पाठकीय अंक-सन्दर्भ 12 मार्च, 2006
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पाठकीय अंक-सन्दर्भ 12 मार्च, 2006

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Sep 4, 2006, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 04 Sep 2006 00:00:00

पञ्चांगसंवत् 2063 वि. वार ई. सन् 2006 चैत्र शुक्ल 11 रवि 9 अप्रैल ,, ,, 12 सोम 10 ,, (सोम प्रदोष),, ,, 13 मंगल 11 ,, (श्री महावीर जयन्ती),, ,, 14 बुध 12 ,, चैत्र पूर्णिमा गुरु 13 ,, (वैशाख स्नानारम्भ)वैशाख कृष्ण 1 शुक्र 14 ,, (वैशाखी),, ,, 2 शनि 15 “” अस्मिता से समझौता नहींअमरीकी राष्ट्रपति बुश की भारत यात्रा के सन्दर्भ में आवरण कथा “नया अध्याय” के अन्तर्गत श्री जगमोहन, श्री ब्राह्म चेलानी और श्री सी. उदय भास्कर के विचार पढ़े। तीनों के विचार एक-दूसरे से अलग हैं। लेकिन इसमें कोई शक नहीं होना चाहिए कि भारत हित को सर्वोपरि रखकर हमारी विदेश नीतियां तय हों। चाहे अमरीका हो या बंगलादेश, किसी से भी कोई समझौता करने से पूर्व यह देखना जरूरी है कि इस समझौते से हमारा कौन-सा हित सध रहा है।-राजेश कुमार1/11552/बी, सुभाष पार्क विस्तार, नवीन शाहदरा (दिल्ली)भारत-अमरीका के बीच हुआ परमाणु समझौता सूझबूझ से भरा लगा। ईरान, इराक, पाकिस्तान आदि देशों के आपसी व्यवहार और संबंधों पर नजर रखनी चाहिए, क्योंकि यह विश्व शांति के लिए हानिकर हो सकते हैं। आतंकवाद को खत्म करने के लिए रूस, अमरीका, भारत एवं अन्य देशों को मिलकर काम करना होगा।-मनोहर गोविंद उरकुडे5, राधा दामोदर सहनिवास, भूखण्ड सं.-24,कांग्रेस नगर, नागपुर (महाराष्ट्र)एक आम समझ है कि किसी भी समझौते में कमजोर पक्ष नुकसान उठाता है। इसी को ध्यान में रखते हुए भारत को भविष्य में दृढ़तापूर्वक अपने संसाधन विकसित करते रहने होंगे, अन्यथा अमरीका कभी भी धमकी देकर अपनी मनमानी करने का प्रयास कर सकता है। भारत के आम खाने की प्रतीक्षा में लगे अमरीकियों को निराश नहीं करना चाहिए। हां, यहां पेड़ लगाने से लेकर अमरीका तक आम पहुंचाने में जो समय, श्रम, धन लगेगा उसका हिसाब लगाकर मूल्य तय करना चाहिए। केरल में मुसलमान बनीं कमला सुरैया को पछताने की जरूरत नहीं है। उनके पूर्वजों का धर्म उनके स्वागत के लिए सदैव तत्पर है।-डा. नारायण भास्कर50, अरुणानगर, एटा (उ.प्र.)सी. उदय भास्कर ने सही कहा है कि वर्तमान समय में विश्व शक्ति अमरीका का हाथ थामना ही भारत के लिए उचित है। क्योंकि चीन, जिसके बारे में कहा जाता है कि वह 2025 तक अमरीका को पछाड़ देगा, भी अमरीकी साथ पाने का इच्छुक है। दूसरी ओर पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था एक तरह से अमरीकी मदद पर ही टिकी है। इस हालत में भारत को फूंक-फूंक कर कदम उठाना चाहिए।-अभिजीत ” प्रिंस”लंगट सिंह महाविद्यालय, मुजफ्फरपुर (बिहार)पूर्वाग्रही मीडियामंथन के अन्तर्गत देवेन्द्र स्वरूप का आलेख “क्या न्यायपालिका का एजेंडा भी मीडिया तय करेगा?” विचारणीय है। वर्तमान में भारत के सर्वोच्च न्यायालय में 33,635, उच्च न्यायालयों में 33,41,040 एवं निचली अदालतों में 2,53,06,458 मुकदमे वर्षों से न्याय की बाट जोह रहे हैं। वास्तव में मीडिया राजनीतिक पूर्वाग्रह से ग्रस्त है, जो बेस्ट बेकरी कांड, नारोदा पटिया, जेसिकालाल हत्याकांड में दिलचस्पी तो लेता है, किन्तु साबरमती एक्सप्रेस में 59 हिन्दुओं को जिन्दा जलाने के अपराधियों के बारे में चर्चा करना भी पसन्द नहीं करता। सेकुलर मीडिया पर धनाढ वर्ग का दबदबा है। उससे यह अपेक्षा करना बेमानी है कि वह हर खबर को बिना किसी पूर्वाग्रह के छापेगा।-संदीप गुसाईंकोटद्वार, गढ़वाल (उत्तरांचल)जेसिका लाल प्रकरण से पुलिस प्रशासन की लापरवाही और न्यायपालिका की लाचारी उजागर हुई। कितने ही लोगों की उपस्थिति में जेसिका लाल की हत्या हुई, किन्तु किसी ने भी गवाही नहीं दी। इस कारण आरोपी छूट गए। इस व्यवहार से उनकी कायरता और अमानुषिकता का परिचय मिलता है। बाद में यही वर्ग सहानुभूति और विरोध की हवा में बहने लगा और मीडिया भी मुखर हो गया। अब यह मामला पुन: खोला गया है। आरोपियों की पहुंच को देखते हुए इस मामले की सुनवाई दिल्ली से बाहर हो तो अच्छा रहेगा।-दिलीप शर्मा114/2205, एम.एच.वी. कालोनीसमता नगर, कांदीवली पूर्व, मुम्बई (महाराष्ट्र)हरिहर की महिमाराजिम कुंभ के बारे में राजेश जैन की रपट “राम के ननिहाल में भी एक कुंभ” पढ़ी। राजिम राम का ननिहाल है, यह जानकर सुखद आश्चर्य हुआ। बिहार के सारण जिले के सोनपुर में एक आश्रम है। इसे श्रृंगी ऋषि का आश्रम माना जाता है, जिन्होंने राजा दशरथ के लिए पुत्र-कामेष्टि यज्ञ सम्पन्न कराया था। गंडक नदी के तट पर बसा सोनपुर हरिहर क्षेत्र के नाम से भी विख्यात है। कहा जाता है कि गंडक में स्नान करते समय गजराज के पांव धंसने लगे थे। उन्होंने भगवान विष्णु को पुकारा। विष्णु ने प्रकट होकर गजराज को बचाया। तभी से यह क्षेत्र हरि (विष्णु) और हर (शंकर) अर्थात् हरिहर के नाम से जाना जाता है।-उपेन्द्र नाथ उपाध्यायगीता मानस मन्दिर, गोपालगंज (बिहार)तब सुनी जाएगी आवाजभाजपा सांसद प्यारेलाल खण्डेलवाल के आलेख “हिन्दू आस्था के अपमान पर चुप क्यों है सरकार?” से कुछ सवाल उपजे। सवाल यह है कि हुसैन की करतूतों का विरोध करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर प्रयास क्यों नहीं हुआ? पहल भाजपा भी कर सकती थी, राष्ट्रीय स्तर पर धरना, प्रदर्शन हो सकते थे। किन्तु स्थानीय स्तर पर ही एकाध हुंकार भरने के बाद लोग चुप हो गए। जबकि पैगम्बर मोहम्मद के कार्टून को लेकर पूरी दुनिया में मुसलमान सड़कों पर उतरे। यहां तक कि मुस्लिम मजदूरों ने भी काम छोड़कर प्रदर्शन किया। यदि हम भी किसी मुद्दे एकजुट होकर सड़कों पर निकले, तो सरकार से यह पूछने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी कि हमारी आस्था पर चोट हो रही है और तुम चुप क्यों हो?-क्षत्रिय देवलालउज्जैन कुटीर, अडी बंगला,झुमरीतलैया (झारखण्ड)अकाट का अर्थपुरस्कृत पत्र के अन्तर्गत मेरा एक पत्र “सेकुलरो, सत्य को स्वीकारो” शीर्षक से छपा था। हालांकि मैंने वह पत्र व्याकरण सम्मत ही लिखा था, परन्तु छपा कुछ भिन्न रूप में। पत्र में एक जगह छपा कि “संस्कृति के प्रति उदार मनीषियों का एक वर्ग सरस्वती नदी के अस्तित्व को अकाट तथ्यों द्वारा प्रमाणित करता आ रहा है।” “अकाट” शब्द किसी ठोस वस्तु को काटने के संदर्भ में प्रयुक्त होता है, जैसे-यह पेड़ इस आरी से अकाट मालूम पड़ता है। तथ्य-तर्क अखंडनीय होते हैं, अकाट नहीं। तर्क को तो खंडित-मंडित किया जा सकता है। “प्रवाहमान” शब्द भी अशुद्ध है। इसका शुद्ध रूप “प्रवहमान” होता है। इसी तरह “पंथनिरपेक्ष” और “अल्पसंख्यक” शब्द हैं। ये दोनों शब्द विशेषण हैं और विशेषण में “वाद” प्रत्यय नहीं लगता। इसलिए पंथनिरपेक्षतावाद, अल्पसंख्यकतावाद शब्द ही उपयुक्त हैं। “वाद” प्रत्यय विशेष्य में प्रयुक्त होता है, जैसे-मानव में मानवतावाद, मानववाद नहीं।-अजय कुमार मिश्रनिगम प्राथमिक बाल विद्यालय, नं.-1,तिगड़ी (दिल्ली)पुरस्कृत पत्रपूरब की ओर भी देखें!पाञ्चजन्य (19 फरवरी,2006) की आवरण कथा “खोई धरती की तलाश” से जानकारी मिली कि हमारे धर्म-भ्राता दूर-दूर तक फैले हुए हैं। जयपुर में ईसा पूर्व संस्कृतियों के प्रतिनिधि मिले, आपस में विचार-विमर्श हुआ। नि:संदेह यह मिलन संस्कृतियों के बीच की दूरियों को कम करेगा। किन्तु यह देखकर हैरानी हुई कि इस सम्मेलन में भारत के पूरब में रहने वाले हमारे प्राचीनकाल के बंधुओं के विषय में कुछ भी नहीं कहा गया। सम्मेलन की सूची में म्यांमार और मलेशिया का नाम है, पर क्या हमें श्याम, कम्बोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, वियतनाम आदि देशों से कुछ भी लेना-देना नहीं है? माना कि हमारे राजनेता कुछ कारणों से उन देशों के प्रति उदासीन हैं। इसलिए सरकारी स्तर पर रक्षा सम्बंधी कुछ बयानों को छोड़कर कभी भी उन देशों के साथ गहरे सम्बंध स्थापित करने की कोशिश नहीं की गई। पर क्या हमें भी उसी पथ पर चलना चाहिए? इंडोनेशिया के “बाली” और “लम्बक” द्वीपों में हजारों साल से सनातनी हिन्दू रह रहे हैं। वहां आज भी संस्कृत मंत्रों से पूजा-पाठ होता है। कम्बोडिया और श्याम देश (थाईलैण्ड) में भी बौद्धों के साथ-साथ बड़ी संख्या में हिन्दू भी हैं। उन सभी देशों के साथ हमारे सम्बंध बहुत पुराने हैं। फिर भी हम उनके प्रति उदासीन हैं। नजदीकी रिश्तों को छोड़कर दूर के रिश्तों को ही अपना समझना हमारी बहुत बड़ी भूल होगी। उन देशों में भावनात्मक और संगठनात्मक दृष्टि से क्या कुछ हो रहा है, पाञ्चजन्य उसकी जानकारी भी उपलब्ध कराए।-सुशील कुमार भट्टाचार्यअनन्त पल्ली, बर्दवान (प. बंगाल)हर सप्ताह एक चुटीले, ह्मदयग्राही पत्र पर 100 रुपए का पुरस्कार दिया जाएगा। -सं.4

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