कजाकिस्तान में हिन्दुओं का उत्पीड़न, मंदिर तोड़ा, कृष्णभक्तों के घरों पर चला बुलडोजर
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कजाकिस्तान में हिन्दुओं का उत्पीड़न, मंदिर तोड़ा, कृष्णभक्तों के घरों पर चला बुलडोजर

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Oct 12, 2006, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 12 Oct 2006 00:00:00

इंग्लैण्ड के प्रधानमंत्री ने विरोध किया, भारत के प्रधानमंत्री खामोश

हिन्दू भावनाओं के प्रति संवेदनशून्य है भारत सरकार

-राजनाथ सिंह, राष्ट्रीय अध्यक्ष, भाजपा

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री राजनाथ सिंह ने सम्पूर्ण घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि कजाकिस्तान में हिन्दुओं के साथ हुई ज्यादती सारे भारत के लिए चिंता का विषय है। लेकिन उस पर भी केन्द्र सरकार की संवेदनशून्यता से हम हतप्रभ हैं। अब यह स्पष्ट होता जा रहा है कि हिन्दुओं की भावनाओं को आहत करने वाला कोई भी विषय केन्द्र सरकार पर कोई प्रभाव नहीं डाल पाता है और वह संवेदनशून्य बनी रहती है। यहां तक कि ब्रिटेन के प्रधानमंत्री श्री टोनी ब्लेयर ने कजाकिस्तान में मंदिर टूटने एवं हिन्दुओं के उत्पीड़न पर अपनी चिंता कजाकिस्तान के राष्ट्रपति से व्यक्त कर दी, परन्तु भारत के प्रधानमंत्री अथवा भारत सरकार में सत्तारूढ़ दल की ओर से कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की गई। यह परिस्थिति विडम्बनापूर्ण ही नहीं, कष्टकारक भी प्रतीत होती है।

श्री सिंह ने कहा कि भारत सरकार को इस विषय को गंभीरता से लेते हुए कजाकिस्तान के राजदूत के माध्यम से वहां की सरकार को देश की भावनाओं से अवगत कराना चाहिए, इस प्रकरण की पूरी रपट मांगनी चाहिए तथा वहां ध्वस्त हुए मंदिर की मर्यादा को पुन:प्रतिष्ठित करवाने एवं हिन्दुओं की सुरक्षा का पूरा प्रयास करना चाहिए।

जबसे श्रीमती सोनिया कांग्रेस के नेतृत्व वाले संप्रग की सरकार भारत में सत्तारूढ़ हुई है तब से ही हिन्दुओं एवं उनके आस्था केन्द्रों पर लगातार आघात हो रहे हैं। सेकुलरवाद के नाम पर मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति का प्रभाव अब देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी दिखने लगा है। जब हिन्दूबहुल देश हिन्दुस्थान में ही हिन्दुओं के आस्था केन्द्रों पर प्रहार होने लगें तो भला मुस्लिमबहुल पाकिस्तान, बंगलादेश, मलेशिया और कजाकिस्तान आदि देशों में ऐसा क्यों न होता। इसीलिए गत 21 नवम्बर को कजाकिस्तान में 13 हिन्दू परिवारों को कड़कड़ाती ठंड में बेघर कर दिया गया, उनके घर पर बुलडोजर चला दिए गए। इनका दोष यह था कि ये लोग कृष्ण भक्त थे, हरे कृष्णा-हरे कृष्णा जपते थे और इसके माध्यम से विश्व भर में शांति का संदेश दे रहे थे। सुन्नी बहुल कजाकिस्तान के सत्ताधारियों को यह कतई नहीं सुहाया और उन्होंने हिमपात के बीच बुलडोजर से इन हिन्दुओं के घरों की खिड़कियों और दरवाजों को तोड़ डाला। इतना ही नहीं, करसाई में स्थित एक मंदिर को भी ध्वस्त कर दिया।

डेढ़ करोड़ की आबादी वाले कजाकिस्तान में 130 से भी अधिक समुदाय हैं और जो विभिन्न प्रकार के मत-पंथों में बंटे हुए हैं। कुल जनसंख्या के आधे से अधिक सुन्नी मुसलमान हैं जबकि रूसी आर्थोडाक्स चर्च को मानने वाले लगभग एक तिहाई हैं। पिछले काफी समय से वहां अल्पसंख्यक हिन्दुओं को प्रताड़ित किया जा रहा है। इसकी शुरूआत तब हुई जब कुछ माह पूर्व हरे कृष्णा समिति के लोगों ने अलमाटी में एक सांस्कृतिक केन्द्र बनाने की शुरूआत की। यह जमीन इस्कान संस्था के नाम से ली गई थी। लेकिन कजाकिस्तान सरकार की पांथिक समिति के उप निदेशक ए.एम. मुस्काओ की अध्यक्षता में अलमाटी में ही सम्पन्न बैठक में यह स्पष्ट कर दिया गया कि कजाकिस्तान में हिन्दुओं के लिए कोई स्थान नहीं है। इसी आधार पर अप्रैल, 2006 में कृष्ण भक्तों को सांस्कृतिक केन्द्र बनाने से रोक दिया गया। बताया गया कि यह जमीन कजाकिस्तान के कानून के अनुसार गैर कानूनी तरीके से हस्तांतरित की गई है। पर इस्कान से जुड़े लोगों का कहना है कि यह पूरी तरह से कानूनी प्रक्रियाओं को अपनाकर खरीदी गई थी और पांथिक रूप से भेदभाव करने वाली सरकार इसे बिना वजह भूमि विवाद का रूप दे रही है।

इस विवाद के बाद कजाकिस्तान सरकार ने पूरे मामले की जांच के लिए एक समिति का गठन किया। पर इस समिति की रपट आने से पूर्व ही 20 नवम्बर को सुबह 6 बजे स्थानीय प्रशासन ने इस्कान परिसर में स्थित हिन्दुओं को यह नोटिस दे दिया कि वे 24 घंटे के भीतर अपने घरों को खाली करके चले जाएं अन्यथा सरकार अपने खर्चे पर उन्हें ध्वस्त कर देगी। इस पर कुछ सुनवाई होती इसके पूर्व 21 नवम्बर की सुबह स्थानीय प्रशासन के साथ बुलडोजर का दस्ता उनके घरों को ढहाने पहुंच गया। बर्फबारी और जमा देने वाली कड़कड़ाती ठंड के बीच उनके घरों की दरवाजों और खिड़कियों को तोड़ दिया। इसके बाद वे घर रहने लायक नहीं बचे। अनेक मानवाधिकारी संगठनों का कहना है कि स्थानीय प्रशासन द्वारा हिन्दुओं की जमीन हड़पने, पांथिक आधार पर अल्पसंख्यक समुदाय को उनके धार्मिक कार्यों से रोकने एवं उनके भीतर भय पैदा करने के लिए यह कार्यवाही की गई।

जब यह घटना घटी उन दिनों कजाकिस्तान के राष्ट्रपति नूरसुलतान नजरबायेव ब्रिटेन के दौरे पर थे। उन्हें वहां अनेक मानवाधिकारवादी संगठनों का जबरदस्त विरोध झेलना पड़ा। लंदन में अनेक हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों के 300 से अधिक कार्यकर्ता सुबह सात बजे ही लंदन स्टाक एक्सचेंज के सामने जुट गए थे, जहां कजाकिस्तान के राष्ट्रपति एक समारोह में आने वाले थे। जैसे ही नूरसुल्तान नजरबायेव का काफिला वहां पहुंचा इन कार्यकर्ताओं ने जबरदस्त नारेबाजी की। वे उनके काफिले के सामने आ गए और उनके देश में हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचार के विरुद्ध अपना आक्रोश प्रकट किया। इतना ही नहीं तो अमरीका, कनाडा, आस्ट्रेलिया सहित अनेक यूरोपीय देशों में सक्रिय हिन्दुत्वनिष्ठ एवं मानवाधिकारवादी संगठनों ने कजाकिस्तान की घटना पर विरोध प्रकट किया। इंग्लैण्ड में इस मामले को हाउस आफ कामन्स के बीच सांसद अशोक कुमार ने उठाया। उन्होंने ब्रिटिश सांसदों के एक दल का नेतृत्व करते हुए कजाकिस्तान में हिन्दुओं पर हमले की निंदा की। सदन में लाए गए प्रस्ताव में उन्होंने कहा कि हम इस बात की निंदा करते हैं कि कजाकिस्तान में अल्पसंख्यक हिन्दुओं के साथ भेदभाव बरता जा रहा है और उन पर अत्याचार किए जा रहे हैं। उन्हें उनकी जमीन के अधिकार से वंचित किया जा रहा है। जिन्होंने कजाकिस्तान में भूमि स्वामित्व के लिए आवेदन किया उनसे यह कहा गया कि वे अपने आवेदन में यह घोषित करें कि वे हिन्दू नहीं हैं और जिन गैरहिन्दुओं ने इस प्रकार का आवेदन किया उन्हें भूमि स्वामित्व का अधिकार दे दिया गया। यहां तक कि वहां के सर्वोच्च न्यायालय ने भी इसी तरह के दो मामलों में हिन्दुओं का पक्ष सुने बिना ही उनके विरुद्ध आदेश सुना दिया।

लंदन में हुए तीव्र विरोध प्रदर्शनों को तब और बल मिला जब ब्रिटेन के प्रधानमंत्री श्री टोनी ब्लेयर ने कजाकिस्तान के राष्ट्रपति नूरसुल्तान नजरबायेव के साथ अपनी बैठक में इस विषय को उठाया। श्री ब्लेयर ने कजाकिस्तान में हिन्दुओं के घरों को ढहाए जाने और उनके मंदिर तोड़े जाने पर नजरबायेव के सामने अपनी चिंता जताई।

जहां विश्व भर में कजाकिस्तान में रहने वाले हिन्दुओं के मानवाधिकारों की रक्षा को लेकर प्रदर्शन हो रहे थे, विरोध हो रहा था वहीं भारत के प्रधानमंत्री और उनकी सत्तारूढ़ पार्टी ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करना तो दूर एक सहज सामान्य विरोध भी प्रकट नहीं किया। न ही सांसदों (केवल भाजपा को छोड़कर) ने इस घटना पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त की। और यह पहली घटना नहीं है। सोनिया कांग्रेस के सत्तारूढ़ होने के बाद मलेशिया में हिन्दू मंदिरों को गिराया गया, मास्को में हिन्दू मंदिर तोड़े गए, पाकिस्तान में प्राचीन मंदिर ध्वस्त कर वहां एक “माल” बनाया जा रहा है, अनेक देशों में हिन्दू देवी-देवताओं का अभद्र चित्रण किया गया। पर सरकार ने कभी कोई प्रतिक्रिया या विरोध प्रकट करना उचित नहीं समझा। प्रस्तुति : जितेन्द्र तिवारी

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