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हमलों के बीच धर्मनिष्ठाअस्थिर राजनीति के जिहादी तेवरलेकिन तस्वीर का एक दूसरा पहलू भी है-बंगलादेश से लौटकर तरुण विजयबंगलादेश ने अनेक क्षेत्रों में अभूतपूर्व प्रगति की है जिनमें स्वयंसेवी संगठनों का क्षेत्र, पर्यावरण और महिला साक्षरता के साथ-साथ सिले हुए कपड़ों के निर्यात का क्षेत्र भी है। यहां के लोग स्वाभिमानी और संस्कृति प्रिय हैं। यहां सामान्यत: मुस्लिम महिलाएं बेरोक-टोक बिन्दी लगाती हैं, शंख की चूड़ियां पहनती हैं, साड़ी सामान्य परिधान है। पहला बैशाख उत्सव धूमधाम से मनाया जाता है और सभी अखबारों में हिन्दू महीनों तथा शक संवत् का अंग्रेजी तथा इस्लामी तिथियों के साथ उल्लेख रहता है। सामान्यत: आम बंगलादेशी मुस्लिम में भी साम्प्रदायिक विद्वेष देखने को नहीं मिलता। यहां के समाचार पत्रों में, जिनके अधिकांश सम्पादक और मालिक मुस्लिम ही हैं, हिन्दुओं पर हमलों तथा अत्याचारों का प्रमुखता से और गंभीरतापूर्वक विवरण छापा जाता है। अनेक सुप्रसिद्ध मुस्लिम मानवाधिकारवादी हिन्दू मानवाधिकारवादियों के साथ मिलकर अल्पसंख्यकों से भेदभाव के विरुद्ध साहसपूर्वक खड़े होते हैं। सर्वोच्च न्यायालय में जाने के बाद हिन्दुओं की याचिकाओं पर राहत और स्थगनादेश भी मिले हैं।समाचार पत्र नि:संकोच “इस्लामी अतिवादी”, “इस्लामी आतंकवादी” जैसे शब्दों का प्रयोग करते हैं। यहां अहमदिया मुसलमानों को गैरमुस्लिम घोषित करने के लिए जिहादियों ने आंदोलन छेड़ा हुआ है, जिसका किसी समाचार पत्र ने समर्थन नहीं किया है।फिर ऐसी स्थिति में हिन्दुओं को क्या शिकायत है? शिकायत यह है कि ऊपर वर्णित वर्ग हिन्दुओं पर लगातार बढ़ रहीं हमलों की घटनाओं को रोकने में कारगर साबित नहीं हुआ है। चीनी यातना की पद्धति से हिन्दुओं पर लगातार, लगातार, लगातार विभिन्न क्षेत्रों में हमले किए जाते हैं। कुछ लोग उसकी निंदा जरूर करते हैं, लेकिन हिन्दुओं को राहत नहीं मिलती।सच्चाई यह है कि हिन्दुओं पर हिन्दू होने के नाते हमले किए जा रहे हैं। घटनाओं के दस्तावेज तैयार करना एक अलग बात है, हमलों पर प्रभावी रोक लगाना दूसरी बात। दूसरा दु:खद पहलू यह है कि हिन्दू बाकी सभी जगहों की तरह संगठित नहीं हैं। बंगलादेश में हिन्दुओं के मध्य किसी धार्मिक, राजनीतिक आन्दोलन की भी गुंजाइश नहीं दिखती। जो समाज केवल अपनी रक्षा के लिए ही सिमटा रहने पर विवश हो उससे संगठित शक्ति के बल पर आग्रही होने की कितनी उम्मीद की जा सकती है? जातिवाद का इतना जहरीला असर आज भी है कि वहां के ब्राह्मण तथाकथित छोटी जाति वालों के श्राद्ध, विवाह संस्कार तक कराने नहीं जाते। ये बात मुझे ढाका स्थित रामकृष्ण मिशन के स्वामी जी महाराज ने बताई। बंगलादेश में लगभग 250 हिन्दू ऐसे हैं जो कम से कम करोड़पति या उससे अधिक की संपदा के धनपति हैं। लेकिन वे अपने ही हिन्दू बांधवों की सहायता के लिए सहयोग देने से हिचकते हैं। “मैं ठीक रहूं बाकी की चिंता भगवान करेगा”, ऐसा भाव देखने को मिलता है। स्वभाव से ही हिन्दू थोड़ा दब्बू और जल्दी झुकने वाला होता है। पर अब धीरे-धीरे चेतना बढ़ रही है और उन्हें लग रहा है कि उन्हें अपने ही शक्तिबल पर अपनी रक्षा हेतु तैयार होना होगा। दुनिया के किसी भी अन्य देश के हिन्दू पर सहायता के लिए निर्भर होंगे तो सिर्फ मार ही खाते रहेंगे। बंगलादेश की राजनीति दो महिलाओं की शत्रुता के बीच झूल रही है। राजनीतिक शालीनता, नियम-कायदे, संवैधानिक स्थिति या मर्यादा का कोई डर नहीं है। पिछले दिनों खालिदा जिया राष्ट्रपति से मिलीं, जो एक दुर्लभ अवसर ही कहा जाएगा क्योंकि वहां सालभर में शायद ही एक बार प्रधानमंत्री राष्ट्रपति से मिलती हैं।इस मुलाकात के अगले दिन राष्ट्रपति को दिल का दौरा पड़ गया। उन्हें सिंगापुर बाईपास सर्जरी के लिए ले जाना पड़ा। जब सफल आपरेशन के बाद वे वापस लौटे तो उनकी अनुपस्थिति में कार्यभार संभाल रहे संसद अध्यक्ष ने उन्हें कार्यभार नहीं सौंपा और सरकार ने असली राष्ट्रपति को जबरन 15 दिन के आराम की सलाह देकर एक ऐसी विचित्र स्थिति बना दी कि बंगलादेश के अखबार रोज लिख रहे हैं कि वहां दो आधे राष्ट्रपति हैं। बंगलादेश में अगले वर्ष चुनाव हैं और पूरी राजनीति आपसी उठापटक, जिहादियों और अंधे भारत विरोध पर टिक गई है।10
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