कारगिल युद्ध द्वितीय
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कारगिल युद्ध द्वितीय

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Aug 10, 2006, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 10 Aug 2006 00:00:00

“इन द लाइन आफर फायर” बनाम “गद्दार कौन”

-पी.एन. खेड़ा

सरहद के दूसरी तरफ आजकल एक दूसरा कारगिल युद्ध लड़ा जा रहा है। इस बार यह पाकिस्तानी राष्ट्रपति मुशर्रफ और पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के बीच चल रहा है। लेकिन इस युद्ध की विशेषता यह है कि यह हथियारों के दम पर नहीं बल्कि शब्दों से लड़ा जा रहा है।

पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के साक्षात्कारों पर आधारित उनकी आत्मकथा बाजार में पहले ही आ चुकी है। यह किताब उर्दू में लिखी गई है जिसका शीर्षक है- “गद्दार कौन, नवाज शरीफ की कहानी उनकी अपनी जुबानी।” पाकिस्तान के प्रमुख समाचार पत्र जंग के राजनीतिक संपादक और प्रसिद्ध टी.वी. साक्षात्कारकर्ता सुहैल बड़ैच ने इसे कलमबद्ध किया है। नवाज शरीफ ने मुशर्रफ पर आरोप लगाया है कि कारगिल की घटना के समय उन्हें भरोसे में नहीं लिया गया। इस युद्ध की जानकारी उन्हें तब मिली जब इसे शुरू हुए चार महीने हो चुके थे। मुझे केवल इतना बताया गया था कि इस युद्ध से कोई परेशानी नहीं होगी और किसी तरह का जानमाल का नुकसान भी नहीं होगा। वहीं दूसरी तरफ मुशर्रफ की आत्मकथा इन द लाइन आफ फायर का 25 सितम्बर को अमरीका में विमोचन हुआ। अपनी किताब में मुशर्रफ ने लिखा है कि नवाज शरीफ को कारगिल घटना की पूरी जानकारी थी। उन्हें इस सम्बंध में कई बार बताया गया था।

जब सुहैल बड़ैच ने नवाज शरीफ से प्रश्न किया कि कारगिल कैसे शुरू हुआ और एक प्रधानमंत्री होने के नाते आपको कितना विश्वास में लिया गया तो नवाज शरीफ का जवाब था कि मुझे कारगिल मामले पर रत्तीभर भी भरोसे में नहीं लिया गया।

चार महीने बाद मुझसे यह जरूर कहा गया कि पाकिस्तानी सेना इस हमले में शामिल नहीं होगी और यह केवल मुजाहिदीनों का हमला होगा लेकिन जब कारगिल शुरू हुआ तो पूरी नार्दर्न लाइट इन्फेंट्री इससे जुड़ गई और तबाह हो गई। कारगिल लड़ाई में पाकिस्तान के 2700 जवान शहीद हो गये और सैकड़ों लोग घायल भी हुए। यह संख्या 1965 और 1971 के युद्धों के शहीदों की संख्या से कहीं ज्यादा थी। इतना नुकसान हुआ तो मैंने जनरल मुशर्रफ से पूछा कि आप तो कहते थे सेना का नुकसान नहीं होगा। तो उनका जवाब था कि भारतीय सेना “कारपेट” बमबारी कर रही थी। जब मैंने पूछा कि पहले आपको अंदाजा नहीं था कि भारतीय सेना इस प्रकार की बमबारी कर सकती है तो कहने लगे कि नहीं मालूम था। जब वाशिंगटन का समझौता हुआ तब तक आधी चौकियां भारतीय सेनाएं खाली करा चुकी थीं और आगे बढ़ रही थी। मैंने मुशर्रफ और पाकिस्तानी सेना की इज्जत रख ली, वरना उनके पल्ले कुछ न रहता।

इसी बीच पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने एक प्रसिद्ध पाकिस्तानी पत्रकार से बातचीत में “कारगिल की मूर्खता” के लिए जनरल परवेज मुशर्रफ, जनरल अजीज, जनरल महमूद और जनरल जावेद हसन को जिम्मेदार ठहराया। इस बातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि उनसे पूछे बिना पकिस्तान सेना चार महीने तक कारगिल में बैठी रही। मुझे तो श्री वाजपेयी से पता चला कि हमारी सेना क्या कर रही है, जबकि युद्ध का फैसला केवल जनरलों को नहीं बल्कि पूरे देश को करना होता है। हद तो तब हुई कि कारगिल मामले से वायुसेना प्रमुख और कोर कमांडर तक अवगत नहीं थे। इस लड़ाई में 2700 सैनिक शहीद हो गये। पता नहीं सेना के जनरलों की बुद्धि कहां थी। नवाज शरीफ ने कहा कि कारगिल के सम्बंध में बहुत घटिया योजना बनाई गई थी। इस लड़ाई का उद्देश्य भारत और पाकिस्तान की बातचीत को प्रभावित करना था। उन्होंने कहा कि जब स्थिति बिगड़ने लगे तो जनरल मुशर्रफ मेरे पास भागे आये कि हमें बचाएं। मुझे Ïक्लटन और टोनी ब्लेयर की कड़वी बातें सुननी पड़ीं लेकिन मैंने सब बर्दाश्त किया। कारगिल से पाकिस्तान की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा। (अडनी)

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