|
पहले शिविर लगाकर गरीबों में जमीन बांटी
…अब जमीन हड़पने के लिए शिविर लगा रही है कम्युनिस्ट सरकार
-वासुदेव पाल
सन् 1977 में प. बंगाल में जब पहली बार वाममोर्चे की सरकार बनी थी तब गांव-गांव में भूमि वितरण शिविर लगाकर, राज्य के गरीब भूमिहीन लोगों में भूमि के आवंटन की शुरुआत की गई थी। अब प. बंगाल में वाममोर्चे की सरकार के 30 वर्ष पूरे हो गए हैं, लेकिन आज तस्वीर पूरी तरह बदल चुकी है। राज्य सरकार ने एक बार फिर गांवों में शिविर लगाने का निर्णय लिया है, किन्तु इस बार उद्देश्य बिल्कुल अलग है। वह राज्य के छोटे-मोटे किसानों को अपनी जमीन उद्योग स्थापित करने के लिए देशी-विदेशी कंपनियों जैसे, इंडोनेशिया के सलीम उद्योग समूह तथा भारत के टाटा उद्योग समूह को सौंपने के लिए तैयार कर रही है। राज्य में 7वीं बार सत्तारूढ़ हुई वाममोर्चे की सरकार ने एक महीने के भीतर गरीब किसानों से 50,000 एकड़ कृषि योग्य भूमि अधिगृहित कर इन उद्योग समूहों को सौंपने का फैसला किया है। इस बात की जानकारी राज्य के भूमि सुधार मंत्रालय के सचिव सुकुमार दास ने दी। उन्होंने बताया कि उद्योग एवं विकास की अन्य परियोजनाओं को उनका विभाग पूरा करेगा। हालांकि राज्य सरकार के आदेश में इसका कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं किया गया है कि इन किसानों को किस तरह पुनर्वासित किया जाएगा। आदेश में सिर्फ इतना कहा गया है कि जो कोई भूमि अधिग्रहण करेगा-चाहे वह सरकार हो या निजी कम्पनियां-किसानों को पुनर्वासित करने की जिम्मेदारी भी उसी की होगी। उल्लेखनीय है कि राज्य सरकार की ओर से इस कार्य की जिम्मेदारी जिलाधिकारी निभाएंगे।
यद्यपि सुकुमार दास ने स्पष्ट किया है कि उनके विभाग को उद्योग तथा शहर बसाने के लिए जमीन अधिग्रहण का आदेश नहीं मिला है। उन्होंने कहा कि जब यह कार्रवाई शुरू होगी तब किसानों को उनकी अधिगृहित की जाने वाली जमीन का पूरा रिकार्ड दिया जाएगा। उधर, इंडोनेशिया के सलीम उद्योग समूह के प्रतिनिधि बेनी संतोसा ने गत 15 जून को दक्षिणी बंगाल के चार जिलों में 36,000 एकड़ भूमि को चिन्हित किया। बेनी संतोसा ने इस सिलसिले में व्यवसायी प्रसून मुखर्जी के साथ कोलकाता की राइटर्स बिÏल्डग में मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य तथा उद्योग मंत्री निरूपम सेन के साथ भेंट भी की।
उल्लेखनीय है कि सरकार को इस मामले पर पहले ही सिंगुर (हुगली) तथा भांगर (दक्षिण 24 परगना) के किसानों का रोष झेलना पड़ा है। इस सम्बंध में बेनी संतोसा ने पत्रकारों को कहा कि मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य के साथ बैठक कर 31 जुलाई के पहले यह समझौता कर लिया जाएगा। इस बीच माकपा की दो दिवसीय राज्य समिति की बैठक के बाद पार्टी के सचिव बिमान बोस ने राज्य सरकार के फैसले पर ही प्रश्नचिह्न खड़ा किया है। उन्होंने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि विदेशी कंपनियों को इतनी बड़ी मात्रा में (36,000 एकड़) भूमि देने का फैसला न्यायोचित नहीं है। एक तरह से यह जमींदारी व्यवस्था को ही फिर से चलन में लाने वाली बात होगी। वाममोर्चे की सहयोगी पार्टी फारवर्ड ब्लाक के नेता कमल गुहा ने भी अपनी टिप्पणी से सचेत किया कि अंग्रेज भारत में व्यापार करने के उद्देश्य से आए थे किन्तु बाद में वे देश के शासक बन बैठे। माकपा के महासचिव मनोज कुमार मजूमदार ने भी कुछ इसी तरह की टिप्पणी की।
जानकार लोगों का मानना है कि उपरोक्त टिप्पणियां कट्टर कामरेडों की हैं, जबकि उद्योग समूहों को जमीन सौंपने का अंतिम फैसला राज्य सरकार लेगी। यहां तक कि जिला स्तर के अनेक माकपाई नेताओं ने भी बड़े औद्योगिक घरानों को उपजाऊ भूमि सौंपने के फैसले पर आपत्ति प्रकट की है। उन्होंने पार्टी की इस नीति की राज्य समिति की बैठक में जमकर आलोचना भी की।
37
टिप्पणियाँ