|
वन्दे मातरम् का दावा सार्थक करेंअन्य राष्ट्रगीतों की तुलना में यह श्रेष्ठ भावनाओं वाला और मधुर गीत है। जहां अन्य राष्ट्रगीतों में दूसरों के लिए निन्दाजनक भाव मिलते हैं, वन्दे मातरम् इस प्रकार के भाव से सर्वथा मुक्त है। इसका एक मात्र लक्ष्य है हमारे अन्दर देशभक्ति की भावना जागृत करना। यह भारत को मां मानता है और उसकी प्रशंसा के गीत गाता है।कवि ने भारत माता में वे सभी सद्गुण देखे हैं जो कोई भी अपनी मां में देखता है। जैसे हम अपनी मां की पूजा करते हैं, उसी प्रकार यह गीत भी भारत की भावभीनी वंदना है।कवि ने भारत माता का वर्णन करने में सभी संभव विशेषण इस्तेमाल कर डाले हैं। वे भारत माता को सुहासिनी, सुमधुरभाषिणी, सुगंधा, बहुबल धारिणी, सुखदा, सत्यवादिनी, दुग्ध और मधुमय धारणी, फुल्लकुसुमित, सुफला, शस्यश्यामला और महान स्वर्ण युग में रहने वाली हमारी कल्पना की महान जाति के लोगों की भूमि बताते हैं। वे हमारे समक्ष उस भूमि का चित्रण करते हैं जो अपने अंदर सारी दुनिया, सारी मानवता को सत्य की शक्ति से अपने अधिकार में आवेष्टित कर लेगी, किन्तु भौतिक शक्ति से नहीं, वरन् आत्मिक शक्ति से। क्या हम यह स्तुति गा सकते हैं? मैं अपने आप से यह प्रश्न करता हूं, “क्या मैं गायन करने का अधिकारी हूं?” ये शब्द सहज ही भविष्य सूचक हैं, यह बोध होने पर हमारी मातृभूमि का वर्णन करते हुए कवि द्वारा उपयुक्त प्रत्येक शब्द को साकार करने का दायित्व, ये भारत की भावी आशा, आप पर है। यह आपका और मेरा दायित्व बनता है कि कवि ने अपनी मातृभूमि के लिए जो दावा किया है उसे सार्थक बनायें।”(हरिजन, 1 जुलाई सन् 1939)——————————————————————————–भारतमाता की वन्दना के रूप में वन्दे मातरम् के प्रति मेरी भावना गहरी है। राष्ट्रगान वन्दे मातरम् और बंगाल का राष्ट्रीय नारा जिसने उस समय जब सारा भारत लगभग सुसुप्त था, उसे जीवित रखा और जहां तक मुझे ज्ञात है बंगाल के हिन्दू और मुसलमान दोनों ही ने स्वीकार किया था।(कोलकाता के देशबन्धु पार्क में 22 अगस्त, 1947 को एक भाषण में)19
टिप्पणियाँ