|
प्रणव दा की उड़ान
प्रणव मुखर्जी विदेश मंत्री क्या नियुक्त हुए मानो कुछ दिनों से खामोश बैठे दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में चर्चा छेड़ने का सूत्र हाथ आ गया। साउथ और नार्थ, दोनों ब्लाकों के बाबुओं में एक मुद्दा खूब सुनाई दे रहा है कि रक्षा मंत्री से विदेशी मंत्री बनाए गए प्रणव मुखर्जी का कद बढ़ा है या घटा है। नहीं, हमारा मतलब उनके शारीरिक कद से नहीं बल्कि सत्ता अधिष्ठान में उनके वरिष्ठता क्रम से है।
अब तक प्रधानमंत्री के बाद नम्बर दो माने जाते रहे प्रणव बाबू को विदेश मंत्री बनाया जाना उनके कद को एक अर्थ में घटाता ही है। रक्षा मंत्रालय के प्रभारी के नाते वे नीतिगत फैसले अपने ही विभाग में चर्चा के बाद स्वयं लेने का अधिकार रखते थे लेकिन विदेश विभाग में ऐसा नहीं चलेगा। विदेश मंत्रालय के नीतिगत फैसले भले विभाग के आला अधिकारियों की सलाह पर विदेश मंत्री करता हो, पर उसको तब तक स्वीकार्य नहीं माना जा सकता जब तक कि खुद प्रधानमंत्री उस पर अपनी हामी न दे दें। यानी प्रणव बाबू के हर फैसले को अब प्रधानमंत्री की मेज पर जाना ही होगा। इस अर्थ में क्या प्रणव बाबू का कद घटा हुआ ही मानना चाहिए?
आबादी बढ़ाओ, जिहाद बढ़ाओ
घाटी में निजामे मुस्तफा के लिए जिहाद में जुटे भाड़े के आतंकवादियों को मजहबी मुल्लाओं ने ज्यादा से ज्यादा निकाह करके ज्यादा से ज्यादा बच्चे पैदा करने की खुली छूट दी है। यह सनसनीखेज खुलासा पिछले दिनों घाटी में दो जिहादियों के मारे जाने के बाद हुआ है। पिछले दिनों एक जिहादी कमांडर माहोर क्षेत्र के बिल्लू गुज्जर को सुरक्षा बलों ने मार गिराया। पता चला कि बंदूक की नोंक पर वह कई महिलाओं से अवैध सम्बंध रखे था। इसके अलावा उसकी तीन बीवियां और आधा दर्जन से अधिक बच्चे थे। इसी क्षेत्र के एक और जिहादी कमांडर नियाज नायक की कथित चार बीवियां और ग्यारह बच्चे हैं।
ज्यादा से ज्यादा बच्चे पैदा करने की कट्टरवादियों की यह नीति खासतौर पर राज्य में चल रहीं समाज कल्याण योजनाओं को धराशायी करने के लिए बनाई गई है। 20 साल पहले जनसंख्या विस्फोट से बचने के लिए ये सरकारी योजनाएं शुरू की गई थीं। अनंतनाग और कई दूसरे क्षेत्रों में मुल्ला मौलवियों ने इन योजनाओं को गैर इस्लामी करार देते हुए इनको सार्वजनिक रूप से नकारा था। एक जाना पहचाना मौलवी तो यह फतवा तक जारी कर गया कि जिसके ज्यादा से ज्यादा बच्चे होंगे उसे ईनाम दिया जाएगा। इन्हीं सब बातों के कारण कश्मीर घाटी में समाज कल्याण योजनाएं धरी की धरी रह गईं और नतीजा यह निकला कि 2001 की जनसंख्या में यहां सबसे अधिक 75 प्रतिशत बढ़ोत्तरी रिकार्ड की गई। (1991 में वहां परिस्थितियां खराब होने के कारण जनगणना नहीं की गई थी) पिछले 2 दशकों में गुलाम कश्मीर के सटे जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा जिले में तो 94 प्रतिशत बढ़ोत्तरी रिकार्ड की गई। यह तो तब हुआ है जबकि 5 लाख से अधिक कश्मीरी हिन्दू पलायन कर चुके हैं, हजारों जिहाद की बलि चढ़ चुके हैं। जिहादियों के दिमाग में भरा जा रहा है कि अगर वे निजामे मुस्तफा की राह में मारे भी गए तो भी उनकी बीवियां और बच्चे उनके साथी जिहादियों के दिलोदिमाग में अपने मारे गए साथी की याद जिंदा रखेंगे।
36
टिप्पणियाँ