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अब भविष्य भस्म करने के प्रयासबंगलौर में भारतीय विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों पर हुआ हमला भारत के उस भविष्य को ही भस्म करने की साजिश है जो प्रतिभा, मेधा और विज्ञान के आधार पर हमारे वैज्ञानिकों द्वारा सृजित किया जा रहा है। यह उस साजिश का अंग है जो महाशक्ति बन रहे भारत के कदम रोकने और विभिन्न क्षेत्रों में मेधावी तथा नेतृत्व देने में समर्थ भारतीयों को परिदृश्य से ही हटाने के लिए रची जा रही है। प्रस्तुत है बंगलौर की घटना पर त्वरित आयोजन- सं.प्रस्तुति : आलोक गोस्वामीवैज्ञानिक समाज स्तब्ध हैडा. मदन राववरिष्ठ वैज्ञानिक, नेशनल सेंटर फारबायोलाजिकल साइंसिज (बंगलौर)बंगलौर में भारतीय विज्ञान संस्थान में घटित हुआ वह कृत्य वास्तव में चौंकाने वाला है। मेरे बहुत निकट मित्र प्रो. विजय चंद्र, जो इसी संस्थान में कम्प्यूटर वैज्ञानिक हैं, इस हमले में बुरी तरह जख्मी हुए हैं और अस्पताल में भर्ती हैं। इस घटना के बाद से जाहिर है ऐसे संस्थानों और विश्वविद्यालयों की सुरक्षा बढ़ जाएगी तथा ये आम छात्रों व अन्य लोगों की पहुंच से दूर हो जाएंगे। यह दुखद होगा। इन स्थानों पर अध्ययन करने वालों का सहज-सरल आवागमन बाधित होना ठीक नहीं है।भारतीय विज्ञान संस्थान देश के सुविख्यात संस्थानों में गिना जाता है। इस पर हमले की जितनी निंदा की जाए, कम है। यह किसने किया, अभी इस बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता। बंगलौर का वैज्ञानिक समाज स्तब्ध है। यहां ऐसा पहली बार हुआ है और समझ नहीं आता कि इस संस्थान को निशाना क्यों बनाया गया। जहां तक अन्तरराष्ट्रीय गोष्ठी की बात है तो यहां इस तरह की बड़ी गोष्ठियां होती ही रही हैं जिनमें वरिष्ठ देशी-विदेशी वैज्ञानिक भाग लेते रहे हैं। इसलिए यह हमला बहुत गंभीर माना जा रहा है।दिसम्बर-जनवरी के महीनों में आमतौर पर बंगलौर में विज्ञान सम्बंधी गोष्ठियां अधिक होती हैं, इसलिए हर बार ऐसे स्थानों की सघन सुरक्षा की जाए, यह व्यावहारिक रूप से संभव नहीं होता और वैसे भी कोई सोच नहीं सकता कि वैज्ञानिकों पर भी हमला हो सकता था। इस हमले में दिल्ली आई.आई.टी. के वरिष्ठ प्रोफेसर प्रो.पुरी का मारा जाना बहुत दर्दनाक है। मुख्यमंत्री ने विभिन्न अधिकारियों से बात की है और इस हमले पर अफसोस जताया है। मुझे लगता है कि आगे से ऐसी घटनाएं न हों, इस पर भी गहन विचार किया गया है।वैज्ञानिक “आसान लक्ष्य” हैं इसलिए उन पर हमला हुआश्रीश पुरोहितमुख्य कार्यकारी अधिकारी, मिडास कम्युनिकेशंस (चेन्नै)ऐसा पहली बार हुआ है जब वैज्ञानिक समाज को हिंसा का शिकार बनाया गया है। इसमें प्रो. पुरी की मृत्यु हो गई व छह अन्य घायल हुए। मुझे लगता है कि वैज्ञानिकों को हत्यारों ने आसान लक्ष्य के रूप में चिन्हित किया है। जरूरी है कि समाज के अन्य क्षेत्रों में भी जो “आसान लक्ष्य” हो सकते हैं उन्हें पर्याप्त सुरक्षा उपलब्ध कराई जाए। निश्चित ही हमने कभी वैज्ञानिकों के ही इस हिंसा का शिकार होने के बारे में कल्पना तक नहीं की थी। आज आई.टी. का क्षेत्र ऐसा स्वर्णिम क्षेत्र बन गया है जहां विकास की असीम संभावनाएं दिखाई दे रही हैं, इसलिए स्वाभाविक है कि अपराधी तत्व इस क्षेत्र में गड़बड़ी फैलाना चाहते हैं। इसी तरह भारत का वैज्ञानिक -समाज भी अत्यन्त प्रतिष्ठित है, उस पर भी निशाना साधने की कोशिश की गई है। बंगलौर चूंकि आई.टी. उद्योग के अग्रणी स्थानों में से एक है, यहां हिंसा फैलाने वालों को आसान लक्ष्य मिल गया। देश में जहां-जहां ऐसे “आसान लक्ष्य” हैं उनको पहचानकर पर्याप्त रूप से सुरक्षित करना पहला काम होना चाहिए। ऐसे अनेक संस्थान हैं जिन्हें हमने अपनी मेहनत और कौशल के बूते दुनिया में गौरव के स्थान पर पहुंचाया है। हिंसा फैलाने वाले तो जहां चाहेंगे, वहां हमला करेंगे। यहां बंगलौर के विज्ञान संस्थान की क्या बात करें, वे तो सेना शिविरों तक पर हमला करते हैं। मुझे नहीं लगता कि चंद पुलिस वालों को तैनात करके इन संस्थानों की सुरक्षा हो सकती है। सरकार के साथ-साथ नागरिकों को भी सतर्क होना पड़ेगा।ऐसे विख्यात संस्थान सुरक्षित हों, पर खुला वातावरण बना रहेडा. स्वामी मनोहरप्रोफेसर, कम्प्यूटर विज्ञान विभाग, भारतीय विज्ञान संस्थान (बंगलौर)भारत के एक प्रमुख संस्थान पर इस तरह के हमले की घटना अत्यन्त दुर्भाग्यपूर्ण है। हमें इन संस्थानों के खुले माहौल को यथावत् रखते हुए सुरक्षा के इंतजाम करने होंगे। इस तरह की घटनाएं यह दिखाती हैं कि जहां इस तरह का खुला वातावरण है वहां कुछ गलत भी घट सकता है। हमें सतर्क रहना होगा ताकि ऐसी दुखद घटना फिर कहीं और न घटे।एक और बात कहना चाहता हूं कि मीडिया न जाने क्यों बिना ठोस तथ्यों के अपनी ओर से ही अटकलें लगाता है। इससे बेवजह की शंकाएं और गलतफहमियां पैदा होती हैं। शायद समाज में डर पैदा करने वाले तत्व यही चाहते हैं और मीडिया एक प्रकार से अटकलें पैदा कर उनकी मदद ही करता है। इस तरह की घटनाएं भारत जैसे स्वतंत्र-देश में इसलिए घटती हैं क्योंकि हम उनको रोकने के उचित उपाय करने में नाकाम रहते हैं। मीडिया भी एक गैर जिम्मेदार भूमिका निभाता है। हम चाहते हैं कि संस्थानों में पर्याप्त सुरक्षा प्रबंध हों लेकिन साथ ही हम यह नहीं चाहेंगे कि उनको तालों में बंद कर दिया जाए। सरकार को आतंकवाद के मूल को पहचानकर उनका समाधान करना चाहिए बजाय इसके कि संस्थानों को सींखचों में जकड़ दें। ऐसे हम कितने संस्थानों को जकड़ पाएंगे? एक संस्थान को सुरक्षा देंगे तो दूसरे पर निशाना साध लिया जाएगा। यानी समस्या का समाधान ऐसे नहीं हो सकता। समस्या की जड़ को पहचानकर निदान करना होगा। चूंकि मैं घटनास्थल पर नहीं था, इसलिए घटना से जुड़ी बारीकियां नहीं जानता। किसने ऐसा किया, कौन लोग थे, कितने लोग थे, उनका मकसद क्या था, इस पर क्या कह सकता हूं। पर यह जरूर है कि ये घटना वैज्ञानिक समाज की दृष्टि से बहुत दुखद है और इसकी जितनी भी निंदा की जाए कम है।7
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