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पाठकीय

by
Oct 12, 2006, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 12 Oct 2006 00:00:00

अंक-सन्दर्भ , 12 नवम्बर, 2006

पञ्चांग

संवत् 2063 वि.

वार

ई. सन् 2006

पौष कृष्ण 6

रवि

10 दिसम्बर

“” 7

सोम

11 “”

“” 7

मंगल

12 “”

(सप्तमी तिथि की वृद्धि)

“” 8

बुध

13 “”

“” 9

गुरु

14 “”

“” 10

शुक्र

15 “”

“” 11

शनि

16 “”

(खरमासारम्भ)

सम्मान बने रेवड़ी

यू.पी. शासन को बची, बस बच्चन से आस

अमर सिंह को छोड़कर, नहीं और कुछ पास।

नहीं और कुछ पास, जहां पर वे कहते हैं

मियां मुलायम वहीं अंगूठा धर देते हैं।

कह “प्रशांत” सम्मान बने रेवड़ी यहां पर

और मुलायम बांट रहे अपनों को जी भर।।

-प्रशांत

सियाचिन हमारा है

आवरण कथा “सियाचिन पर सियासत क्यों?” के अन्तर्गत मेजर जनरल (से.नि.) अफसिर करीम एवं मेजर जनरल (से.नि.) शेरू थपलियाल की चेतावनियां गौर करने योग्य हैं। तिब्बत का प्रश्न हमारे इतिहास, संस्कृति एवं सुरक्षा से जुड़ा हुआ है। आजादी के बाद जिस प्रकार तिब्बत की उपेक्षा की गई उसका भयावह परिणाम 1962 में हमारे सामने चीनी आक्रमण के रूप में आ चुका है और अब भी खतरा बना हुआ है। अपने ही तीर्थ कैलास-मानसरोवर की यात्रा के लिए पासपोर्ट और वीजा लेना पड़ता है। इसी अंक में अजय श्रीवास्तव की रपट “सिकंदर विश्वविजेता नहीं, जम्मू में हारा था” उस जनभावना की ऐतिहासिक पुष्टि करती है जो अब तक कई सवालों में उलझी रही है। जैसे, वह कथित विश्वविजेता पोरस से लड़ने के बाद अगर जीत गया था तो आगे क्यों नहीं बढ़ा? जिस रास्ते आया था, उसी रास्ते वापस क्यों नहीं गया?

-डा. नारायण भास्कर

अरुणा नगर, एटा (उ.प्र.)

कुछ सेकुलर नेता सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण सियाचिन पर सौदेबाजी की वकालत कर रहे हैं, ताकि उन्हें पाकिस्तान की शाबाशी मिल सके। भारत को सियाचिन मामले पर पाकिस्तान से बिल्कुल बात नहीं करनी चाहिए। सियाचिन हमारा है। हमारी सेना वहां रहेगी या नहीं रहेगी, इसका निर्णय हम करेंगे। पाकिस्तान कौन होता है यह कहने वाला कि भारत सियाचिन से अपनी सेना हटा ले।

-प्रमोद वालसांगकर

1-10-19, रोड नं. 8ए, द्वारकापुरम, दिलसुखनगर, हैदराबाद (आं.प्र.)

मेजर जनरल (से.नि.) अफसिर करीम ने ठीक कहा है कि मुशर्रफ पर भरोसा न करें। यह सच भारत सरकार भी जानती है, पर चूंकि वह सेकुलर है, इसलिए वह वही करेगी, जिससे उसका वोट बैंक मजबूत होता हो। इसका ताजा उदाहरण है सर्वोच्च न्यायालय में शरीयत अदालतों के समर्थन में भारत सरकार द्वारा शपथपत्र दाखिल करना। एक कड़वा सच यह भी है कि पाकिस्तान का अन्तिम लक्ष्य है- भारत का इस्लामीकरण करना। और भारत सरकार के उपरोक्त कदमों से पाकिस्तान का ही लक्ष्य आगे बढ़ता दिखता है।

-रामगोपाल

14ए, एकता अपार्टमेन्ट्स, पश्चिम विहार (नई दिल्ली)

और मजबूत हो समाज

सम्पादकीय “विदिशा में विजय” में हिन्दुओं की दुर्दशा का संक्षिप्त किन्तु प्रभावशाली चित्रण किया गया है। दुर्भाग्य है कि हिन्दू आज भी हमेशा की तरह बिखरे हुए हैं। सिकंदर ने ईसा से 223 वर्ष पूर्व भारत पर आक्रमण किया था। हिन्दू एकता की आवश्यकता उसी समय से महसूस की जाती रही है। परन्तु दुर्भाग्य से कभी तक्षशिला के राजा आम्भी ने सिकंदर को मदद पहुंचाकर, कभी कन्नौज के राजा जयचन्द द्वारा आक्रमणकारी लुटेरे मोहम्मद गोरी की सहायता और कभी आमेर के राजा मान सिंह द्वारा अकबर की मदद करके इसे ध्वस्त किया जाता रहा है। हल्दीघाटी के युद्ध में अकबर ने मान सिंह को अपनी राजपूत सेना को साथ लेकर देशभक्त महाराणा प्रताप से युद्ध करने के लिए प्रेरित किया था। उस समय इतिहासकार बदायूंनी से किसी ने पूछा कि वह इस युद्ध को किस रूप में देखते हैं? कहते हैं, बदायूंनी ने खुश होकर कहा था कि यह उसके जीवन का सबसे खुशनुमा क्षण है क्योंकि “तलवार इस्लाम की है और काफिर मर रहा है।”

-रमेश चन्द्र गुप्ता

नेहरू नगर, गाजियाबाद (उ.प्र.)

आखिरकार विदिशा में श्री शिवराज सिंह चौहान की जीत हुई है या एक सर्वाधिकार प्राप्त मुख्यमंत्री की? अगर इस जीत को श्री शिवराज सिंह चौहान की विजय, जैसा कि सम्पादकीय में लिखा गया है, कहा जाए तो मेरी दृष्टि से यह उमा जी के साथ अन्याय ही होगा। यथार्थ को अनदेखा नहीं किया जा सकता। उचित तो यह होगा कि हम श्रीगुरुजी जन्मशताब्दी के अवसर पर प्रण लें कि भविष्य में ऐसी स्थिति उत्पन्न नहीं होने देंगे एवं संगठन में ऐसा वातावरण तैयार करेंगे जिससे संगठन और मजबूत होकर समाज को जोड़ने का कार्य करे।

-संजय कसेरा

53, अखाड़ा रोड, देवास (म.प्र.)

सम्पादकीय की ये पंक्तियां “उत्साह और उत्सव की बात तो तब होनी चाहिए जब गजनी के खिलाफ हिन्दू संघ की सैन्य एकता निर्विघ्न और अटूट हो” हर राष्ट्रवादी की मानसिक व्यथा को उजागर करती हैं। विदिशा और बड़ा मलेहरा में भाजपा की जीत तो अवश्य हुई, पर कोडरमा में जमानत जब्त हो गई। ऐसा क्यों हुआ, इस पर गंभीरता से विचार करने की जरुरत है।

-क्षत्रिय देवलाल

उज्जैन कुटीर, अड्डी बंगला, झुमरी तलैया, कोडरमा (झारखण्ड)

सवाल निष्ठा का

श्री मुजफ्फर हुसैन ने अपने लेख “अपराधी कौन बनाता है?” में जो विचार व्यक्त किए हैं, मैं उनसे पूरी तरह सहमत नहीं हूं। उन्होंने कुछ मुसलमानों के अपराधी बनने के लिए अंधविश्वास, अशिक्षा आदि को दोषी ठहराया है। किन्तु अंधविश्वास और अशिक्षा तो हर मत-पंथ में पाई जाती है। सबसे बड़ी बात होती है व्यक्ति की समाज और देश के प्रति निष्ठा। जो व्यक्ति इस राष्ट्रीय दायित्व को समझेगा, वह शायद गलत रास्ते पर नहीं जाएगा।

-शिव शम्भु कृष्ण

417/205, निवाजगंज, लखनऊ (उ.प्र.)

सच को देखें अर्जुन

पिछले दिनों केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह ने विद्या भारती द्वारा संचालित सरस्वती विद्या मन्दिरों के बारे में कहा कि “ये समाज में जहर घोल रहे हैं।” अर्जुन सिंह भूल रहे हैं कि इन संस्थानों में केन्द्र सरकार द्वारा स्वीकृत पाठक्रमों के अनुसार ही बिना किसी भेदभाव के सर्वश्रेष्ठ शिक्षा प्रदान की जाती है। शिक्षा के साथ ही राष्ट्रभक्ति एवं भारतीय संस्कृति के संस्कार भी यही शिक्षण संस्थान प्रदान करते हैं। और तो और स्वयं केन्द्रीय कल्याण मंत्रालय द्वारा किये गये सर्वेक्षण के अनुसार भी विद्या भारती देश के सर्वश्रेष्ठ संस्थानों में सर्वोपरि गैर राजनीतिक एवं गैर सरकारी सहायता प्राप्त संस्थान है। विद्या भारती की प्रशंसा मुस्लिम नेता डा. कल्बे सादिक ने भी की है। इसलिए अर्जुन सिंह का यह सेकुलर बयान निन्दनीय है।

-रतन प्रकाश

बी-110, शास्त्री नगर, गाजियाबाद (उ.प्र.)

प्रतिकार सिद्ध हों

माना कि हिन्दुओं के प्रति राजनेताओं का रवैया पक्षपातपूर्ण है, मगर समयानुकूल आवश्यक कदम उठाकर हिन्दू समाज को आशावादी और साहसी बनाना जरूरी है। पाञ्चजन्य एक प्रसिद्ध पत्र है। अत: यह ऐसे समाचार प्रकाशित करे जो इस दृष्टि से अधिक प्रभावी हों।

-राहुल ब्राजमोहन

22ब/अ, साईनाथ कालोनी, इन्दौर (म.प्र.)

अच्छा प्रयास

“ऐसी भाषा-कैसी भाषा?” स्तम्भ अच्छा लगता है। हिन्दी की पत्र-पत्रिकाओं में अंग्रेजी भाषा के शब्दों का जानबूझकर प्रचलन बढ़ाया जा रहा है, यह निन्दनीय है। पर आपको इस स्तम्भ की उपयोगिता एवं अनुपयोगिता के बारे में भी विचार करना होगा। क्या जो हिन्दी पत्र अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग कर रहे हैं, वे पाञ्चजन्य में प्रकाशित सुझावों पर ध्यान दे रहे हैं? क्या आप उन सुझावों को पढ़वाने के लिए सम्बंधित अखबारों को पृथक से कोई सूचना भेजते हैं?

-अयोध्या प्रसाद गुप्ता “जिज्ञासु”

ई 4/86, अरेरा कालोनी, भोपाल (म.प्र.)

ऐसी भाषा-कैसी भाषा

कृपालु पाठक इस स्तम्भ हेतु हिन्दी की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में अंग्रेजी के अस्वीकार्य प्रयोग के उदाहरण हमें भेजें। भेजने का तरीका यह है कि जिस लेख, सम्पादकीय, समाचार आदि में अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग खटकने वाला और अनावश्यक प्रतीत हो, उसकी एक कतरन अथवा मूल अंश की छायाप्रति हमें भेज दें। कतरन या छायाप्रति के नीचे समाचारपत्र या पत्रिका का नाम, उसके प्रकाशन की तिथि तथा पत्र-पत्रिका के प्रकाशन के स्थान का स्पष्ट उल्लेख करना आवश्यक है। साथ में अपना पता भी साफ-साफ लिखकर भेजें। प्रत्येक प्रकाशित उदाहरण पर 50 रुपए का पुरस्कार है। जो पाठक अस्वीकार्य शीर्षक के स्थान पर प्रयुक्त हो सकने वाले शीर्षक का स्वीकार्य सुझाव भी भेजेंगे, उन्हें 50 रु. का अतिरिक्त पुरस्कार दिया जाएगा। -सं.

एनडीएमसी क्षेत्र में बेसमेंट से हटेंगे ऑफिस

यह शीर्षक है नई दिल्ली से प्रकाशित दैनिक जागरण के 17 नवम्बर, 06 में छपे एक समाचार का। इसे भेजने वाले हैं- कुमार रविभूषण, 81, मदनगीर गांव, दिल्ली-62

और इनका सुझाव

उक्त पंक्ति इस प्रकार भी लिखी जा सकती थी- नदिनपा क्षेत्र में तहखाने से हटेंगे दफ्तर

पता

ऐसी भाषा-कैसी भाषा?

पाञ्चजन्य, संस्कृति भवन, देशबंधु गुप्ता मार्ग, झण्डेवाला, नई दिल्ली-110055

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