|
सेतु-समुद्रम परियोजना से
श्रीराम सेतु को बचाएं
“हम सेतु-समुद्रम परियोजना के विरोधी नहीं हैं लेकिन श्रीराम सेतु इस परियोजना की बलि चढ़ जाए, यह नहीं होना चाहिए। यदि 2694 वर्ष पुरानी चीन की दीवार और 4506 वर्ष पुराने मिस्र के पिरामिडों का संरक्षण हो सकता है तो इनसे कहीं प्राचीन श्रीराम सेतु का संरक्षण क्यों नहीं हो सकता?” यह कहना है हिन्दू मुन्ननी, तमिलनाडु के संस्थापक एवं मार्गदर्शक श्री रामगोपालन का। श्री रामगोपालन गत 27 सितम्बर को राष्ट्रपति डा. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम से मिलने के पश्चात् नई दिल्ली में पत्रकारों को संबोधित कर रहे थे। उनके साथ 11 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने राष्ट्रपति से भेंटकर उन्हें पूरे देश से विगत रामनवमी को सिर्फ एक दिन के प्रयास में एकत्रित 34 लाख, 73 हजार, 9 सौ 94 हस्ताक्षरों के संग्रह के विवरण सहित एक ज्ञापन सौंपा, जिसमें श्रीराम सेतु बचाने के लिए राष्ट्रपति से हस्तक्षेप की अपील की गई है।
प्रतिनिधिमण्डल में श्री रामगोपालन के साथ तमिलनाडु ग्राम पंचायत प्रधान महासंघ के प्रदेश संयोजक श्री डी. कुप्पुरामू, सेवा भारती- तमिलनाडु के उपाध्यक्ष श्री रामनाथन, हिन्दू मुन्ननी के प्रदेश सचिव श्री सी. सुब्राह्मण्यम, हिन्दू जागरण मंच के अ.भा. सह संयोजक श्री अशोक प्रभाकर, रा.स्व.संघ- दिल्ली के प्रांत संघचालक श्री सत्यनारायण बंसल, हिन्दू मंच- दिल्ली के अध्यक्ष श्री जय भगवान, अ.भा. हिन्दू महासभा के महामंत्री श्री दिनेश त्यागी, सनातन धर्म प्रतिनिधि सभा- दिल्ली के अध्यक्ष स्वामी राघवानन्द जी, विश्व हिन्दू परिषद् के संयुक्त महामंत्री श्री चम्पतराय तथा सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि न्याय सभा, दिल्ली के अध्यक्ष श्री रामफल बंसल शामिल थे।
पत्रकार वार्ता में श्री रामगोपालन ने बताया कि लगभग 20 मिनट की मुलाकात में राष्ट्रपति ने प्रतिनिधिमण्डल की बातों को ध्यान से सुना और कहा कि “इस बारे में उन्होंने गहराई से अध्ययन किया है, आगे भी वे ऐसा करने के इच्छुक हैं। इस सन्दर्भ में संबंधित अधिकारियों से वह शीघ्र परामर्श करेंगे।”
श्री रामगोपालन ने कहा कि हिन्दू मुन्ननी एवं अन्य हिन्दू संगठनों को सेतु समुद्रम परियोजना के पूर्ण होने पर खुशी होगी क्योंकि इस परियोजना से जहाजों के आवागमन पर होने वाले व्यय में बहुत कमी आएगी, देश की लगभग 21,000 करोड़ रुपए की विदेशी मुद्रा की वार्षिक बचत होगी। इसीलिए हमने राष्ट्रपति जी के माध्यम से सम्बंधित अधिकारियों को सुझाव दिया है कि वे इस परियोजना के लिए श्रीराम सेतु तोड़ने की बजाए पंबन और धुनष्कोटि के मध्य 15 किलोमीटर के अनुपयोगी भूभाग का उपयोग करें। लेकिन राष्ट्रीय धरोहरों की कीमत पर विकास हमें स्वीकार नहीं है। श्री रामगोपालन ने उ.प्र. में मायावती सरकार द्वारा शुरू किए गए ताज गलियारा प्रकरण की चर्चा करते हुए कहा कि पर्यावरणविदों ने इसे ताजमहल के संरक्षण के लिए हानिकारक माना, न्यायपालिका ने भी हस्तक्षेप किया तब यह परियोजना रुकी। कुतुबमीनार के पास भी मेट्रो रेल के निर्माण की योजना सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए संशोधित की गई। इसी प्रकार श्रीराम सेतु भी हमारी विरासत है जिसके संरक्षण का प्रबंध होना चाहिए।
उल्लेखनीय है कि भारत और श्रीलंका के मध्य कुछ वर्ष पूर्व नासा ने उपग्रहों के द्वारा एक सेतु के अवशेषों का पता लगाया था। यह सेतु मानव निर्मित हैं तथा वैज्ञानिकों द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार, यह 17 लाख, 25 हजार वर्ष प्राचीन है। यह सेतु 3 कि.मी. चौड़ा तथा लगभग 30 कि.मी. लम्बा है। सेतु समुद्रम परियोजना के वर्तमान स्वरूप के अनुसार प्रस्तावित जहाज-पथ के निर्माण के लिए इस श्रीराम सेतु को तोड़ा जाना आवश्यक है। श्री रामगोपालन के अनुसार, “यदि यह परियोजना अपने मूल रूप में क्रियान्वित की गई तो यह करोड़ों रामभक्तों की भावनाओं पर कुठाराघात होगा और इसका प्रत्येक स्थिति में हिन्दू समाज विरोध करेगा।” दिल्ली ब्यूरो
28
टिप्पणियाँ