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कड़े कानून हैं वन्य-जीव संरक्षण के
श्रीमती मेनका गांधी
किसी व्यक्ति के पास उल्लू होना क्या कानूनन वैध है?
-रीना कत्याल, शाहजहांपुर (उत्तर प्रदेश)
इस बात का खतरा है कि वह उन्हें काटकर उन लोगों को अच्छे भाग्य के ताबीज के रूप में बेचेगा, जो यह सोचते हैं कि एक मृत उल्लू के टुकड़े को पहनने से उनका जीवन बदल सकता है। सैकड़ों मदारी ऐसा करते रहते हैं, इस तथ्य के बावजूद कि उल्लू पक्षी संकट में है। ये मदारी दिन में जब उल्लू देख नहीं सकते, तब उन्हें पकड़ लेते हैं। ये लोग उन्हें काटकर उनके पंजों, चोंच, हड्डियों तथा पंख को बेचते हैं। ऐसा करने वाले सभी व्यक्ति अपराधी हैं और उन्हें वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के अंतर्गत तत्काल पकड़ लिया जाना चाहिए। इसकी सजा 7 वर्ष की कैद और 25,000 रुपए तक का जुर्माना है। यदि वे कहें कि वे गरीब हैं, तो उनका भरोसा मत करें। ये लोग गिरोह में कार्य करते हैं और काफी पैसा बनाते हैं।
क्या किसी प्राकृतिक जल स्रोत के निकट यूकेलिप्टस अथवा केले के पेड़ों की मौजूदगी जल स्तर को कम कर देती है? यदि हां, तो जल स्रोत के निकट किस प्रकार के पेड़ लगाने चाहिए? क्या कोई ऐसा सरल तरीका है जिससे कि पहाड़ी क्षेत्रों में भी वर्षा के जल का संचयन किया जा सके?
-प्रकाश चन्द्र उपाध्याय, दिल्ली
यूकेलिप्टस तथा केले के पेड़ बहुत अधिक पानी पीते हैं। ये वृक्ष केवल अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों के लिए ही अच्छे हैं। हर वृक्ष के लिए अनुकूल जलवायु और मिट्टी होती है। इसलिए हर वृक्ष हर जगह नहीं लगाना चाहिए। दिल्ली कम तथा मौसमी वर्षा वाला क्षेत्र है। भूमि से ऊपर पानी लाने वाले वृक्ष वे होते हैं, जिनकी जड़ें गहरी होती हैं, जैसे कि पीपल, नीम, जामुन, बरगद, आम। वर्षा जल संचयन पर जानकारी के लिए आप दिल्ली में “सेन्टर फार साइंस एंड एन्वायरंमेंट” की वेबसाइट के वर्षा जल संचयन खंड को देख सकते हैं। यह वेबसाइट नाम से है। आप श्री राजेन्द्र सिंह से भी बात कर सकते हैं, जिन्होंने भारत में वर्षा जल संचयन अभियान की शुरूआत की थी। उनका संगठन वर्षा जल के संचयन तथा उसके रखरखाव के बारे में लोगों को प्रशिक्षित करता है। उनका फोन नम्बर है- 09414066765 एवं 01465-225043।
मैंने हाल ही में चंदामामा पत्रिका में पढ़ा था कि भोज्य पदार्थों में मिलाया जाने वाला सिंथेटिक रंग किरमिज भृंग से बनता है, जो कि मध्य अमरीका तथा आस्ट्रेलिया के रेगिस्तानों में पाया जाने वाला एक पशु है। कोई शाकाहारी किस प्रकार पहचान सकता है कि उसके भोजन में मिलाए गए रंग सब्जियों से बने हैं अथवा पशुओं से? जब कोई व्यक्ति हरा चिन्ह लगे हुए किसी उत्पाद को खरीदता है तो क्या उसे पूर्णत: शाकाहारी माना जा सकता है, क्योंकि उन उत्पादों में भी उसमें मिलाए रंगों का स्रोत नहीं दिया जाता है?
-नवीन अग्रवाल, कोटपूतली (राजस्थान)
हरा चिन्ह लगे हुए किसी उत्पाद का अर्थ है कि यह पूर्णत: शाकाहारी है और नियमों के अनुसार उनमें कोई पशु आधारित उत्पाद नहीं हो सकता और न ही होना चाहिए। इसी प्रकार कोई भी मांसाहारी उत्पाद, जिसमें पशु-आधारित अवयव हों, में लाल निशान लगा होना चाहिए। तथापि, यह सत्य है कि भोजन तथा सौन्दर्य प्रसाधनों में किसी भी लाल अथवा गुलाबी रंगों में कुचले हुए कारमीन बीटलो का उपयोग किया गया होता है। ऐसे भोजन, पेय अथवा सौन्दर्य प्रसाधन शाकाहारी नहीं हैं, भले ही उनमें कोई चिन्ह लगाया गया हो।
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