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दिखी समाज में परिवर्तन की छटपटाहटकार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए पू. प्रकाश शाह महाराज (मध्य में), मंच पर उपस्थित अन्य महानुभाव (बाएं से) श्री दीपक राठी, श्री रोहतास सिंह भगवानियां, श्री रामनाथ सिंह, श्री कुप्.सी. सुदर्शन, श्री नामदेव ढसाल, श्री केशव मेश्राम एवं श्री रमेश पतंगेअहा! कैसा अद्भुत मिलन। एक-दूसरे को नमन् करते हुए श्री नामदेव ढसाल एवं श्री कुप्.सी.सुदर्शनप्रख्यात मराठी साहित्यकार श्री केशव मेश्राम को स्मृति चिह्न भेंट करते हुए श्री कुप्.सी.सुदर्शनग्रन्थ का लोकार्पण करते हुए श्री कुप्.सी.सुदर्शन साथ में (बाएं से) श्री रमेश पतंगे, बाबा प्रकाश शाह, श्री नामदेव ढसाल, श्री केशव मेश्राम एवं तरुण विजयउपस्थित श्रोताओं का समूह जिसकी अगली पंक्ति में बैठे है- (बाएं से) श्री सूर्य कृष्ण, श्री जय नारायण खण्डेलवाल, श्री राजा जाधव, श्री प्रेमजी गोयल, श्री ब्राजमोहन सेठी, श्री जीत सिंह जीत, डा. सुरेश चन्द्र वाजपेयी, श्री देवेन्द्र स्वरूप, श्री रामफल बंसल एवं अन्यगत 30 अगस्त को नई दिल्ली स्थित हिन्दी भवन में सेवा भारती एवं अ.भा. नवयुवक दलित उत्थान संघ द्वारा आयोजित “समरसता के सूत्र ग्रन्थ” नामक पुस्तक का लोकार्पण समारोह ऐतिहासिक व स्मरणीय बन गया। हिन्दू समाज कैसे समय के अनुसार अपनी काया बदलता है, इसकी एक छोटी किन्तु सुखद अनुभूति सभी ने अनुभव की। समरसता के सूत्र ग्रन्थ के लाकार्पण हेतु मराठी के अन्तरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कवि एवं दलित पैंथर्स के अयक्ष श्री नामदेव ढसाल का दिल्ली आगमन बहुत महत्वपूर्ण रहा। उन्होंने रा.स्व.संघ के प.पू. सरसंघचालक श्री कुप्.सी. सुदर्शन के साथ पुस्तक का लोकार्पण किया और कहा कि सामाजिक समरसता के लिए उन्हें संघ से काफी आशाएं हैं। बौद्ध, जैन, सिख सभी हिन्दू धर्म की व्यापक धारा के अंग है और ऐसा न मानना गुनाह है। उनके लगभग 1 घंटे के भाषण के बाद श्री कुप्.सी. सुदर्शन ने उनका हाथ अपने हाथ में थामकर कहा कि आपने जो भी कहा उससे मैं पूर्णत: सहमत हूं। समारोह में मंच पर रा.स्व.संघ के सरसंघचालक श्री कुप्.सी.सुदर्शन, क्रान्ति धर्मा कवि श्री नामदेव ढसाल के अतिरिक्त वाल्मीकि आश्रम, गन्नौर के पूज्य सन्त बाबा प्रकाश शाह महाराज, अ.भा. नवयुवक दलित संघ के अध्यक्ष रामनाथ सिंह, अ.भा. मराठी साहित्यकार संघ के पूर्व अध्यक्ष श्री केशव मेश्राम, समरसता ग्रन्थ प्रकाशन से जुड़े और दलित कार्यकर्ता श्री रोहतास सिंह भगवानिया, मराठी साप्ताहिक विवेक के सम्पादक एवं पत्रकार श्री रमेश पतंगे, पाञ्चजन्य के सम्पादक श्री तरुण विजय एवं सेवाभारती दिल्ली प्रदेश के अध्यक्ष श्री दीपक राठी भी उपस्थित थे। भारत माता के चित्र पर दीप प्रज्ज्वलन के साथ कार्यक्रम का आरम्भ हुआ। कहने के लिए तो कार्यक्रम “समरसता ग्रन्थ” के लोकार्पण का था किन्तु इसका सन्देश बहुत गहरा और व्यापक दिखा।विशेषकर समकालीन साहित्य के महान कवि श्री नामदेव ढसाल के उद्बोधन ने सभा में उपस्थित श्रोताओं को गहराई से झकझोर दिया। नामदेव ढसाल महाराष्ट्र की दलित कही जाने वाली महार जाति के सम्बंध रखते हैं। बाबा प्रकाश शाह वाल्मीकि समुदाय में विशेष प्रतिष्ठित हैं, केशव मेश्राम दलित साहित्यकार के रूप में मराठी साहित्य जगत में ख्याति प्राप्त हैं तथा मराठी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष रह चुके हैं। इन सभी का मंच पर सरसंघचालक श्री कुप्.सी.सुदर्शन ने स्मृति चिह्न देकर स्वागत किया और बाबा प्रकाश शाह के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लिया। समारोह में सभी वक्ताओं ने जो कहा उसका सार-संक्षेप यही था कि बस बहुत चुका पाखण्ड, हिन्दू समाज को अपने तत्व ज्ञान के अनुरूप अपना आचरण भी दिखाना होगा। समारोह में उपस्थित श्रोतागण, जिनमें अनेक प्रख्यात दलित साहित्यकार व प्रतिनिधि थे, ने तालियां बजाकर सभामंच की भावनाओं पर अपनी सहमति जताई। बाबा प्रकाश शाह, सरसंघचालक श्री कुप्.सी.सुदर्शन एवं श्री नामदेव ढसाल आदि मंचासीन अतिथियों द्वारा पुस्तक के लोकार्पण के पश्चात पुस्तक के सम्पादक द्वय श्री रमेश पतंगे और श्री तरुण विजय ने पुस्तक के प्रकाशन की प्रस्तावना रखी। श्री रमेश पतंगे ने अपने विचारपूर्ण भाषण में सामाजिक समरसता की अवधारणा को स्पष्ट किया और कहा कि आरक्षण का विरोध करने के लिए सवर्ण लोग बहुत जल्दी आगे आ जाते हैं लेकिन आरक्षण न होता तो आज मैं जहां हूं, वहां तक नहीं पहुंच पाता। उन्होंने सामाजिक भेदभाव के अनेक कटु अनुभव सुनाते हुए कहा कि संघ प्रणीत मार्ग से ही समरसता लाना संभव है। श्री तरुण विजय ने वनवासी कल्याण आश्रम में बिताए अपने अनुभव सनाते हुए कहा कि अब भी समाज में आम तौर पर अनुसूचित जातियों, जनजातियों के प्रति हेयता व तिरस्कार का भाव पाया जाता है। उन्होंने श्री रोहतास सिंह भगवानिया को उद्धृत करते हुए कहा कि बुलन्दशहर के पास उनके गांव में वंचितों की भैंस का दूध तक ग्वाले खरीदने से मना कर देते हैं। समारोह में एक विचारशील वकील श्री गोगना ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि यहां से हम संकल्प लेकर जाएं कि वाल्मीकि जयंती हम सिर्फ बस्तियों में नहीं वरन् अपने घरों में मनाएंगे। अपने भावपूर्ण उद्बोधन में बाबा प्रकाश शाह ने कहा कि आज स्वयं में परिवर्तन लाने की जरूरत है। हिन्दू ही यदि अपनी संस्कृति से दूर हटेगा तो कौन इस महान संस्कृति को अपनाएगा। बाबा ने वाल्मिीकि ऋषि, संत रविदास की जयंती मनाने का आह्वान संपूर्ण हिन्दू समाज से करते हुए कहा कि हर हिन्दू अपने घर में इन दोनों महान संतों की पूजा प्रारम्भ करे। इनके जन्मदिन मनाए क्योंकि ये जाति विशेष नहीं सम्पूर्ण हिन्दू समाज के संत हैं।बाबा प्रकाश शाह ने मतान्तरण की आलोचना करते हुए कहा कि धर्म परिवर्तन हमारी जिन कमियों का परिणाम है, उसे शीघ्रातिशीघ्र हमें अपने से दूर करना पड़ेगा। समारोह में समवेत स्वर में सुश्री शबनम खां एवं श्रीमती चंद्रप्रभा द्वारा वंदेमातरम् का गायन भी हुआ। मंच संचालन क्षेत्र सेवा प्रमुख श्री राकेश कुमार ने तथा धन्यवाद ज्ञापन श्री दीपक राठी ने किया। प्रतिनिधि19
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