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बुश के स्वागत में लाल कालीन बिछाने वाले इस्लामी आतंक की

by
May 3, 2006, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 03 May 2006 00:00:00

ओर आंखें मूंदे हुए क्यों?इधर पाकिस्तान उधर बंगलादेशहरे आतंक से घिरा भारत-रविन्द्र घोषश्री रविन्द्र घोष, ढाका स्थित बंगलादेश के सर्वोच्च न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ता हैं। बंगलादेश में अल्पसंख्यकों, विशेषकर हिन्दुओं के विरुद्ध हो रही हिंसक घटनाओं के प्रति सहज संवेदनशीलता के कारण वे लगातार कट्टरपंथियों के निशाने पर हैं, फिर भी अल्पसंख्यक उत्पीड़न की घटनाओं के प्रति विश्व समुदाय को जागरूक करने से वे पीछे नहीं हटे। “ग्लोबल ह्रूमन राइट्स डिफेन्स” के प्रतिनिधि के रूप में वे बंगलादेश में बढ़ती मानवाधिकार हनन की घटनाओं के विरुद्ध कानूनी लड़ाई भी लड़ रहे हैं। पिछले दिनों वे भारत आए थे। यहां प्रस्तुत हैं बंगलादेश में अल्पसंख्यक उत्पीड़न के सन्दर्भ में उनके आलेख के सम्पादित अंश–रविन्द्र घोषबंगलादेश बना इस्लामी जिहाद का नया गढ़ हिन्दुओं पर अत्याचार बढ़े, अन्य अल्पसंख्यक समुदायों पर भी खतराबंगलादेश में अल्पसंख्यकों की स्थिति क्षण प्रति क्षण बिगड़ती जा रही है। मैं जानबूझकर क्षण प्रति क्षण कह रहा हूं ताकि भारत और शेष विश्व के लोग स्थिति की गंभीरता को समझें। अपनी बात को पुष्ट करने के लिए मैं सिर्फ एक तथ्य प्रस्तुत करना चाहूंगा-गत वर्ष 23 जनवरी, 2005 को “द न्यूयार्क टाइम्स” में एक विश्लेषणपरक समाचार छपा था कि, “बंगलादेश इस्लामी क्रान्ति का नया गढ़ बनने की ओर तेजी से अग्रसर है।” और 17 अगस्त, 2005 को जब बंगलादेश के 64 जिलों में एक साथ बम विस्फोट हुए, तब विश्लेषकों की यह भविष्यवाणी मानो सच साबित हो गई।आज एक ही सवाल मेरे सामने खड़ा है कि यदि एक बार बंगलादेश पर उग्र इस्लामपंथियों एवं अपराधी तत्वों का पूरी तरह कब्जा हो गया तो फिर वहां अल्पसंख्यक हिन्दुओं, ईसाइयों और उदारवादी मुस्लिमों, अहमदियों पर किस तरह का अत्याचार बरपेगा? वैसे भी आज की परिस्थिति कोई कम भयावह नहीं है। बंगलादेश में अल्पसंख्यकों पर भीषण अत्याचार हो रहे हैं। सरकार इस सन्दर्भ न केवल मूकदर्शक बनी बैठी है वरन् वह सारे उपाय भी कर रही है जिनसे अल्पसंख्यकों का बंगलादेश की धरती से पूरे तौर पर खात्मा हो सके। बंगलादेश में अल्पसंख्यकों के विरुद्ध चल रही हिंसा बहुत कुछ वैसी ही है जैसे 19वीं सदी की शुरुआत में तुर्की में अर्मेनियाई समुदाय का नरसंहार हुआ था। बंगलादेश में जो “मूक संहार” फिलहाल चल रहा है और जिसके सन्दर्भ में वास्तविकता को समझने में विश्व समुदाय को अभी भी समय लग रहा है, वह बिल्कुल अर्मेनियाई नरसंहार का ही प्रतिरूप है। बंगलादेश में आज कानून-व्यवस्था नाम की कोई चीज शेष नहीं बची है। चूंकि अल्पसंख्यक समुदाय पूरे देश में थोड़ी-थोड़ी संख्या में बिखरा हुआ है अत: उसे ही इसके सर्वाधिक दुष्परिणाम भोगने पड़ रहे हैं। सरकार और प्रशासन में बैठे लोग जबरदस्त पूर्वाग्रह और कट्टर साम्प्रदायिक मनोवृत्ति के शिकार हैं, उनसे न्याय की उम्मीद करना भी व्यर्थ है।आज अल्पसंख्यकों को भारत में बलात् ढकेलने के प्रयास हो रहे हैं। उनकी सम्पत्ति पर जबर्दस्ती कब्जा किया जा रहा है। चूंकि बंगलादेश की मुस्लिम जनसंख्या में अप्रत्याशित बढ़ोत्तरी हुई है, अत: उनमें सम्पत्ति और जीवन के लिए जरूरी सुविधाओं को लेकर परस्पर झगड़े व प्रतिस्पर्धा भी तेज हुई है। इस संघर्ष में जो अल्पसंख्यकों की सम्पत्ति पर आंख गड़ाए रहते हैं, उनकी पौ-बारह है। ढाका जैसे बड़े शहर में तो यह सब हो ही रहा है, सुदूरवर्ती ग्रामों में हिन्दुओं को अपने पुरखों की सम्पत्ति से बेदखल करने का अभियान भी चल रहा है। प. बंगाल, त्रिपुरा, असम और मेघालय की सीमा से सटे बंगलादेश के सीमावर्ती ग्रामों से हिन्दू परिवारों को भारतीय सीमा में पलायन करने के लिए मजबूर किया जा रहा है। हिन्दुओं की 25 लाख एकड़ जमीन को “शत्रु सम्पत्ति” घोषित कर बंगलादेश सरकार ने अपने कब्जे में ले लिया है।वास्तविकता यह है कि बंगलादेश में अल्पसंख्यक हिन्दुओं, ईसाइयों, बौद्धों तथा अहमदियों की जिन्दगी हर क्षण खतरे में है और कट्टरपंथी तत्व एक-एक कर सभी को मौत के घाट उतारने, भारत में खदेड़ने या फिर मतान्तरित करने में जुटे हैं। आंकड़ों के मुताबिक, हाल ही में बंगलादेश सरकार ने “इको पार्क” की जो परियोजना हाथ में ली है, उसका सर्वाधिक नुकसान अल्पसंख्यकों को ही हुआ है। लगभग 5 लाख हिन्दू इसके कारण अपने पुरखों की जमीन से बेदखल किए गए हैं। हिन्दू जनजातियां इस परियोजना के कारण कितनी संख्या में विस्थापित हुई हैं, यह अभी अज्ञात है। जानबूझकर हिन्दू बहुल इलाके में यह “इको पार्क” परियोजना प्रारम्भ की गई है।अल्पसंख्यक महिलाओं और बच्चों पर तो अमानवीय अत्याचारों का कहर टूट पड़ा है। “ग्लोबल ह्रूमन राइट्स डिफेन्स” को पिछले चार वर्षों में ऐसी 6200 घटनाओं की शिकायतें मिली हैं जिनमें हिन्दू महिलाओं और कम उम्र की लड़कियों से सामूहिक बलात्कार किये गए। बंगलादेश के राष्ट्रपति के समक्ष भी गत दिनों एक प्रतिनिधिमण्डल ने पिछले एक-डेढ़ वर्ष में घटीं ऐसी 1500 सामूहिक बलात्कार की घटनाओं की शिकायतें प्रमाण सहित प्रस्तुत कीं। वास्तव में यह संख्या प्रस्तुत आंकड़ों से भी कहीं ज्यादा है। एक अनुमान के अनुसार पिछले 4 वर्षों में ऐसी 10,000 घटनाएं घट चुकी हैं जिनमें अल्पसंख्यक वर्गों की महिलाओं से सामूहिक बलात्कार किया गया। बंगलादेश सरकार ने अल्पसंख्यकों को ऊंचे सरकारी पदों पर जाने से रोकने की भी पूरी व्यवस्था कर रखी है। ऊंचे पद तो जाने दीजिए, सामान्य सैनिक के रूप में भी अल्पसंख्यकों की स्थिति कितनी अफसोसजनक है इसका जीता जागता उदाहरण है बंगलादेश रायफल्स और सेना में अल्पसंख्यकों की संख्या। इन दोनों में अल्पसंख्यक वर्ग के सैनिकों की संख्या 500 भी नहीं है। “एमनेस्टी इंटरनेशनल” जैसे मानवाधिकार संगठन का बंगलादेश स्थित महासचिव भी बंगलादेश की प्रधानमंत्री का निकट रिश्तेदार है। बंगलादेश में अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचार दुनिया के सामने न आ सकें, इसका पूरा प्रयास न केवल सरकारी एजेन्सियां वरन् “एमनेस्टी इंटरनेशनल” की बंगलादेश इकाई भी कर रही है। “ग्लोबल ह्रूमन राइट्स डिफेंस” के प्रतिनिधियों ने जबसे अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचारों के प्रति विश्व समुदाय का ध्यान आकृष्ट करना प्रारम्भ किया है, उन पर भी हमले प्रारम्भ हो गए हैं। सत्तारूढ़ राजनीतिक दल और सरकार दोनों के निशाने पर हम लोग हैं। स्वयं मुझ पर अनेक जानलेवा हमले हुए हैं।वस्तुत: बंगलादेश में अल्पसंख्यकों के मानवाधिकारों की रक्षा हेतु भारत और विश्व समुदाय को तत्काल ध्यान देने की जरूरत है। इनके पूजास्थल, सम्पत्ति-आवास, माताएं-बहनें, बेटियां-बच्चे, संस्कृति कुछ भी सुरक्षित नहीं है। संवैधानिक रूप से संघर्ष और न्याय के लिए जितने संभव तरीके हैं, उनसे हम इनके बचाव का उपाय कर रहे हैं लेकिन क्षण प्रति क्षण गंभीर और घातक होती जा रही परिस्थितियों में क्या इनका अस्तित्व बच पाएगा, यह प्रश्न है, जिसका समाधान खोजना सभी हितचिंतकों की जिम्मेदारी है।10

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