसान कर्ज में डूबे हैं, आत्महत्या के लिए विवश हैं। क्यों? सरकार इसके मूल कारण का ईमानदारी से पता लगाएगी तो सच स्वत: सामने आ जाएगा। समय आ गया है कि भारत की जनता उपरोक्त सवालों पर सरकार को सावधान करे अन्यथा भविष्य के संकेत सुखद नहीं हैं।30
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