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जन-जन के राजा
सिंहासनारोहण की 60वीं वर्षगांठ के समारोह में थाईलैण्ड के सम्राट श्री भूमिबल अतुल्यतेज और महारानी श्रीकीर्ति (मध्य में) के साथ विभिन्न देशों के राजा-रानी एवं राज परिवारों के सदस्य
बैंकाक से दिनेश मणि दुबे
थाईलैण्ड दक्षिण पूर्व एशिया में भारतीय संस्कृति से ओत-प्रोत बौद्ध धर्मावलम्बी देश है जिसे सन 1932 के पूर्व स्याम देश कहा जाता था। यह देश कभी किसी का उपनिवेश नहीं रहा इसलिए इसका नाम थाईलैण्ड पड़ा। थाई का अर्थ होता है “स्वतंत्र” और लैण्ड का अर्थ है भूमि, यानी-स्वतंत्रता की भूमि।
थाई जनता का अभिनंदन स्वीकार करते हुए थाई नरेश एवं महारानी
थाईलैण्ड में भारत के सांस्कृतिक वैभव से अनुप्रेरित संवैधानिक राजतंत्र प्रकाश स्तम्भ की भांति अटल है तथा संपूर्ण विश्व को यह संदेश दे रहा है कि दीपक चाहे मिट्टी का हो या सोने का, मूल्य केवल उसकी लौ का है और यह लौ (प्रकाश) है-थाई सम्राट देवतुल्य श्री भूमिबल अतुल्यतेज। सम्राट भूमिबल अतुल्यतेज का जन्म अमरीका के कैम्ब्रिाज-मेसाच्यूसेट्स में 5 दिसंबर, 1927 को हुआ था जहां उनके पिता राजकुमार महिडोलसोंखला, हार्वर्ड विश्वविद्यालय में डाक्टरी की पढ़ाई कर रहे थे। श्री अतुल्यतेज ने अपनी विज्ञान एवं कानून की उच्च शिक्षा स्विटजरलैण्ड में की। पढ़ाई के बीच में ही 18 वर्ष की अवस्था में वे स्वदेश लौटे। अत्यंत दु:खद परिस्थितियों में श्री अतुल्यतेज को 9 जून, 1946 को थाईलैण्ड का राजा घोषित कर दिया गया क्योंकि उनके बड़े भाई नरेश आनन्द महिडोल (राम अष्टम्) की रहस्यमय परिस्थितियों में मृत्यु हो गई थी। तबसे निरन्तर थाईलैण्ड की राजसत्ता की बागडोर श्री अतुल्यतेज के कुशल एवं सशक्त हाथों में है।
गंगाजल कलश को मंगल तिलक लगाते हुए देव मन्दिर के अध्यक्ष श्री सर्वेश मोहन माटा
हालांकि थाईलैण्ड में लोकतांत्रिक ढंग से चुनी हुई सरकार है किन्तु थाई जनता के ह्मदय में राजा के प्रति अगाध श्रद्धा एवं सम्मान है। सम्राट को देश की एकता, स्वतंत्रता और समृद्धि का प्रतीक समझा जाता है तथा भगवान विष्णु का अवतार मानकर उनकी पूजा की जाती है।
शोभायात्रा में भाग लेते हिन्दू समाज विद्यालय के विद्यार्थी
थाईलैण्ड में बौद्ध संस्कृति के साथ भारतीय संस्कृति तथा हिन्दुत्व रचा-बसा है। राज परिवार मर्यादा पुरुषोत्तम राम का अनुवर्ती माना जाता है इसलिए थाईलैण्ड के महाराजाधिराज को आज भी राम कहा जाता है। वर्तमान राजा चक्री राजवंश के नवें उत्तराधिकारी हैं इसलिए उन्हें राम नवम् भी कहा जाता है। हिन्दू संस्कृति एवं एवं दर्शन की गहन प्रतिच्छाया यहां सर्वत्र सामान्य थाई के स्वभाव में देखने को मिलती है।
शोभा यात्रा के लिए पवित्र गंगाजल कलश को सुसज्जित वाहन पर स्थापित किया गया
दीपावली यहां लोयक्रथोंग नाम से तथा होली सोंगक्रान नाम से थोड़ी भिन्नता के साथ मनायी जाती है। बच्चों के मुंडन, शिक्षा और वैवाहिक संस्कार भी होते हैं। यहां सभी बौद्ध धर्मावलम्बियों को जीवन में एक बार बौद्ध भिक्षु बनकर कम से कम तीन सप्ताह तक किसी बौद्ध मठ में साधना करनी पड़ती है।
थाई नरेश स्वभाव से मृदु, विचारों से क्रान्तिकारी एवं बुद्धि से वैज्ञानिक सोच वाले हैं। ऐसे महाराजाधिराज श्री भूमिबल अतुल्यतेज ने 9 जून, 2006 को अपने सिंहासनारोहण का 60वां वर्ष पूरा किया। संपूर्ण राष्ट्र ने 9 जून को 7 बजकर 19 मिनट पर करोड़ों की संख्या में अपने-अपने स्थान पर दीप प्रज्ज्वलित कर महाराजाधिराज के सिंहासनारूढ़ होने की 60 वीं वर्षगांठ का उत्सव मनाया। राजकीय समारोह 9 जून से 13 जून तक धूमधाम से मनाया गया जिसमें विश्व के 28 देशों के राजपरिवारों ने भाग लिया। अन्य अनेक लोकतांत्रिक देशों के प्रतिनिधि भी आए।
इस शुभ अवसर पर सभी हिन्दुत्वनिष्ठ धार्मिक तथा सांस्कृतिक संस्थाओं ने विभिन्न प्रकार के धार्मिक आयोजन कर थाई नरेश के राज्यारोहण की 60वीं वर्षगांठ को धूमधाम से मनाने का संकल्प लिया। इसलिए बौद्ध एवं हिन्दुओं ने मां गंगा तथा अन्य पवित्र नदियों का पावन जल मंगाकर महाराजाधिराज का अभिषेक करने का निश्चय किया। इस पावन संकल्प को पूर्ण करने हेतु थाई ब्राह्मण समाज की ओर से श्री वामदेव मुनि तथा समस्त थाई प्रवासी हिन्दुओं की ओर से पण्डित श्री ललित मोहन व्यास ने इस गुरुतर दायित्व को पूर्ण किया। थाईलैण्ड सरकार के धार्मिक विभाग के आर्थिक सहयोग से नौ सदस्यों का प्रतिनिधिमंडल भारत गया था जिसमें अप्रवासी हिन्दुओं के श्रद्धा केंद्र श्री देवमंदिर के अध्यक्ष श्री सर्वेश मोहन माटा के प्रतिनिधि श्री सतीश पावा, पंडित ललित मोहन व्यास, श्री प्रवेश कुमार शर्मा, श्री विजय शर्मा, श्री विनीत पावा, हिन्दु धर्मसभा, विष्णु मंदिर से श्री कृष्णा उपाध्याय, श्री ओमप्रकाश मिश्रा तथा श्री उमा मंदिर सीलोम से श्री सोमनाथ भास्करन आदि सम्मिलित थे।
इस प्रतिनिधिमंडल का दिल्ली में गोरखपुर के भाजपा सांसद एवं श्री गोरक्ष पीठाधीश्वर के उत्तराधिकारी योगी आदित्यनाथ ने स्वागत किया। अयोध्या, वाराणसी, सारनाथ, बोधगया, प्रयाग, हरिद्वार, ऋषिकेश से पवित्र नदियों का पावन जल विभिन्न कलशों में एकत्र किया गया तथा उन पवित्र कलशों की विधिविधान से पूजा अर्चना की गई। थाईलैण्ड के सभी मंदिरों में जलकलशों की स्थापना करके सप्ताह भर विधिवत् अनुष्ठान तथा पूजा की गई। उसके पश्चात इन पवित्र जल कलशों को विभिन्न सुसज्जित रथों पर स्थापित कर भव्य शोभा यात्रा निकाली गई जिसमें हिन्दुओं ने भी श्रद्धापूर्वक भाग लिया। यह विशाल शोभा यात्रा बैंकाक के राजपथ पर पांच किलोमीटर की दूरी तय करते हुए थाईलैण्ड के ब्राह्मण राजगुरु जी के मंदिर पर जाकर समाप्त हुई। पावन गंगा जल कलश वयोवृद्ध पं. श्री विद्याधर शुक्ल, पं. ललितमोहन व्यास, पं. बिन्देश्वरी शुक्ल, पं. विश्वनाथ दुबे तथा पं. विजय नारायण पाण्डेय द्वारा राजगुरु जी को प्रदान किया गया। इसी पवित्र जल से 9 जून को राजगुरु द्वारा मंत्रोच्चार के साथ थाई नरेश का अभिषेक किया गया। राज्यारोहण का उत्सव मनाने हेतु पूरा थाईलैण्ड राजपथ पर उमड़ आया था। महाराजाधिराज श्री भूमिबल अतुल्यतेज की प्रजावत्सलता, विविध क्षेत्रों का वृहद ज्ञान, उनकी कर्मठतापूर्ण समाज सेवा तथा आमजन के प्रति उनके मन में बसा प्रेम ही उन्हें जन-जन का राजा बनाए है।
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